बुधवार, 12 दिसंबर 2018

गौसेवा के प्रकार

गौ सेवा के प्रकार

क्रियात्मक गोसेवा
रचनात्मक गोसेवा
सर्जनात्मक गोसेवा
भावात्मक गोसेवा

क्रियात्मक गोसेवा
तन से होती है ,जैसे गौशाला की सफाई ,गौ माता को स्नान कराना ,गौ माता की मालिश करना ,गोग्रास  परोसना (चारा, पानी आदि)

रचनात्मक गोसेवा
उपासना एवं आहार में पंचगव्य का उपयोग करना ,अपनी आय का एक अंश गोसेवा में लगाना, परिचित लोगों को भी पंचगव्य के लिए प्रेरित करना , गौ सेवा के लिए प्रेरित करना आदि।

सर्जनात्मक गोसेवा
गोचर ,गोभूमि को गाय के लिए आरक्षित करवाना एवं उसका विकास करना,भारतीय गोवंश के संवर्धन के लिए कार्य करना , पंचगव्य विनियोग के लिए कार्य करना (संकलन,वितरण) आदि।

भावात्मक गोसेवा
अपने इस से प्रार्थना करना (गोरक्षा ,गोसेवा, गोपालन के लिए), यह विचार करना कि गोवंश सुखी कैसे हो गोवंश दुखी नहीं हो आदि।

शनिवार, 8 दिसंबर 2018

कैंसर के इलाज में गौमूत्र ने दिखाई नई राह… मिला अमेरिकी पेटेंट

कैंसर के इलाज में गौमूत्र ने दिखाई नई राह… मिला अमेरिकी पेटेंट…

#भारतीय ही भूल गए है अपनी गौ माता की महिमा दूसरी ओर #विदेशी #गौ_उत्पादक का रिसर्च करके बड़ी भारी मात्रा में उपयोग में लाकर लाभविन्त हो रहे है ।

#गौमूत्र आैर गौमूत्र अर्क का प्रयोग सदियों से जीर्ण #व्याधियों को ठीक करने में किया जा रहा है।  #खतरनाक रोग #कैंसर के उपचार के लिए दुनिया भर में शोध चल रहे हैं लेकिन अभी तक कोई सफलता नही मिली है पर अब सदियों से इस्तेमाल हो रहे #गौमूत्र ने एक नई राह दिखाई है ।

#आयुर्वेद में प्राचीन काल से #गौमूत्र आैर पंचगव्य का विभिन्न रोगों को ठीक करने में उपयोग होता रहा है। गौमूत्र को आयुर्वेद में त्रिदोष(वात-पित-कफ) शामक माना गया है। सभी को खत्म करने की शक्ति गौमूत्र में है। गौमूत्र को प्राचीन ग्रंथ आैर आयुर्वेद के जानकार कैंसर ( जिसे पुराने आयुर्वेद के ग्रंथो में अबुर्द के नाम से जाना जाता था )के उपचार में कारगर मानते थे। अब धीरे धीरे #आयुर्वेद का यह मत #वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरा उतरता नजर आ रहा है ।

गौ विज्ञान अनुसंधान #केंद्र द्वारा गाय के मूत्र से बनाई एक दवा को अमेरिकी पेटेंट हासिल हुआ है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि कैंसर की इस दवा को अपने #एंटीजीनोटॉक्सिटी गुणों के कारण तीसरी बार यह #पेटेंट मिला है। गौमूत्र से बने अर्क को कामधेनु अर्क नाम दिया गया है। #नेशनल_इन्वाइरनमेंटल_इंजीनियर रिसर्च_इंस्टिट्यूट_नीरी और गौ_विज्ञान अनुसंधान केंद्र ने इसे मिलकर तैयार किया है। नीरी के एक्टिंग डायरेक्टर तपन #चक्रवर्ती ने कामधेनु अर्क को पेटेंट मिलने की पुष्टि की है ।

