बुधवार, 21 सितंबर 2016

देशी गौमाता एवम् जर्सी काउ मे अंतर

कही आप अंजाने मे अपने परिवार को विषैला दूध तो नही पिला रहे है?

कही आप अंजाने मे अपने परिवार को विषैला दूध तो नही पिला रहे है?


मथुरा के ‘पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय एवं गौ अनुसंधन संस्थान’ में नेशनल ब्यूरो आफ जैनेटिक रिसोर्सिज़, करनाल (नेशनल क्रांऊसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च-भारत सरकार) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. देवेन्द्र सदाना द्वारा एक प्रस्तुति 4 सितम्बर को दी गई।
मथुरा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के सामने दी गई प्रस्तुति में डा. सदाना ने जानकारी दी किः
अधिकांश विदेशी गोवंश (हॅालस्टीन, जर्सी, एच एफ आदि) के दूध में ‘बीटा कैसीन ए1’ नामक प्रोटीन पाया जाता है जिससे अनेक असाध्य रोग पैदा होते हैं। पांच रोग होने के स्पष्ट प्रमाण वैज्ञानिकों को मिल चुके हैं –
  1. इस्चीमिया हार्ट ड़िजीज (रक्तवाहिका नाड़ियों का अवरुद्ध होना)।
  2. मधुमेह-मिलाईटिस या डायबिट़िज टाईप-1 (पैंक्रिया का खराब होना जिसमें इन्सूलीन बनना बन्द हो जाता है।)
  3. आटिज़्म (मानसिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म होना)।
  4. शिजोफ्रेनिया (स्नायु कोषों का नष्ट होना तथा अन्य मानसिक रोग)।
  5. सडन इनफैण्ट डैथ सिंड्रोम (बच्चे किसी ज्ञात कारण के बिना अचानक मरने लगते हैं)।
टिप्पणीः विचारणीय यह है कि हानिकारक ए1 प्रोटीन के कारण यदि उपरोक्त पांच असाध्य रोग होते हैं तो और उनेक रोग भी तो होते होंगे। यदि इस दूध के कारण मनुष्य का सुरक्षा तंत्र नष्ट हो जाता है तो फिर न जाने कितने ही और रोग भी हो रहे होंगे, जिन पर अभी खोज नहीं हुई।

दूध की संरचना

आमतौर पर दूघ में,
83 से 87 प्रतिशत तक पानी
3.5 से 6 प्रतिशत तक वसा (फैट)
4.8 से 5.2 प्रतिशत तक कार्बोहाइड्रेड
3.1 से 3.9 प्रतिशत तक प्रोटीन होती है। इस प्रकार कुल ठोस पदार्थ 12 से 15 प्रतिशत तक होता है। लैक्टोज़ 4.7 से 5.1 प्रतिशत तक है। शेष तत्व अम्ल, एन्जाईम विटामिन आदि 0.6 से 0.7 प्रतिशत तक होते है।
गाय के दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन 2 प्रकार के हैं। एक ‘केसीन’ और दूसरा है ‘व्हे’ प्रोटीन। दूध में केसीन प्रोटीन 4 प्रकार का मिला हैः
अल्फा एस1 (39 से 46 प्रतिशत)
एल्फा एस2 (8 से 11 प्रतिशत)
बीटा कैसीन (25 से 35 प्रतिशत)
कापा केसीन (8 से 15 प्रतिशत)
गाय के दूध में पाए गए प्रोटीन में लगभग एक तिहाई ‘बीटा कैसीन’ नामक प्रोटीन है। अलग-अलग प्रकार की गऊओं में अनुवांशिकता (जैनेटिक कोड) के आधार पर ‘केसीन प्रोटीन’ अलग-अलग प्रकार का होता है जो दूध की संरचना को प्रभावित करता है, या यूं कहे कि उसमें गुणात्मक परिवर्तन करता है। उपभोक्ता पर उसके अलग-अलग प्रभाव हो सकते हैं।

बीटा कैसीन ए1, ए2 में अन्तर क्या है?

