सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

धेनु चालीसा

श्री सदगुरुदेव चरण कमलेभ्यो नमः!
श्रीमन नित्य निकुंज विहारिणी नम: !
श्री स्वामी हरिदासो विजयते
जय श्री राधे !            श्री  सुरभ्यै नमः              जय श्री राधे!

                           !    धेनु चालीसा   !
दोहा -
गौ    महिमा    गान   करहुं,  श्रीगुरु   पद   रज   चित   लाए ।
पाप,  ताप   सब    मिटि  जाहीं,   उर  अति  आनंद   समाए ।।

अति    पावन   मॉ    शबद   है ,   लेत   मन    होई    निशंक ।
सत्य,   प्रेम,   करुणा   देहु,    मातु     लीजै      निज    अंक ।।

चौपाई-
जय     सुरभि    माता   सुखकारी ।
काल   को    बस   में  राखनवारी ।।
नयनों    में   सविता,   चंदा - तारे ।
तुमहिं  से   जीवित   प्राणी    सारे ।।
हर    क्षन   तुमको   ध्यावे    जोई । 
ब्रम्हज्ञान      पावै      नर     सोई  ।।
तुम्हरी  परिक्रमा गनपति  कीन्ही ।
प्रथम   पूजन  की  पदवी  लीन्ही ।।
ऋषि  दधीचि  ने  तुमको  ध्याया ।
महा     वज्र  सम  देह  को  पाया ।।
सब  मिलि   सागर   मथनो  जाई ।
कामधेनु    रूप     प्रकटी     माई ।।
ब्रह्मा,   विषनू     नित   गुन  गावें ।
तुम्हें    सदाशिव     शीश   नवावें ।।
पंचगव्य        तुम्हरो      वरदाना ।
तुम्हरी   महिमा  कोऊ न   जाना ।।
तुम  बिन   पार  वैतरणी  न  होई ।
जप, तप  सुमिरन सफल न कोई ।।
बिन  तुम्हरे   सब  वरन  है  हीना ।
क्षत्रि,  वैश्य  नहीं   कोउ   प्रवीना ।।
महिमा तुम्हरी  दिन-रात है गाता ।
तब  कोई  जाके  विप्र  पद  पाता ।।
सहस्त्रबाहू   जब     हठ    कीन्हा ।
गौसुत  को  अति  कष्ट  था दीन्हा ।।
परशुराम    तब     किया   संहारा ।
सुत,  जस   अरु   संपदा  उजारा ।।
वशिष्ठ   मातु   तुमको  है  ध्यायो ।
रघुकुल  के   गुरु  पद  को  पायो ।।
तुम्हरी  दिलीप  शरन  जब आए ।
सुत   भगीरथ     सो    तब   पाए ।।
गौसुत    श्रृंगी     जगन   करायो ।
तब  प्रकटे     प्रभु   राम  कहायो ।।
गौचरु  अंजनी   दियहीं  समीरा ।
आए   धरा   पर    मारुत    वीरा ।।
तुम्हरो    रूप   है   धरती   माता ।
तुमहिं   सबकी  भाग्य    विधाता ।।
तैंतिस   कोटि    देव   जस   गाई ।
जनक  सुता  तुम    सीता कहाई ।।
सिद्धार्थ    भए    धेनु    शरनागत ।
कहलाए    तब     बुद्ध   तथागत ।।
जब   तजि  पृथु  सब  मान  दियो ।
भयो   वत्स    पय    पान   कियो ।।
गोकर्ण   तुम्हारे    गर्भ   से  आता ।
धुंधकारी     पापी      तर    जाता ।।
वा   तऊ   पूरन   शव   है   काया ।
जापे    तुम्हरी    परी    न    छाया ।।
वा  नर सम  जग में कौन अभागा ।
जा  मन  ने  गौ   मॉं  को    त्यागा ।।
जब बालक  पहला  शबद उच्चारे ।
मॉं  मॉं   कह   तुमहिं  को  पुकारे ।।
वृषभानु  पिता  अरु  कीरति माई ।
श्रीराधा     बन      तुमहिं     आईं ।।
श्री   हरिदास     पियारी    श्यामा ।
बृज  रज  की   तुमसे   है  महिमा ।।
जाको   दयाल    भयी   तू    मैया ।
वाके    इत    उत   डोले   कन्हैया ।।
गोवर्धन     को     धारण    कीन्हो ।
धेनु  चरन  रज  मुख  धरि  लीन्हो ।।
तुलसी-धेनु    वंदन    जहां    होई ।
मानहु     धाम     वृंदावन      सोई ।।
तहँ  गोविंद   नित  करत निवासा ।
राखहु  मम    मन   दृढ   विश्वासा ।।
गोवत्स   करहिं   नित  नए  खेला ।
गौधूरी    सम   नहीं   कोऊ   बेला ।।
रुद्रों   की   माता,     तुम   गायत्री ।
तीनहुं    लोकन    पालन    करत्री ।।
तुम्हरी     शरन    विश्वरथ   आया ।
ब्रह्म   ऋषि    विश्वामित्र    बनाया ।।
तुम्हरे    सुत   युगऋषि  हितकारी ।
महाकाल        अंशा       अवतारी ।।
चौबिस   वरष  तप   यही   कीन्हा ।
ध्यान  हृदय   तुम्हरो  धरि   लीन्हा ।।
तुम   बिन   नाहीं    कोई  खिवैया ।
पार     करहु     मझधार  से   नैया ।।
मातु   दरस  तेरो  हर   क्षन   पाऊँ ।
गुरुदेव  चरन   नख  शीश  नवाऊँ ।।
यह    धेनु   चालीसा    गावे   जोई ।
सब   सिद्ध     मनोरथ  ताके  होई ।।
कर   दोऊ   जोरहुं,   परहुं     पैंया ।
कृपा   करहु  श्यामाक्ष   की   मैया ।।