#चक्रवर्ती ने बताया कि री #डिस्टिल्ड काउ यूरिन डिस्टिलेट का उपयोग जैविक तौर पर #नुकसानग्रस्त डीएनए को दुरस्त करने में किया जा सकता है। इस नुकसान से #कैंसर समेत कई बीमारियाँ भी हो सकती है। उन्होंने बताया कि गौमूत्र से तैयार ये अर्क #जीनोटॉक्सिटी के खिलाफ काम करता है जो कोशिका के #आनुवांशिक पदार्थ को होने वाली नुकसानदायक क्रिया है। मानसिंघका ने बताया कि इसके लिए तीन #मरीजों पर शोध किया गया जिनमें से दो को गले और एक को #गर्भाशय का #कैंसर था। वो सही हो गया है ।

गौ मूत्र की महत्ता
1. कैसर रोधक #टेक्सोल पेव #टीटेक्सेल को #अमेरिका से पेटेन्ट भी कराया है जोकि #कैंसर रोधक है।

2. रोम में #गौमूत्र की महत्ता इतनी अधिक बढ़ रही थी कि वहां गौमूत्र पर कर भी लगाने का वर्णन है।

3. यूरोप के देशों में 18वीं शताब्दी में #गौमूत्र से पीलिया, गठिया, साइटिका, अस्थमा, धात , इन्फ्लूएजा आदि रोगों के निदान का विस्तृत वर्णन है।

4. चीन में हर्बल औषधियों में गौमूत्र के सहपान का वर्णन है।

5. #अमेरिका के #डाॅक्टर #क्राफोड हैमिल्टन के अनुसार गौमूत्र के प्रयोग से ह्रदय के रोग दूर होता है। कुछ दिन गौमूत्र सेवन से #रक्तचाप ठीक होता है, #भूख बढ़ती है तथा किडनी सम्बन्धी रोगों में लाभ होता है।

6. गौमूत्र रक्त में बहने वाले #कीटाणुओं का नाश करता है ।

8. गौमूत्र घावों की विशाक्तता को दूर करता है तथा #स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है गौमूत्र 100 से अधिक रोगों के पूर्ण निदान में प्रभावी है।

9. गौमूत्र अर्क के #कैंसर रोधी गुण पर पेटेन्ट संख्या यू0एस0-6410056 प्राप्त हुआ है।

10. गौमूत्र रक्त व विष की विकृति को हटाता है, बडी आंत में गति को शक्ति देता है, शरीर में वात पित व कफ #दोष को स्थिर रखने में सहयोग करता है।

11. यह अनिच्छित व #अनावश्यक वसा को निर्मित होने से रोकता है, लाल रक्त कोशिकाओं एवं #होमेयोग्लोबिन के उत्पादन में सन्तुलन रखता है।

12. यह जीवाणुनाशी व #मूत्रवर्धक होने से विष (टोक्सिन) को नष्ट करता है, मूत्र मार्ग से पथरी को हटाने में सहायक है, #रक्तशुद्धि करता है।

13. यह तेजाब विहीन, वंशानुगत गठिया रोग से मुक्त करता है। आलस्य व मांसपोशियों की कमजोरी को हटाता है, कीटाणुनाशक, कीटाणु की #वृद्धि को रोकता है। (गेन्गरीन) मांस सड़ाव से रक्षा करता है।

14. यह #रक्तशुद्धिकर्ता अस्थि में शक्ति प्रदाता (कीटाणुनाशक) रक्त में #तेजाबी अव्यवों को कम करता है ।

15. यह जीवन में शक्ति व उत्साह वृधन में #सक्रियता लाता है व मानसिक रूग्णता व प्यास से बचाता हैं अस्थि में पुनः शक्ति प्रदान कर जीवन में उमंग वृद्धि करते हुए पुनरोत्पादक शक्ति प्रदान करता है।