बीटा कैसीन के 12 प्रकार ज्ञात हैं जिनमें ए1 और ए2 प्रमुख हैं। ए2 की एमिनो एसिड़ श्रृंखला (कड़ी) में 67 वें स्थान पर ‘प्रोलीन’ होता है। जबकि ए1 प्रकार में यह ‘प्रोलीन’ के स्थान पर विषाक्त ‘हिस्टिडीन’ है। ए1 में यह कड़ी कमजोर होती है तथा पाचन के समय टूट जाती है और विषाक्त प्रोटीन ‘बीटा कैसोमार्फीन 7’ बनाती है।

विदेशी गोवंस विषाक्त क्यों है?

जैसा कि शुरू में बतलाया गया है कि विदेशी गोवंश में अधिकांश गऊओं के दूध में ‘बीटा कैसीन ए1’ नामक प्रोटीन पाया गया है। हम जब इस दूध को पीते हैं और इसमें शरीर के पाचक रस मिलते हैं व इसका पाचन शुरू होता है, तब इस दूध के ए1 नामक प्रोटीन की 67वीं कमजोर कड़ी टूटकर अलग हो जाती है और इसके ‘हिस्टिाडीन’ से ‘बी.सी.एम. 7’ (बीटा कैसो माफिन 7) का निर्माण होता है। सात सड़ियों वाला यह विषाक्त प्रोटीन ‘बी.सी.एम 7’ पूर्वोक्त सारे रोगों को पैदा करता है। शरीर के सुरक्षा तंत्र को नष्ट करके अनेक असाध्य रोगों का कारण बनता है।

भारतीय गोवंस विशेष क्यों

करनाल स्थित भारत सरकार के करनाल स्थित ब्यूरो के द्वारा किए गए शोध के अनुसार भारत की 98 प्रतिशत नस्लें ए2 प्रकार के प्रोटीन वाली अर्थात् विष रहित हैं। इसके दूध की प्रोटीन की एमीनो एसिड़ चेन (बीटा कैसीन ए2) में 67वें स्थान पर ‘प्रोलीन’ है और यह अपने साथ की 66वीं कड़ी के साथ मजबूती के साथ जुड़ी रहती है तथा पाचन के समय टूटती नहीं। 66वीं कड़ी में ऐमीनो ऐसिड ‘आइसोल्यूसीन’ होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भारत की 2 प्रतिशत नस्लों में ए1 नामक एलिल (विषैला प्रोटीन) विदेशी गोवंश के साथ हुए ‘म्यूटेशन के कारण’ आया हो सकता है।
एन.बी.ए.जी.आर. – करनाल द्वारा भारत की 25 नस्लों की गऊओं के 900 सैंम्पल लिए गए थे। उनमें से 97-98 प्रतिशत ए2ए2 पाए गए गथा एक भी ए1ए1 नहीं निकला। कुछ सैंम्पल ए1ए2 थे जिसका कारण विदेशी गोवंस का सम्पर्क होने की सम्भावना प्रकट की जा रही है।

गुण सूत्र

गुण सूत्र जोड़ों में होते हैं, अतः स्वदेशी-विदेशी गोवंश की डी.एन.ए. जांच करने पर
‘ए1, ए2’
‘ए1, ए2’
‘ए2, ए2’
के रूप में गुण सूत्रों की पहचान होती है। स्पष्ट है कि विदेशी गोवंश ‘ए1ए1’ गुणसूत्र वाला तथा भारतीय ‘ए2, ए2’ है।
केवल दूध के प्रोटीन के आधार पर ही भारतीय गोवंश की श्रेष्ठता बतलाना अपर्याप्त होगा। क्योंकि बकरी, भैंस, ऊँटनी आदि सभी प्राणियों का दूध विष रहित ए2 प्रकार का है। भारतीय गोवंश में इसके अतिरिक्त भी अनेक गुण पाए गए हैं। भैंस के दूध के ग्लोब्यूल अपेक्षाकृत अधिक बड़े होते हैं तथा मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव करने वाले हैं। आयुर्वेद के ग्रन्थों के अनुसार भी भैंस का दूध मस्तिष्क के लिए अच्छा नहीं, वातकारक (गठिाया जैसे रोग पैदा करने वाला), गरिष्ठ व कब्जकारक है। जबकि गो दूग्ध बुद्धि, आयु व स्वास्थ्य, सौंदर्य वर्धक बतलाया गया है।