दोहा-
श्रीकृष्णप्रिया   करुणा   करहु,   मन  नहिं   रहे  कोऊ  शोक ।
काम,  क्रोध,  अज्ञान   नसौ,   मोहे      देहु    वास    गौलोक ।।

                                         ! माँ !

   "गौ  महिमा वरनी ना जावे । नाहीं पार कोऊ मति पावे।।"
 
        

देसी गौ माता के गौबर से धरती लिपने का प्रभाव

देसी गौ माता के गौबर से धरती लिपने का प्रभाव

अगर कोई अंत समय जो मृत्यु के निकट हो, बिमार हों तो उन्हे पलंग पर नहि रखना चाहिये...
उन्हे तुरंत धरती पर लेटाना चाहिये.
आम तौर पर मरने के बाद ये क्रियांयें देखने को मिलती है वे भी तब,, जब पंडित जी बताते हैँ..

लेकिन मृत्यु से पहले क्या करना चाहिये ताकि मरने वाले की सदगति हो या उसको कष्ट कम हो...

क्योकिं शास्त्रों पूराणों मे वर्णन है की अगर देसी गौ माता के गौबर से भूमी लेपन किया जाये उसपे काले तिल डाले जायें ,दूर्वा रखी जाये फिर उसपे बिमार अंत समय की घङी गिन रहे व्यक्ति को लिटाया जाये
मुख में तुलसी पत्र, गंगा जल आदि पवित्र सामग्री का प्रयोग करें
तो मरने वाले को यमदूत सपर्श नहि करते और न हि मरने वाले को नर्क जाना पङता है...

वैसे तो कर्मों का फल जरुर मिलता ही है लेकिन ये सब भी ऐक कर्म ही है इसका फल भी जरुर मिलेगा...

हवन, यज्ञ से पहले भी गौबर का ही लेपन किया जाता है इसकी बङी महिमा है तभी हमारे धर्म में ये बार बाक बताया गया है..
बाकी संसकार सही से नहि हुये लेकिन अब तो अंतिम बार है तो विधि पूर्वक करें
अब तो मरने वाला भी कोई विरोध न करेगा..