16. यह रोग प्रतिरोधात्मक #शक्ति #वर्द्धक, हृदय को शक्ति व संतोष प्रदान करता है।

#भारतवासियों आप भी गौ उत्पादक की महत्ता समझकर उपयोग करके #स्वस्थ्य रहे और #गौ हत्या रोकने तथा देश को #समृद्ध बनाये रखने में सहभागी होइए ।

आज से हम सभी संकल्प ले क़ि गाय माता को कत्लखाने जाने से बचाकर #गाय माता की रक्षा करेंगे ।

जयगौमाता

गौ कथा (ये कथा भीष्म पितामह ने युधिषिठर को सुनाई थी)

(( गौ कथा )))

ये कथा भीष्म पितामह ने युधिषिठर को सुनाई थी .
असल में भीष्म पितामह का कहना था कि गाय का मूत्र और गोबर इतना गुणवान है कि इससे हर रोग का निवारण हो सकता है
इतना ही नहीं इसमें माँ लक्ष्मी का भी वास होता है इसलिए इसे बहुत शुभ माना जाता है
गाय की पवित्रता भी दर्शा रहे है
हमारे हिन्दू धर्म में गाय को माँ का दर्ज़ा दिया जाता है . कुछ लोग इससे गाय माँ और कुछ गाय माता कहते है . यहाँ तक कि अगर हम शास्त्रो का इतिहास देखे तो गाय भगवान् कृष्ण को बहुत प्रिय लगती थी इसलिए तो वो ज्यादातर समय अपनी गायों के साथ व्यतीत करते थे . ये अलग बात है कि आज कल गाय को खाने की वस्तु के रूप में भी प्रयोग किया जाने लगा है जिसके लिए बहुत खेद है .

हम जानते है कि केवल हमारे खेद करने से ये पाप रुकने नहीं वाला इसलिए समझाने से कोई फायदा नहीं बस उम्मीद कर सकते है जो लोग गाय को एक वस्तु समझ कर उसका सेवन करते है वो भी जल्द ही ये सब बन्द कर दे

भीष्म पितामह ने सुनाई युधिषिठर को ये कथा..
—एक बार लक्ष्मी जी ने मनोहर रूप यानि बहुत ही अध्भुत रूप धारण करके गायों के एक झुंड में प्रवेश कर लिया और उनके इस सुंदर रूप को देखकर गायों ने पूछा कि, देवी . आप कौन हैं और कहां से आई हैं?

गायों ने ये भी कहा कि आप पृथ्वी की अनुपम सुंदरी लग रही हो . तब गायों ने एकदम से कहा कि सच सच बताओ, आखिर तुम कौन हो और तुम्हे कहाँ जाना है ?
तब लक्ष्मी जी ने विन्रमता से गायों से कहा कि तुम्हारा कल्याण हो असल में मैं इस जगत में अर्थात संसार में लक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध हूं और सारा जगत मेरी कामना करता है मुझे ही पाना चाहता है . मैंने दैत्यों को छोड़ दिया था और इसलिए वे सदा के लिए नष्ट हो गए
इतना ही नहीं मेरे आश्रय में रहने के कारण इंद्र, सूर्य, चंद्रमा, विष्णु, वरूण तथा अग्नि आदि सभी देवता सदा के लिए आनंद भोग रहे हैं। इसके बाद माँ लक्ष्मी ने कहा कि जिनके शरीर में मैं प्रवेश नहीं करती, वे सदैव नष्ट हो जाते हैं और अब मैं तुम्हारे शरीर में ही निवास करना चाहती हूं
लेकिन इसके बाद भी कथा अभी खत्म नहीं हुई क्योंकि गायों ने अब तक माँ लक्ष्मी को अपनाया नहीं था .