भारतीय गोवंस अनेक गुणों वाला है

1. बुद्धिवर्धकः खोजों के अनुसार भारतीय गऊओं के दूध में ‘सैरिब्रोसाईट’ नामक तत्व पाया गया है जो मस्तिष्क के ‘सैरिब्रम को स्वस्थ-सबल बनाता है। यह स्नायु कोषों को बल देने वाला, बुद्धि वर्धक है।
2. गाय के दूध से फुर्तीः जन्म लेने पर गाय का पछड़ा जल्दी ही चलने लगता है जबकि भैंस का पाडा रेंगता है। स्पष्ट है कि गाय एवं उसके दूध में भैंस की अपेक्षा अधिक फुर्ती होती है।
3. आँखों की ज्योति, कद और बल को बढ़ाने वालाः भारतीय गौ की आँत 180 फुट लम्बी होती है। गाय के दूध में केरोटीन नामक एक ऐसा उपयोगी एवं बलशाली पदार्थ मिलता है जो भैंस के दूस से कहीं अधिक प्रभावशाली होता है। बच्चों की लम्बाई और सभी के बल को बढ़ाने के लिए यह अत्यन्त उपयोगी होता है। आँखों की ज्योति को बढ़ाने के लिए यह अत्यन्त उपयोगी है। यह कैंसर रोधक भी है।
4. असाध्य बिमारीयों की समाप्तिः गाय के दूध में स्टोनटियन नामक ऐसा पदार्थ भी होता है जो विकिर्ण (रेडियेशन) प्रतिरोधक होता है। यह असाध्य बिमारियों को शरीर पर आक्रमण करने से रोकने का कार्य भी करता है। रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है जिससे रोग का प्रभाव क्षीण हो जाता है।
5. रामबाण है गाय का दूध – ओमेगा 3 से भरपूरः वैज्ञानिक अनुसंधान के बाद यह सिद्ध हो चुका है कि फैटी एसिड ओमेगा 3 (यह एक ऐसा पौष्टिकतावर्धक तत्व है, जो सभी रोगों की समाप्ति के लिए रामबाण है) केवल गो माता के दूध में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। आहार में ओमेगा 3 से डी. एच. तत्व बढ़ता है। इसी तत्व से मानव-मस्तिष्क और आँखों की ज्योति बढ़ती है। डी. एच. में दो तत्व ओमेगा 3 और ओमेगा 6 बताये जाते हैं। मस्तिष्क का संतुलन इसी तत्व से बनता है। आज विदेशी वैज्ञानिक इसके कैप्सूल बनाकर दवा के रूप में इसे बेचकर अरबो-खरबो रुपये का व्यापार कर रहे हैं।
6. विटामिन से भरपूर-माँ के दूध के समकक्षः प्रो. एन. एन. गोडकेले के अनुसार गाय के दूध में अल्बुमिनाइड, वसा, क्षार, लवण तथा कार्बोहाइड्रेड तो हैं ही साथ ही समस्त विटामिन भी उपलब्ध हैं। यह भी पाया गया कि देशी गाय के दूध में 8 प्रतिशत प्रोटीन, 0.7 प्रतिशत खनिज व विटामिन ए, बी, सी, डी व ई प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं, जो गर्भवती महिलाओं व बच्चों के लिए अत्यन्त उपयोगी होते हैं।
7. कॅालेस्ट्राल से मुक्तिः वैज्ञानिकों के अनुसार कि गाय के दूध से कोलेस्ट्रोल नहीं बढ़ता। हृदय रोगियों के लिए यह बहुत उपयोगी माना गया है। फलस्वरूप मोटापा भी नहीं बढ़ता है। गाय का दूध व्यक्ति को छरहरा (स्लिम) एवं चुस्त भी रखता है।
