शनिवार, 27 मई 2017

मोदी सरकार ने उठाया गौ रक्षा के लिए पहला सार्थक कदम :-

जय गौ माता
तीन साल के बाद मोदी सरकार ने उठाया गौ रक्षा के लिए पहला सार्थक कदम :-
केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गया। नये कानून की रूप रेखा
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केंद्र सरकार ने 25 मई को गौरक्षा पर पहले केंद्रीय कानून को नोटिफाई कर दिया. माने नए कानून का ऐलान कर दिया. इसके तहत पूरे देश में गाय को मारने के लिए नहीं बेचा जा सकेगा. माने वो कत्लखाने पर नहीं बेची जा सकेंगी. अगले तीन महीनों में ये देश-भर में लागू हो जाएगा.

अब तक गौरक्षा पर देश के अलग-अलग राज्यों के अपने कानून थे. इसके अलावा खेती के काम आने वाले जानवरों के लिए प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल्स एक्ट (1960) के नियम थे. अब केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने कुछ नए नियम लागू किए हैं जो पूरे देश में लागू होंगे. ये नियम पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे ने पारित कराए थे. 18 मई 2017 को दवे का निधन हो गया था. नए नियमों की खासम-खास बातें ये रहींः

1. देश की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से 50 किलोमीटर अंदर तक के इलाकों में जानवरों का बाज़ार नहीं लगाया जा सकेगा. गाय-बैल इन्हीं बाज़ारों में बेचे जाते हैं. ये नियम जानवरों की देश से बाहर होने वाली तस्करी को ध्यान में रखकर बनाया गया है. भारत से बड़ी संख्या में गाय-बैलों स्मगल होकर बांग्लादेश पहुंचते रहे हैं.

2. इसी तरह राज्यों की सीमा से 25 किलोमीटर के अंदर तक भी पशु-बाज़ार नहीं लगाए जा सकेंगे. ये राज्यों के बीच होने वाली स्मगलिंग रोकने के लिए है. अब अगर किसी को जानवर राज्य की सीमा के पार ले जाने हुए तो राज्य सरकार के ‘नॉमिनी’ की अनुमति लेनी पड़ेगी.

3. अब सारे पशु-बाज़ारों के लिए ज़िला पशु-बाज़ार कमिटी की इजाज़त ज़रूरी होगी. इस कमिटी का अध्यक्ष ज़िले का मैजिस्ट्रेट होगा. कमिटी में दो प्रतिनिधी राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एनिमल वेलफेयर ग्रुप के भी होंगे.

4. पशु बाज़ार कैसे हों, इसके लिए भी 30 नियमों का ऐलान हुआ है. इनके मुताबिक पशु बाज़ारों में पानी, पंखे, रैम्प और डॉक्टर जैसी सुविधाओं का इंतज़ाम रखना होगा. बीमार जानवरों के लिए अलग से इंतज़ाम करना होगा.

5. पशु-बाज़ार लाने-ले जाने के लिए आमतौर पर ट्रक काम में लाए जाते हैं. इनके लिए भी नियम बनाए गए हैं. अब एक वेटरनरी इंस्पेक्टर इस बात का ध्यान रखेगा कि जानवरों को ट्रक में सही तरह से चढ़ाया-उतारा गया है कि नहीं. ये वेटरनरी इंस्पेक्टर किसी जानवर को बेचने के लिए ‘अनफिट’ भी घोषित कर सकेगा.

6. अब गाय-बैल बेचने से पहले काफी काग़ज़ी कार्यवाही करनी होगी. बेचने वाले और खरीदने वाले दोनों को सबूत पेश करना होगा कि वो किसान हैं. इसके लिए ज़मीन के कागज़ात दिखाने होंगे.

7. गाय खरीद की पांच रसीदें बनानी होंगी. ये अलग-अलग विभागों में जमा होंगी. एक राजस्व (रेवेन्यू) विभाग में देनी होगी, एक इलाके के पशु अस्पताल के डॉक्टर के पास जमा होगी और एक पशु-बाज़ार कमिटी के पास जमा होगी. बची दो रसीदों में से एक-एक बेचने वाले और खरीदने वाले के पास रहेगी.