गायों ने क्यूँ किया माँ लक्ष्मी जी का त्याग..
देवी लक्ष्मी की इन बातों को सुनने के बाद गायों ने कहा कि तुम बड़ी चंचल हो, इसलिए कभी कहीं भी नहीं ठहरती . इसके इलावा तुम्हारा बहुतों के साथ भी एक सा ही संबंध है, इसलिए हमें तुम्हारी इच्छा नहीं है तुम्हारी जहां भी इच्छा हो तुम चली जाओ तुमने हमसे बात की, इतने में ही हम अपने आप को तुम्हारी कृतार्थ यानि तुम्हारी आभारी मानती हैं

गायों के ऐसा कहने पर लक्ष्मी ने कहा , कि ये तुम क्या कह रही हो ? मैं दुर्लभ और सती हूं अर्थात मुझे पाना आसान नहीं ,पर फिर भी तुम मुझे स्वीकार नहीं कर रही, आखिर इसका क्या कारण है ? यहाँ तक कि देवता, दानव, मनुष्य आदि सब कठोर तपस्या करके मेरी सेवा का सौभाग्य प्राप्त करते हैं अत:तुम भी मुझे स्वीकार करो . वैसे भी इस संसार में ऐसा कोई नहीं जो मेरा अपमान करता हो .

ये सब सुन कर गायों ने कहा , कि हम तुम्हारा अपमान या अनादर नहीं कर रही, केवल तुम्हारा त्याग कर रही हैं और वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि तुम्हारा मन बहुत चंचल है . तुम कहीं भी जमकर नहीं रहती अर्थात एक स्थान पर नहीं रुक सकती . इसलिए अब बातचीत करने से कोई लाभ नहीं तो तुम जहां जाना चाहती हो, जा सकती हो इस तरह से गायों ने माँ लक्ष्मी का त्याग कर दिया क्योंकि गायों को मालूम था कि लक्ष्मी कभी किसी एक के पास नहीं रहती बल्कि पूरे संसार में घूमती है पर फिर भी माँ लक्ष्मी ने हार नहीं मानी और इतना सब होने के बाद भी वार्तालाप ज़ारी रखी
अब आखिर में माँ लक्ष्मी ने कहा , गायों. तुम दूसरों को आदर देने वाली हो और यदि तुमने ही मुझे त्याग दिया तो सारे जगत में मेरा अनादर होने लगेगा . इसलिए तुम मुझ भी पर अपनी कृपा करो मैं तुमसे केवल सम्मान चाहती हूँ

तुम लोग सदा सब का कल्याण करने वाली, पवित्र और सौभाग्यवती हो तो मुझे भी बस आज्ञा दो, कि मैं तुम्हारे शरीर के किस भाग में निवास करूं?
इसके बाद गायों ने भी अपना मन बदल लिया और गायों ने कहा, हे यशस्विनी . हमें तुम्हारा सम्मान आवश्य ही करना चाहिए  इसलिए तुम हमारे गोबर और मूत्र में निवास करो, क्योंकि हमारी ये दोनों वस्तुएं ही परम पवित्र हैं।

तब माँ लक्ष्मी ने कहा, धन्यवाद् और धन्यभाग मेरे, जो तुम लोगों ने मुझ पर अनुग्रह किया यानि मेरे प्रति इतनी कृपा दिखाई मैं आवश्य ऐसा ही करूंगी . मैं सदैव तुम्हारे गोबर और मूत्र में ही निवास करूंगी सुखदायिनी गायों अर्थात सुख देने वाली गायों तुमने मेरा मान रख लिया , अत: तुम्हारा भी कल्याण हो बस यही वजह है कि गाय की इन दो वस्तुओ को लक्ष्मी का ही रूप समझा जाता है .