8. टी.बी. और कैंसर की समाप्तिः क्षय (टी.बी) रोगी को यदि गाय के दूध में शतावरी मिलाकर दी जाये तो टी.बी. रोग समाप्त हो जाता है। एसमें एच.डी.जी.आई. प्रोटीन होने से रक्त की शिराओं में कैंसर प्रवेश नहीं कर सकता। पंचगव्य आधारित 80 बिस्तर वाला कैंसर हॅास्पिटल गिरी विहार, संकुल नेशनल हाईवे नं. 8, नवसारी रोड़, वागलधारा, जि. बलसाड़, गुजरात में है। यहा तीसरी स्टेज के कैंसर के रोगियों का इलाज हो ता पर अब उनकी सफलता किन्ही कारणों से पहले जैसी नहीं रही है।
9. इन्टरनेशनल कार्डियोलॅाजी के अध्यक्ष डा. शान्तिलाल शाह ने कहा है कि भैंस के दूध में लाँगचेन फेट होता है जो नसों में जम जाता है। फलस्वरूप हार्टअटैक की सम्भावना अधिक हो जाती ही। इसलिए हृदय रोगियों के लिए गाय का दूध ही सर्वोत्तम है। भैंस के दूध के ग्लोब्यूल्ज़ भी आकार में अधिक बड़े होते हैं तथा स्नायु कोषों के लिए हानिकारक हैं।
10. बी-12 विटामिनः बी-12 भारतीय गाय की बड़ी आंतों में अत्यधिक पाया जाता है, जो व्यक्ति को निरोगी एवं दीर्घायु बनाता है। इससे बच्चों एवं बड़ों को शारीरिक विकास में बढ़ोतरी तो होती ही है साथ ही खून की कमी जैसी बिमारियां (एनीमिया) भी ठीक हो जाती है।
11. गाय के दूध में दस गुणः
चरक संहिता (सूत्र 27/217) में गाय के दूध में दस गुणों का वर्णन है-
स्वादु, शीत, मृदु, स्निग्धं बहलं श्लक्ष्णपिच्छिलम्।
गुरु मंदं प्रसन्नं च गल्यं दशगुणं पय॥
अर्थात्- गाय का दूध स्वादिष्ट, शीतल, कोमल, चिकना, गाढ़ा, श्लक्ष्ण, लसदार, भारी और बाहरी प्रभाव को विलम्ब से ग्रहरण करने वाला तथा मन को प्रसन्न करने वाला होता है।
12. केवल भारतीय देसी नस्ल की गाय का दूध ही पौष्टिकः करनाल के नेशनल ब्यूरो आफ एनिमल जैनिटिक रिसोर्सेज (एन.बी.ए.जी.आर.) संस्था ने अध्ययन कर पाया कि भारतीय गायों में प्रचुर मात्रा में ए2 एलील जीन पाया जाता हैं, जो उन्हें स्वास्थ्यवर्धक दूध उप्तन्न करने में मदद करता है। भारतीय नस्लों में इस जीन की फ्रिक्वेंसी 100 प्रतिशत तक पाई जाती है।
13. कोलेस्ट्रम (खीस) में है जीवनी शक्तिः प्रसव के बाद गाय के दूध में ऐसे तत्व होते हैं जो अत्यन्त मूल्यवान, स्वास्थ्यवर्धक हैं। इसलिए इसे सूखाकर व इसके कैप्सूल बनाकर, असाध्य रोगों की चिकित्सा के लिए इसे बेचा जा रहा है। यही कारण है कि जन्म के बाद बछड़े, बछिया को यह दूध अवश्य पिलाना चाहिए। इससे उसकी जीवनी शक्ति आजीवन बनी रहती है। इसके अलावा गौ उत्पादों में कैंसर रोधी तत्व एनडीजीआई भी पाया गया है जिस पर यूएस पेटेन्ट प्राप्त है।