8. जिन जानवरों को सरकारी शेल्टर में रखा जाएगा उनके मालिकों को उनका खर्च उठाना होगा. एक जानवर के लिए ये फीस कितनी होगी ये राज्य सरकारें तय करेंगी और हर साल के 1 अप्रैल को इस फीस का ऐलान होगा. जो किसान ये फीस नहीं चुकाएंगे, ये फीस उनकी बाकी देनदारियों में जोड़ दी जाएगी.

संविधान के आर्टिकल 48 में डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी दिए हैं. माने वो उद्देश्य जिनकी तरफ सरकार को कदम बढ़ाने चाहिए. देश में गौहत्या बैन करना इन्हीं में से एक है. ये पहली बार है कि किसी सरकार ने पूरे देश के लिए इस तरह के नियमों का ऐलान किया हो. इस लिहाज़ से ये नए नियम खास हो जाते हैं. नीयम किस तरह लागू किए जाएंगे, ये फिलहाल सामने आना बाकी है. लेकिन इतना तय है कि नए नियमो से अब गायो की खरीद फरोख्त नियंत्रित होगी और गौ हत्या मुक्त भारत की दिशा में ये एक सार्थक पहल है।
वन्दे गौ मातरम ।

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शुक्रवार, 26 मई 2017

भारतीय संस्कृति का प्राणभूत तत्व :-

भारतीय संस्कृति का प्राणभूत तत्व :-
गौ-भक्ति भारतीय संस्कृति का प्राणभूत तत्व है। उसका साक्षात्कार हमारे इतिहास में पग-पग पर पाया जाता है। इतिहास इस बात का साक्षी हैं कि भारत में सदा के लिए रहने की इच्छा से जो परकीय शासक आये थे, वे भी इस प्रभाव से अपने का बचा न पाये। हम नि:संदेह कह सकते हैं कि भारत में राष्ट्रीय कहलाने वाला शासन यदि गौ रक्षा के विषय में उदासीन रहेगा तो जनता के हृदयों पर अधिराज्य नहीं कर सकेगा।
क्योंकि .........
गोभिर्विप्रैः च वेदैश्च सतीभिः सत्यवादिभिः ।
अलुब्धैर्दानशीलैश्च सप्तभिर्धार्यते मही ।।
गाय, ब्राह्मण, वेद, सती स्त्री, सत्यवादी इन्सान, निर्लोभी, और दानी – इन सात की वजह से पृथ्वी टिकी हुई है।
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।

गोपाल-पथ अनुसरण :-

गोपाल-पथ अनुसरण :-
गौ की पूजा, रक्षण, पालनादि करने से हमारे अन्दर मानवता का विकास होता है और हम ‘नर से नारायण' बनने का मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। पूर्णावतार भगवान गोपालकृष्ण ने इस दिशा में हमारा पथ-प्रदर्शन किया हैं और भारतवर्ष को ऐतिहासिक काल में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उन सबने अपने अपने पंथ तथा सम्प्रदायादि भेदों को अभिनिवेश से ऊपर उठ कर, समान भाव से गौ का आदर करना हमें सिखाया है।

भूमाता का प्रतीक :-

भूमाता का प्रतीक :-
एक ओर जहाँ हमारी संस्कृति ने गौ को मानवेतर जीव-सृष्टि क प्रतिनिधि के रूप में हमारे सामने खड़ा किया है, तो दूसरी ओर उसी को भू-माता के प्रतीक के रूप में भी वर्णित किया है। पाप का भार असह्य होने पर पृथ्वी गौ का रूप लेकर भगवान् के पास पहुँचती है और अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती है, ऐसा वर्णन स्थान-स्थान पर हमारे पुराणों में मिलता है। भूमि को हम माता मानते हैं, उसी के कारण हमारी धारणा होती है। वेद में कहा है ‘मताभूमि: पुत्रोऽह पृथिव्या:'। उसी प्रकार ‘गावो विश्वस्य मातर:' यह भी कहा गया है।