             इस कथा को पढ़ने के बाद ये तो समझ आ ही गया होगा कि गाय का धार्मिक ग्रंथो के अनुसार कितना महत्व है।

शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

गौमाता स्वास्थ्य का खज़ाना

गौमाता स्वास्थ्य का खज़ाना

        जैसा की सबको पता है वर्तमान समय मे प्रदूषण काफी बढ़ गया है....और मानव को बिमारियों सो बचने के लिए प्रतिदिन 21% ऑक्सीजन की ज़रुरत होती हैं | यदि शरीरमें #ऑक्सीजन की कमी हो जाती है तो कैंसर हो सकता हैं |  परंतु वर्तमान समय में शहरोंमें बढ़ते प्रदूषणके कारण #14_15% से अधिक ऑक्सीजन नहीं मिल पाता हैं, जिसके कारण शरीर को ना ही ऑक्सीजन मिल पाता है और ना ही शुद्ध रक्त | शरीर की #कोशिकाएँ_तीव्रतासे_मरती हैं , जिनको पूनर्जीवित करना असंभव हैं | तभी आजकल कैंसर जैसे रोग आसानी से हो जाते है लोगो को |

         परंतु गौमाता के #गोबर_में_23%_ऑक्सीजन की मात्रा होती है | गौमाताके #गोबरसे_बनी_भस्म में #45% ऑक्सीजन की मात्रा मिलती है | गौमाता के गोबर में मिट्टी तत्व है यदि आपको शुद्ध मिट्टी चाहिए तो  गौमाता के गोबरसे शुद्ध मिट्टी तत्व का उदाहरण आपको कही नहीं मिलेगा | ऑक्सीजन भी भरपूर है यानी गौमाता के केवल गोबर से ही वायु तत्व की पूर्ति आपकी पूरी हो रही हैं |

      परंतु गौमाता की पूरी शारीरिक संरचना विज्ञान पर आधारित है | जिसके चलते गौमाता जहां निरंतर स्वास भी लेती है वहां से बिमारियों को दूर भगाती है | गौमातासे उत्सर्जित एक एक पदार्थमैं ब्रह्म ऊर्जा,विष्णु ऊर्जा और शिव ऊर्जा भरी हुई हैं | गौमाता को आप चाहे कितने ही प्रदूषित नातावरणमें रख दीजिये या कितना ही प्रदूषित जल या भोजन करा दीजिए गौमाता उस ज़हर रुपी प्रदूषण को दूध,दहि,गोबर,गौमुत्र,या साँस के रुपमें कभी बाहर नही ऊत्सर्जित करती है बल्कि गौमाता उसे अपने शरीरमें ही धारण कर लेती हैं | आपको जो भी देगी वह विशुद्ध ही देगी |

         गौमाताके दूध में #अग्नि_तत्व होता है तथा ईस दूध के भीतर #85%_जल तत्व है , जो आपको #कोलेस्ट्रॉल_मधुमेह_ऊच्चरक्त चाप जैसे रोगो से बचाता हैं, जबकी #भैंस आदी के दूधमे #जल तत्व की कमी होने के कारण आपको यह रोग हो सकते हैं | 
          गौमाता के #दही में#60% जल तत्व है और गौमाताकी #छाछ तो दहीं से भी #400 गुना ज्यादा लाभकारी हैं | गौमाता के #मक्खनमें 40% जल तत्व है  और मक्खन #ब्रह्म_ऊर्जा से भरपूर होता बै | जिसके कारण हमारे भीतर #सत्वगुण आता हैं , यदी ब्रह्म ऊर्जा हमें नही मिलती तो हमारे मे सत्वगुण नही आ पाता और ईसके कारण संवेदनशीलता शून्य हो जाती हैं | 
#पशुओके दूध में ब्रह्मतत्व नही होता तभी भैंस के दूध को पीने से बूद्धिमें जड़ता आती हैं |

     अब आप ही सोचिए की हमैं कीसका दूध दहीं आदी का सेवन करना चाहिए????? और अपने घरमें, अथवा घरोंके आसपास कीसे रखना चाहिए????? आज शहरो मै गौमाता की कमी है ईस कारण शहरों मे बिमारियों ने घर बना लिया है तभी तो आज भी गांव की हवा शुद्ध है क्योकी वहां गौमाता स्वछंदता से स्वास लेती है।

शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

गुरु_नानकदेवजी_के प्रकाशपर्व_की_सभी भक्तो को बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ....