और गौ माता के गौबर की महिमा तो वेद भी गाते है।
     खास बात ये है कि यह क्रिया शास्त्र सनातन धर्म को मानने वाले जरुर करते थे करते है और करेंगे।

क्योकिं अग्नि का प्रभाव जहाँ होता है धूआं भी वही ही होता है
सनातन धर्म के प्रतिएक कार्य में बहुत उच्च कोटि का विज्ञान समाया है...

गौ माता की महिमा अपार है..

गौ कथा/Gau Katha

((( गौ कथा )))

ये कथा भीष्म पितामह ने युधिषिठर को सुनाई थी .
असल में भीष्म पितामह का कहना था कि गाय का मूत्र और गोबर इतना गुणवान है कि इससे हर रोग का निवारण हो सकता है
इतना ही नहीं इसमें माँ लक्ष्मी का भी वास होता है इसलिए इसे बहुत शुभ माना जाता है  बस यही कारण है कि इस दीवाली के मौके पर हम आपको ये कथा सुना रहे है और गाय की पवित्रता भी दर्शा रहे है
हमारे हिन्दू धर्म में गाय को माँ का दर्ज़ा दिया जाता है . कुछ लोग इससे गाय माँ और कुछ गाय माता कहते है . यहाँ तक कि अगर हम शास्त्रो का इतिहास देखे तो गाय भगवान् कृष्ण को बहुत प्रिय लगती थी इसलिए तो वो ज्यादातर समय अपनी गायों के साथ व्यतीत करते थे . ये अलग बात है कि आज कल गाय को खाने की वस्तु के रूप में भी प्रयोग किया जाने लगा है जिसके लिए बहुत खेद है .

हम जानते है कि केवल हमारे खेद करने से ये पाप रुकने नहीं वाला इसलिए समझाने से कोई फायदा नहीं बस उम्मीद कर सकते है जो लोग गाय को एक वस्तु समझ कर उसका सेवन करते है वो भी जल्द ही ये सब बन्द कर दे

भीष्म पितामह ने सुनाई युधिषिठर को ये कथा..
---एक बार लक्ष्मी जी ने मनोहर रूप यानि बहुत ही अध्भुत रूप धारण करके गायों के एक झुंड में प्रवेश कर लिया और उनके इस सुंदर रूप को देखकर गायों ने पूछा कि, देवी . आप कौन हैं और कहां से आई हैं?

गायों ने ये भी कहा कि आप पृथ्वी की अनुपम सुंदरी लग रही हो . तब गायों ने एकदम से कहा कि सच सच बताओ, आखिर तुम कौन हो और तुम्हे कहाँ जाना है ?
तब लक्ष्मी जी ने विन्रमता से गायों से कहा कि तुम्हारा कल्याण हो असल में मैं इस जगत में अर्थात संसार में लक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध हूं और सारा जगत मेरी कामना करता है मुझे ही पाना चाहता है . मैंने दैत्यों को छोड़ दिया था और इसलिए वे सदा के लिए नष्ट हो गए
इतना ही नहीं मेरे आश्रय में रहने के कारण इंद्र, सूर्य, चंद्रमा, विष्णु, वरूण तथा अग्नि आदि सभी देवता सदा के लिए आनंद भोग रहे हैं। इसके बाद माँ लक्ष्मी ने कहा कि जिनके शरीर में मैं प्रवेश नहीं करती, वे सदैव नष्ट हो जाते हैं और अब मैं तुम्हारे शरीर में ही निवास करना चाहती हूं
लेकिन इसके बाद भी कथा अभी खत्म नहीं हुई क्योंकि गायों ने अब तक माँ लक्ष्मी को अपनाया नहीं था .