सौम्य प्राणियों की प्रतिनिधि "गो' :-

सौम्य प्राणियों की प्रतिनिधि "गो' :-

परन्तु मानव अल्प शक्ति वाला है। सभी जीवों का भला करना, किसी को भी कष्ट न देना, वह एकाएक कंसे साध सकता है? सबको साथ एकात्मता का साक्षात्कार करना उसकी असम्भव सा प्रतीत होता है। व्याघ्रसिंहादि क्रूर पशुओं और सांप, बिच्छू आदि अन्यान्य जीवों की पीड़ा देने वाले जंतुओं पर प्रेम कंसे किया जाये, यह आशांका उसके मन में उठती है। उसी प्रकार हाथी, घोड़ा, ऊट, गधा इत्यादि प्राणियों से काम लेने की भी वह बाध्य हो जाता है। उस अवस्था में प्राणीमात्र की आत्मीयता का अनुभव करने के पथ पर प्रथम कदम के नाते ‘गौ' की अन्य सभी जीवों का प्रतिनिधि मान कर उसकी रक्षा व आदर करने की व्यवस्था हमारे समाज में प्राचीन काल से रूढ़ हो गयी, क्योंकि ‘गौ' स्वभाव से ही सौम्य, शांत एवं सात्विक होती है। जो व्यक्ति उस पर भी प्रेम नहीं कर सकेगा, वह आगे बढ़ ही नहीं सकेगा।
‘गौ' को हमने अपने परिवार का एक अंग माना है। उसकी सम्बन्ध में हमारी जो आत्मीयता की धारणा है, उसके मूल में हमारे हृदय की कृतज्ञता एवं ऋण-शोधन की भावना है। उसमें उपयुक्ततावाद या आर्थिक दृष्टिकोण को कोई विशेष स्थान नहीं मिल सकता। बैल को हम इसलिए प्यार नहीं करते कि वह हमारे खेत जोतने का काम में आता है, बल्कि इसलिए करते हैं कि वह हमारे दूधभाई जैसा है।

शनिवार, 13 मई 2017

क्या आप जानते हैं जिस गौमाता की आप पूजा करते हैं, उसे किस प्रकार निर्दयतापूर्वक मारा जाता है ?

क्या आप जानते हैं जिस गौमाता की आप पूजा करते हैं, उसे किस प्रकार निर्दयतापूर्वक मारा जाता है ?

कत्लखाने में स्वस्थ गौओं को मौत के कुँए में 4 दिन तक भूखा रखा जाता है| अशक्त होकर गिरने पर घसीटते हुए मशीन के पास ले जाकर उन्हें पीट-पीटकर खड़ा किया जाता है| मशीन की एक पुली (मशीन का पकड़नेवाला एक हिस्सा) गाय के पिछले पैरों को जकड़ लेती है | तत्पश्चात खौलता हुआ पानी 5 मिनट तक उस पर गिराया जाता है| पुली पिछले पैरों को ऊपर उठा देती है| जिससे गायें उलटी लटक जाती हैं| फिर इन गायों की आधी गर्दन काट दी जाती है ताकि खून बाहर आ जाये लेकिन गाय मरे नहीं | तत्काल गाय के पेट में एक छेद करके हवा भरी जाती है, जिससे गाय का शरीर फूल जाता है | उसी समय चमड़ा उतारने का कार्य होता है | गर्भवाले पशु का पेट फाड़कर जिन्दा बच्चे को बाहर निकला जाता है | उसके नर्म चमड़े को (काफ-लेदर) को बहुत महंगे दामों में बेचा जाता है|

गुरुवार, 4 मई 2017

ग्लोबलाइजेशन के इस युग में गाय

ग्लोबलाइजेशन के इस युग में गाय 

हाल में गोरक्षण और संवर्धन का मुद्दा तमाम मीडिया बहसों  का सबब बना, लेकिन ज्यादातर बहसें  निर्गुण निराकार रूप में रहीं। कानून की शक्ल में संसद में बहस भले ही हो जाए लेकिन इतने भर  से काम चलने वाला नहीं। कानून बना कर व्यवस्था के सुधारों को भले ही ये बात अटपटी लगे लेकिन  जमीन पर कहीं सगुण साकार रूप में गोसेवा तो हार्ट, हेड और हुनर यानि हाथों से हो सकेगी। गोरक्षा की पैरोकारी में लगे लोग इस दिशा में सोच तो रहे हैं। विषमुक्त खेती, जीरो बजट खेती, जैविक खेती, इत्यादि प्रयोगों में गोसेवा और संवर्धन की सम्भावना भी खूब है। उन दीवानों के लिए ये सब खुशनुमाई सबब बन सकता है। ग्लोबलाइजेशन वाले वर्तमान परिवेश में भारतीय संस्कृति में गाय, गाँव, गँगा वालों के लिए उम्मीदें भी।