गुरु_नानकदेवजी_के प्रकाशपर्व_की_सभी भक्तो को बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ....

         गुरु नानकजी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा विक्रम संवत 1527 में तलवंडी (हाल पाकीस्तान) मे हुआ था...|
गुरु नानक देवजी विदेह राज जनक के अवतार थे जिन्होने ईस कलिकाल मे गौ,गरिब और असहायोकी सेवा हेतु अवतार धारण कीया था |

      गुरु नानकदेवजी ने अपने जीवनकालमें सभी को गौसेवा का महत्व समझाया और स्व़ं भी गौसेवा को तत्पर रहे |

      एकबार की बात है जब नदी पार करने के लिए गौमाता और ब्राह्मणो पर भी #कर वसूला जाता था | यानी यदि कोई गौको लेकर कही जाता था तो ऊसे #गौमाता का #कर देना पड़ता था या गौदान करता था तो भी ऊससे कर वसूला जाता था |

       गुरु नानकदेवजी को यह बात तनिक भी नही भाती थी की गौमाता जो भवसे पार कराती है ऊन्हे नदी पार कराने के लिए कर वसूला जा रहा हैं।

     एकबार किसी व्यक्ति ने एक ब्राह्मण को गौमाता दान मे दी , किन्तु पेढ़ी नदी के पास ऊसे  रोक लिया गया , वहां पर कर वसूली करने वाला एक व्यक्ति था ऊसने ऊस ब्राह्मण से कर मांगा , ब्राह्मण ईतना समर्थ नही था की कर दे सके वह बात करके ऊसे समझाने लगा परंतु वह कर वसूली वाला व्यक्ति नही माना ,  ईतने मे गौमाता ने गौबर कर दिया, तो ऊस कर वसूलने वाले व्यक्ति ने ऊस गौबर को ऊठवाया लिया ताकी अपना चौका निपवा सकें ।
        यह घटना नदी के कीनारे के पास बैठे गुरु नानकदेवजी देख रहे थे । ऊन्होने मुस्कुराकर कहां " हे भाई  छोटी सी नदी पार कराने के लिए #गऊ_और_और ब्राह्मण पर तो तुम कर वसुली करते हो ,कींतु साथ ही गौमाता के गोबरके बल पर #संसार सागर पार ऊतरना चाहते हो???? तुम धोती पहनते हो टीका माला माला भी धारण करते हो परंतु धान्य तो मल्च्छो का ही खाते हो । मंदीर जाकर पूजा भी करते हो ,परंतु म्लेच्छो को प्रसन्न करने के लिए कुरान आदी भी पढ़ते हो और  गौमाता पर कर वसुली भी कर रहे हो । भाई यह सब पाखंड छोड़ दो  और केवल परमात्मा का नाम लो और गौमाता की सेवा करो तभी कल्याण होगा...।

तो गौमाता पर वसुला गया कर भी जिन गुरु को नही सुहाता आज हो रही गौहत्या से वे कीतने आहत हो रहे होंगे?????

कृपया सभी गौसेवा करें और परमात्मा का भजन करे ताकी गुरु नानकदेवजी सदैव प्रसन्न रहें ।

शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

गोपाष्टमी : कान्हा की गौ चारण लीला

गोपाष्टमी : कान्हा की गौ चारण लीला

सभी स्नेही भक्तजनों को गोपाष्टमी की हार्दिक शुभ-कामनाएं।

गौ पूजन का पवित्र दिन है गोपाष्टमी..........

कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी  तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गौ-चारण लीला आरम्भ की थी।

श्री कृष्ण की गौ-चारण लीला ......