गायों ने क्यूँ किया माँ लक्ष्मी जी का त्याग..
देवी लक्ष्मी की इन बातों को सुनने के बाद गायों ने कहा कि तुम बड़ी चंचल हो, इसलिए कभी कहीं भी नहीं ठहरती . इसके इलावा तुम्हारा बहुतों के साथ भी एक सा ही संबंध है, इसलिए हमें तुम्हारी इच्छा नहीं है तुम्हारी जहां भी इच्छा हो तुम चली जाओ तुमने हमसे बात की, इतने में ही हम अपने आप को तुम्हारी कृतार्थ यानि तुम्हारी आभारी मानती हैं

गायों के ऐसा कहने पर लक्ष्मी ने कहा , कि ये तुम क्या कह रही हो ? मैं दुर्लभ और सती हूं अर्थात मुझे पाना आसान नहीं ,पर फिर भी तुम मुझे स्वीकार नहीं कर रही, आखिर इसका क्या कारण है ? यहाँ तक कि देवता, दानव, मनुष्य आदि सब कठोर तपस्या करके मेरी सेवा का सौभाग्य प्राप्त करते हैं अत:तुम भी मुझे स्वीकार करो . वैसे भी इस संसार में ऐसा कोई नहीं जो मेरा अपमान करता हो .

ये सब सुन कर गायों ने कहा , कि हम तुम्हारा अपमान या अनादर नहीं कर रही, केवल तुम्हारा त्याग कर रही हैं और वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि तुम्हारा मन बहुत चंचल है . तुम कहीं भी जमकर नहीं रहती अर्थात एक स्थान पर नहीं रुक सकती . इसलिए अब बातचीत करने से कोई लाभ नहीं तो तुम जहां जाना चाहती हो, जा सकती हो इस तरह से गायों ने माँ लक्ष्मी का त्याग कर दिया क्योंकि गायों को मालूम था कि लक्ष्मी कभी किसी एक के पास नहीं रहती बल्कि पूरे संसार में घूमती है पर फिर भी माँ लक्ष्मी ने हार नहीं मानी और इतना सब होने के बाद भी वार्तालाप ज़ारी रखी
अब आखिर में माँ लक्ष्मी ने कहा , गायों. तुम दूसरों को आदर देने वाली हो और यदि तुमने ही मुझे त्याग दिया तो सारे जगत में मेरा अनादर होने लगेगा . इसलिए तुम मुझ भी पर अपनी कृपा करो मैं तुमसे केवल सम्मान चाहती हूँ

तुम लोग सदा सब का कल्याण करने वाली, पवित्र और सौभाग्यवती हो तो मुझे भी बस आज्ञा दो, कि मैं तुम्हारे शरीर के किस भाग में निवास करूं?
इसके बाद गायों ने भी अपना मन बदल लिया और गायों ने कहा, हे यशस्विनी . हमें तुम्हारा सम्मान आवश्य ही करना चाहिए  इसलिए तुम हमारे गोबर और मूत्र में निवास करो, क्योंकि हमारी ये दोनों वस्तुएं ही परम पवित्र हैं।

तब माँ लक्ष्मी ने कहा, धन्यवाद् और धन्यभाग मेरे, जो तुम लोगों ने मुझ पर अनुग्रह किया यानि मेरे प्रति इतनी कृपा दिखाई मैं आवश्य ऐसा ही करूंगी . मैं सदैव तुम्हारे गोबर और मूत्र में ही निवास करूंगी सुखदायिनी गायों अर्थात सुख देने वाली गायों तुमने मेरा मान रख लिया , अत: तुम्हारा भी कल्याण हो बस यही वजह है कि गाय की इन दो वस्तुओ को लक्ष्मी का ही रूप समझा जाता है .