गोचर भूमि बनाम डेरी फार्म

गोचर भूमि के लिए जो चारागाह नियत हुए अमूमन उनके नजदीक ही जलाशय भी होते हैं। इसके बगैर प्राकृतिक रूप से स्थायी चारागाह नहीं बनते। गोचर भूमि में औसतन पच्चीस वनस्पतियाँ होती हैं जो औषधीय रूप में गाय का स्वास्थ्य ठीक करने में मददगार होती हैं। वन मिश्रित गोचर भूमि के पशुओं का दूध उच्च गुणवत्ता वाला और प्राकृतिक पोषक तत्वों से भरपूर होता है। गोचर भूमि में चारे की उपलब्धता साल न हो सके तो ऐसे में भूसे खली के चारे का उपयोग किया जा सकता है। शहरों के इर्द-गिर्द औद्योगिक डेरी फार्मों में प्राकृतिक रूप से चारे और पोषक वनस्पतियों के ना होने से पशु का स्वस्थ्य और दूध की गुणवत्ता दोनों पर असर पड़ता है। आज़ादी का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी बहुत महत्वपूर्ण है|

नकुल संहिता है गो संवर्धन की बाइबिल

गोपालन गो संवर्धन के लिए वर्णित वैदिक विधियों का संकलन है नकुल संहिता। विद्वान बताते हैं कि संस्कृत में इस ग्रन्थ की मूल प्रति जर्मनी  में उपलब्ध है। भारत में इसका अंग्रेजी अनुवाद ही उपलब्ध हो पाया है। उसी से काम चलाया जा रहा है। इस शास्त्र और विधा में जर्मनी ने महारथ हासिल की है। गोपालन की पद्धतियों पर जबरदस्त अनुसन्धान करके जर्मनी ने दुधारू हों अथवा अदुग्ध सभी गो वंश को पोषण संरक्षण सुनिश्चित किया है। इसका सबसे नायाब नज़ारा जर्मनी के गोबर आधारित उर्जा की तकनीक और उसके इर्द गिर्द तमाम उद्योगों से मिलता है। जर्मनी के नेतृत्व में यूरोपियन यूनियन ने पर्यावरण सुरक्षा के लिए सभी देशों की उर्जा आवश्यकताओं के पच्चीस प्रतिशत हिस्से को जैविक उर्जा से पूरा करने का लक्ष्य तय किया है। जो मूलतः के लिए गाय और गोबर की तकनीकों पर अमल करके हासिल की जाएगी।

गाय होती है खुद की डॉक्टर

भारतीय गाय को सबसे ज्यादा समझदार प्राणी माना गया है। लम्बे समय तक गाय और गाँव के अध्ययन और प्रयोगों से जुड़ी रहीं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. लीना गुप्ता बताती हैं कि सगर्भा गायें यानि वो गायें जो गाभिन हों वे कच्चे गोखुरू समेत लगभग सत्तर वनस्पतियों को पहचान कर खाती हैं। वनस्पतियों की पहचान प्रकृति प्रदत्त गुण है या अनुवांशिक यह अनुसन्धान का विषय हो सकता है।  अपने लिए औषधियां चुनने के साथ-ही साथ रोज लगभग ग्यारह किलोमीटर की वाक यानि चहलकदमी भी करती हैं गोमाता। अगर आजाद तरीके से जिंदगी हासिल हो तो अपने जीवन और स्वस्थ्य का ख्याल तो खुद रखेंगी ही साथ ही साथ इन्सान के लिए भी तमाम तरीके से लाभप्रद होंगी।



गौ महिमा स्लोगन / गौ विचार पोस्टर

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