भगवान् ने जब छठे वर्ष की आयु में प्रवेश किया तब एक दिन भगवान् माता यशोदा से बोले –
"मैय्या अब हम बड़े हो गए हैं"
मैय्या यशोदा बोली - "अच्छा लल्ला अब तुम बड़े हो गए हो तो बताओ अब क्या करें"
भगवान् ने कहा - "अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, अब हम गाय चराएंगे"
मैय्या ने कहा - "ठीक है बाबा से पूँछ लेना"
मैय्या के इतना कहते ही झट से भगवान् नन्द बाबा से पूंछने पहुँच गए
बाबा ने कहा - "लाला अभी तुम बहुत छोटे हो अभी तुम बछड़े ही चाराओं"
भगवान् ने कहा - "बाबा अब में  बछड़े नहीं जाएंगे, गाय ही चराऊँगा "
जब भगवान नहीं मने तब बाबा बोले- "ठीक है लाल तुम पंडत जी को बुला लाओ- वह गौ चारण का महुर्त देख कर बता देंगे"
बाबा की बात सुनकर भगवान् झट से पंडत जी के पास पहुंचे और बोले - "पंडत जी ! आपको बाबा ने बुलाया है, गौ चारण का महुर्त देखना है, आप आज ही का महुर्त बता देना में आपको बहुत सारा माखन दुंगा"
पंडित जी नन्द बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गड़ना करने लगे तब नन्द बाबा ने पूंछा
"पंडित जी के बात है ? आप बार-बार के गिन रहे हैं ?
पंडित जी बोले "क्या बताएं नन्दबाबा जी केवल आज का ही मुहुर्त निकल रहा है, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहुर्त नहीं है"
पंडित जी की बात सुन कर नंदबाबा ने भगवान् को गौ चारण की स्वीकृति दे दी।

भगवान जी समय कोई कार्य करें वही शुभ-मुहुर्त बन जाता है। उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरम्भ किया और वह शुभ तिथि थी "कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी" भगवान के गौ-चारण आरम्भ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई।

माता यशोदा ने अपने लल्ला के श्रृंगार किया और जैसे है पैरो में जूतियां पहनाने लगी तो लल्ला ने मना कर दिया और बोले "मैय्या यदि मेरी गौएँ जूतियाँ नहीं पहनती तो में कैसे पहन सकता हूँ। यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी जूतियां पहना दो" और भगवान जब तक वृन्दावन में रहे, भगवान ने कभी पैरो में जूतियां नहीं पहनी।

आगे-आगे गौवें और उनके पीछे बांसुरी बजाते भगवान उनके पीछे बलराम और श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल-गोपाल इस प्रकार से विहार करते हुए भगवान् ने उस वन में प्रवेश किया तब से भगवान् की गौ-चारण लीला का आरम्भ हुआ। जब भगवान् गौएं चराते हुए वृन्दावन जाते तब उनके चरणो से वृन्दावन की भूमी अत्यन्त पावन हो जाती, वह वन गौओं के लिए हरी-भरी घास से युक्त एवं रंग-बिरंगे पुष्पों की खान बन गया था।

गोपाष्टमी  से जुडी एक अन्य कथा भी है जो इस प्रकार है ......

गोपाष्टमी महोत्सव कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी महोत्सव मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत धारण किया था। आठवें दिन इंद्र अहंकार रहित श्रीकृष्ण की शरण में आए तथा क्षमायाचना की। भगवान कृष्ण का "गोविन्द" नाम भी गायों की रक्षा करने के कारण पडा़ था। उसके बाद कामधेनु ने भगवान कृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इन्हें गोविन्द के नाम से पुकारा जाने लगा। तभी से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जा रहा है। गौ अथवा गाय भारतीय संस्कृति का प्राण मानी जाती हैं। इन्हें बहुत ही पवित्र तथा पूज्यनीय माना जाता है। हिन्दु धर्म में यह पवित्र नदियों, पवित्र ग्रंथों आदि की तरह पूज्य माना गया है। शास्त्रों के अनुसार गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसलिए आर्य संस्कृति में पनपे सभी सम्प्रदाय के लोग उपासना तथा कर्मकाण्ड की पद्धति अलग होने पर भी गाय के प्रति आदर भाव रखते हैं। गाय को दिव्य गुणों की स्वामिनी माना गया है और पृथ्वी पर यह साक्षात देवी के समान है।
जय गौमाता जय गोपाल
हरे कृष्णा
जय जय श्रीराधे

