बुधवार, 12 जुलाई 2017

गो सेवा का धार्मिक महत्व क्यों!

गो सेवा का धार्मिक महत्व क्यों!

हिंदू धर्म में गाय को देवता और माता के समान मानकर उसकी सेवा शुश्रूषा करना मनुष्य का मुख्य धर्म माना गया है, क्योंकि उसके शरी में सभी देवता निवास करते हैँ। कोई भी धार्मिककृत्य ऎसा नहीं है, जिसमें गौ की आवश्यकता न हो। फिर चाहे वह यज्ञ हो, षोडश संस्कार हों या कोई अन्य आयोजन हो। महर्षि वसिष्ठ का कामधेनु के लिए प्राणों की बाजी लगाना, महर्षि च्यवन का अपने शरीर के बदले नहुष का चक्रवर्ती राज्य ठुकरा कर एक गाय का मूल्य निश्चित करना, जैसे प्रसंग यही दर्शाते हैं कि गाय से बढकर उपकार करने वाली अन्य कोई वस्तु संसार में नहीं है। यह माता के समान मानव जाति का उपकार करने वाली, दीर्घायु और निरोगता प्रदान करने वाली है। इसीलिए शास्त्र में कहा गया है-गावो विश्वस्य मातर:। अर्थात गाय विश्व की माता ही है। अग्निपुराण में कहा गया है कि गायें परम पवित्र और मांगलिक हैं। गाय का गोबर और मूत्र दरिद्रता दूर करता हैं। उन्हें खुजलाना, नहलाना, पानी पिलाना, पुण्यदायक है। गाय और उसकी बछिया के पीठ पर सहलाने से मधुमेह आदि में भी लाभ मिलता है। गोमूत्र, गोबर, गो दुग्ध, गो दधि, गोघृत, कुशौदक-इनका मिश्रण पंचगव्य सभी अशुभ अनिष्टों को दूर करता है। गो ग्रास देने वाला सदगति प्राप्त करता है। गोदान करने से समस्त कुल का उद्धार होता है। गो के श्वास से भूमि पवित्र होती है। गाय के स्पर्श से पाप नष्ट होते हैं। पंचगव्य पीने से पतित का भी उद्धार होता है। पारस्कर गृह्यसूत्र (113127) में कहा गया है-पारस्कर गृह्यसूत्र (113127) में कहा गया है- माता रूद्राणां दुहिता वसूनाम्। स्वसाआदित्यानाम्अमृतस्य नाभि:।। -अथर्ववेद अर्थात गाय रूद्रों की माता है, वसुओं की पुत्री है, सूर्य की बहन है और घृतरूप अमृत का केंद्र है।मार्कण्डेयपुराण में कहा गया है कि विश्व का कल्याण गाय पर आधारित है। गाय की पीठ-ऋग्वेद, धड-यजुर्वेद, मुख-सामदेव, ग्रीवा-इष्टापूर्ति व सत्कर्म, रोम साधु तथा सूक्त हैं। गोबर और गोमूत्र में शांति और पुष्टि है। जहां गाय रहती है, वहां पुण्य क्षीण नहीं होते। वह जीवन को धारण कराती है। स्वाहा, स्वधा, वषट् और हंतकार-गाय के ये चार धन हैं। इस गाय से सबकी तृप्ति होती है। विष्णुस्मृति में कहा गया है कि गौओं के निवास से भूमि पवित्र होती है। गोएं पवित्र व मंगलमय हैं। उनसे समस्त लोक का कल्याण है। गायों से यज्ञ सफल होते हैं। उनकी सेवा से पाप नष्ट होते हैं। गौओं के बाडे में तीर्थो का निवास है। उनकी रज से बुद्धि और संपदा बढती है। उन्हें प्रणाम करने से पुण्य मिलता है। स्कंदपुराण में कहा गया है कि गौओं के गोबर से घर आंगन और देव मंदिर भी पवित्र हो जाते है। अथर्ववेद में कहा गया है कि गौओं के दूध से निर्बल मनुष्य बलवान और हष्ट-पुष्ट होता है तथा फीका और निस्तेज मनुष्य तेजस्वी बनता है।
गीता में श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि गायों में कामधेनु मैं ही हूं। महाभारत, आश्वमेधिक पर्व में कहा गया है कि दान में दी हुई गौ अपने विभिन्न गुणों के कारण कामधेनु बन कर परलोक में दाता के पास पहुंचती है। वह अपने कर्मो से बंधकर घोर अंधकारपूर्ण नरक में गिरते हुए मनुष्य का उसी प्रकार उद्धार कर देती है, जैसे वायु के सहारे से चलती हुई नाव मनुष्य को महासागर में डूबने से बचाती है। जैसे मंत्र के साथ दी हुई औषधि प्रयोग करते ही मनुष्य के रोगों का नाश कर देती है, उसी प्रकार सुपात्र को दी हुई कपिला गौ मनुष्य के सब पापों का तत्काल नष्ट कर डालती है।
गोदान क्यों!

महाभारत, कूर्मपुराण, याज्ञवल्क्य स्मृति आदि अनेक ग्रंथों में कहा गया है कि गोदान करने वाले मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर सुखपूर्वक जीवन जीते हैं और मृत्यु के बाद स्वर्ग जाते हैं।ब्र्हामण को गाय देने के पीछे मान्यता यही है कि जब प्राणी मरकर स्वर्ग जाता है, तब उसकी राह में वैतरणी नदी पडती है। दान में दी हुई गाय की पूंछ पकडकर प्राणी वैतरणी को पारकर स्वर्ग पहुंच जाता है।




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