             इस कथा को पढ़ने के बाद ये तो समझ आ ही गया होगा कि गाय का धार्मिक ग्रंथो के अनुसार कितना महत्व है।

रसखान - काव्यमें गौ और गोपाल

रसखान - काव्यमें गौ और गोपाल

एक कविता के माध्यम से रसखान अपनी भावनाओंको व्यक्त करते हुए कहते हैं कि मैं भी ग्वाल-बालों और सुंदर गायोंके साथ वनमे जाऊंगा और वहाँ तान भरकर गायन करुंगा | वहाँ की गुंजा-मालाओंपर मै गजमुक्ताकी मालाएँ न्यौछावर करता हूँ | वहाँके कुंजोंकी याद आनेपर मेरे प्राण फड़फड़ाने लगते हैं | रत्नजटित सोनेके महलोंसे भी गोबरसे  लिपी-पुती मिट्टीकी कुटिया मुझे प्यारी लगती है | ईन बड़े बड़े महलोंसे भी श्रेष्ठ मुझे ब्रज की गायोंके लिए बने बाड़े लगते हैं -

ग्वालन सँग जैबो वन ऐबौ सुगाईन सँग
         हेरी तान गैबौ  हा हा नैन फरकत हैं |
ह्याँ के गजमोती माल बारौं गुंजमालन पै
          कुंज सुधि आए हाय प्रान धरकत हैं ||
गोबार को गारो सुतौ मोहि लगै प्यारौ
          कहा भयो महल सोने को जटत मरकत हैं |
मंदिर ते ऊँचे यह मंदिर हैं द्वारिका के
           ब्रज के खिरक मेरे हिए खरकत हैं ||

तो अलग धर्म के होने के बाद भी रसखान के भाव कीतने सुंदर है गौमाता के प्रति
वे कहते हैं कि , ऊनको गोबरसे लिपी पुती मिट्टी की कुटिया ऊनको रत्नजटित महलों से भी विशेष प्यारी लगती हैं, और ऊन महलों से भी श्रेष्ठ ऊनके लिए ब्रज की गायोंके लियें बने बाड़े लगते

सांयकाल गोधुलि वेलामें बाँसुरी बजाते मनमोहन गोपाल वनसे वापस लौट रहे हैं , ऊनके साथ गायें और ग्वाल-बाल हैं | ब्रजबालाएँ दिनभर ऊनके वियोगसे व्यकुल रहती हैं, अतः ऊनके दर्शन हेतु वे झरोखोंपर आ जाती हैं, रसखान ईस दृश्य का शब्द चित्र एक सवैयेमें ईसप्रकार वर्णन करते है

आवत हैं बन तैं मनमोहन गोहन संग लसै ब्रज ग्वाला |
बेनु बजावत गावत गीत अमीत इतै करिगौ कछु ख्याला ||

वस्तुतः रसखान ईन सारी रचनाओं मे गोपियों और ग्वालबाल के माध्यम से अपने ही मनोभाव व्यक्त करते हैं ,
वे श्रीकृष्ण के दर्शनको सदैव व्याकुल रहते हैं , और श्री कृष्ण का भी गोपाल वेश ऊनको विशेष प्रिय हैं,
वे सदैव श्री कृष्ण को गोपाल वेश मे ही देखते है,
श्री कृष्ण के केशमे गोरद सनी हुई है, वक्षःस्थल पर वनमाला लहलहा रही हैं , ऊनके आगे आगे सुंदर सुंदर गायें और पीछे पीछे ग्वाल बाल चल रहे हैं, ऊनके वंशी की मधुर ध्वनी चारों ओर फैल रही हैं,  ऊनके अधरों पप मंद मंद मुस्कान है,

ईस प्रकार रसखान जी को गोपाल के साथ ऊनकी प्यारी गायें भी विशेष प्रिय थी
तभी ऊनके हर पद, कवित्त , छंद और सवैये आदी मे गौमाता और गोचारण का वर्णन देखने को मिलता हैं,
धन्य है श्रीकृष्ण भक्त कवि रसखान जो कृष्ण के साथ गौमाता से भी अत्यंत प्रेम करते थे...
जय हो भक्तकवि श्री रसखानजी की

जय गौमाता 🌹 जय गोपाल

शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

गौ महिमा / गौ विचार पोस्टर

जय गौमाता जय गोपाल

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