मंगलवार, 13 नवंबर 2018

गौपाष्ठमी के पर्व पर गौमाता की तरफ से सभी देशवासियों को एक संदेश -

गौपाष्ठमी के पर्व पर गौमाता की तरफ से सभी देशवासियों को एक संदेश -

मैं गौमाता प्रत्येक मनुष्य को बल, बुद्धि, आयु, आरोग्य सुख, समृद्धि,  ऐश्वर्य,  किर्ती देती हूँ। जो अनुभव करते हैं, वे मुझे माता कहते हैं। और मैं भी उन पर संतानवत प्रेम करती हूँ।

संतान का कर्तव्य हैं, माँ की सेवा एवं रक्षा करना, और माँ का कर्तव्य हैं, अपनी संतान को जीवन देना। मैं अनादि काल से विश्व का कल्याण करती आ रही हूँ इसलिए मुझे विश्व जननी कहते हैं।

संसार के अंत तक मैं अपना कर्तव्य निभाऊंगी। चाहे वह धर्म का युग हो या विज्ञान का युग हो। संतान माँ पर प्रेम कर या उसे कष्ट दें, मुझे तो मेरी संतान से प्रेम करना ही हैं।

  मैं दूध, दही, घी, के रुप में अमृत प्रदान करती हूँ। जिससे मेरी संतान को सत्वगुणसंपन्न बनाती हूँ। मैं अपने "मूत्र ओर गोबर" के रुप में दवाइयां( पंचगव्य औषधीयाँ), खाद एवं कीटनियंत्रक देती हुँ। मेरे चरण स्पर्श से रज कण को शक्तिमान बनाती हूँ।

मेरे दूध, दही,  घी,  मूत्र और गोबर आदि को मिलाकर होनेवाला पंचगव्य एक अद्भुत तथा सर्वशक्तिमान रसायन है। मनुष्य के लिए यह "प्राण" है।

छत्तीस कोटि देवी देवता मेरे तन में विराजमान है ....
जो मेरी उपयोगिता समझेंगा, वही मेरी सेवा करेगा।
जिसके भाग्य में होगा वही अमृतमयी आनंद लूटेगा।
उसके लिए मैं सदैव माँ स्वरुप कामधेनु हूँ।
                    
          जय गोमाता जय गोपाल

गोपाष्टमी की सभी को हार्दिक बधाई !!!!

गोपाष्टमी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है और ब्रज संस्कृति और सम्पूर्ण भारत का एक प्रमुख पर्व है।
गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्रीकृष्ण का अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा।

कार्तिक, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए श्रीठाकुर जी ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन इन्द्र अहंकार रहित होकर भगवान की शरण में आये। कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से श्रीकृष्ण का नाम गोविन्द पड़ा। इसी समय से अष्टमी को *गोपाष्टमी* का पर्व मनाया जाने लगा।

इस दिन प्रात:काल गौओं को स्नान करा कर तथा गंध-धूप-पुष्प आदि से पूजा करें और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें, गायों को गो-ग्रास देकर उनकी प्रदक्षिणा करें तो सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती हैं।

गोपाष्टमी को सांयकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका अभिवादन और पूजन करके उनकी चरण रज को माथे पर धारण करें।

गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविन्द की तरह पूज्य है।शास्त्रों में कहा गया है- 'मातर: सर्वभूतानां गाव:' यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है।

दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ माता पृथ्वी पर साक्षात देवी के समान हैं।सनातन धर्म के ग्रंथों में कहा गया है- 'सर्वे देवा: स्थिता देहे सर्वदेवमयी हि गौ:।' गाय की देह में समस्त देवी-देवताओं का वास होने से यह सर्वदेवमयी है।