चिकित्सा में पंचगव्य क्यों महत्वपूर्ण है?

चिकित्सा में पंचगव्य क्यों महत्वपूर्ण है?



गाय के दूध, घृत, दधी, गोमूत्र और गोबर के रस को मिलाकर पंचगव्य तैयार होता है। पंचगव्य के प्रत्येक घटक द्रव्य 
महत्वपूर्ण गुणों से संपन्न हैं।
इनमें गाय के दूध के समान पौष्टिक और संतुलित आहार कोई नहीं है। इसे अमृत माना जाता है। यह विपाक में मधुर, शीतल, वातपित्त शामक, रक्तविकार नाशक और सेवन हेतु सर्वथा उपयुक्त है। गाय का दही भी समान रूप से जीवनीय गुणों से भरपूर है। गाय के दही से बना छाछ पचने में आसान और पित्त का नाश करने वाला होता है।
गाय का घी विशेष रूप से नेत्रों के लिए उपयोगी और बुद्धि-बल दायक होता है। इसका सेवन कांतिवर्धक माना जाता है।
गोमूत्र प्लीहा रोगों के निवारण में परम उपयोगी है। रासायनिक दृष्टि से देखने पर इसमें पोटेशियम, मैग्रेशियम, कैलशियम, यूरिया, अमोनिया, क्लोराइड, क्रियेटिनिन जल एवं फास्फेट आदि द्रव्य पाये जाते हैं।
गोमूत्र कफ नाशक, शूल गुला, उदर रोग, नेत्र रोग, मूत्राशय के रोग, कष्ठ, कास, श्वास रोग नाशक, शोथ, यकृत रोगों में राम-बाण का काम करता है।
चिकित्सा में इसका अन्त: बाह्य एवं वस्ति प्रयोग के रूप में उपयोग किया जाता है। यह अनेक पुराने एवं असाध्य रोगों में परम उपयोगी है।
गोबर का उपयोग वैदिक काल से आज तक पवित्रीकरण हेतु भारतीय संस्कृति में किया जाता रहा है।
यह दुर्गंधनाशक, पोषक, शोधक, बल वर्धक गुणों से युक्त है। विभिन्न वनस्पतियां, जो गाय चरती है उनके गुणों के प्रभावित गोमय पवित्र और रोग-शोक नाशक है।
अपनी इन्हीं औषधीय गुणों की खान के कारण पंचगव्य चिकित्सा में उपयोगी साबित हो रहा है।

रविवार, 18 सितंबर 2016

वेदों में गो वध और गो मांस का निषेध

वेदों में गो वध और गो मांस का निषेध
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वेदों  में पशुओं की हत्या का  विरोध तो है ही बल्कि गौ- हत्या पर तो तीव्र आपत्ति करते हुए उसे निषिद्ध माना गया है । यजुर्वेद में गाय को जीवनदायी पोषण दाता मानते हुए गौ हत्या को वर्जित किया गया है  –

'घृतं दुहानामदितिं जनायाग्ने  मा हिंसी:'

             –यजुर्वेद १३।४९

सदा ही रक्षा के पात्र गाय और बैल को मत मार ।

'आरे  गोहा नृहा  वधो  वो  अस्तु'

           –ऋग्वेद  ७ ।५६।१७

ऋग्वेद गौ- हत्या को जघन्य अपराध घोषित करते हुए मनुष्य हत्या के तुल्य मानता है और ऐसा महापाप करने वाले के लिये दण्ड का विधान करता है –

'सूयवसाद  भगवती  हि  भूया  अथो  वयं  भगवन्तः  स्याम

अद्धि  तर्णमघ्न्ये  विश्वदानीं  पिब  शुद्धमुदकमाचरन्ती'

              –ऋग्वेद १।१६४।४०

अघ्न्या गौ- जो किसी भी अवस्था में नहीं मारने योग्य हैं, हरी घास और शुद्ध जल के सेवन से स्वस्थ  रहें जिससे कि हम उत्तम सद् गुण,ज्ञान और ऐश्वर्य से युक्त हों । वैदिक कोष निघण्टु में गौ या गाय के पर्यायवाची शब्दों में अघ्न्या, अहि- और अदिति का भी समावेश है । निघण्टु के भाष्यकार यास्क इनकी व्याख्या में कहते हैं -अघ्न्या – जिसे कभी न मारना चाहिए | अहि – जिसका कदापि वध नहीं होना चाहिए । अदिति – जिसके खंड नहीं करने चाहिए । इन तीन शब्दों से यह भलीभांति विदित होता है कि गाय को किसी भी प्रकार से पीड़ित नहीं करना चाहिए ।प्राय: वेदों में गाय इन्हीं नामों से पुकारी गई है –

'अघ्न्येयं  सा  वर्द्धतां  महते  सौभगाय'

           –ऋग्वेद १ ।१६४।२७

अघ्न्या गौ-  हमारे लिये आरोग्य एवं सौभाग्य लाती हैं ।

'सुप्रपाणं  भवत्वघ्न्याभ्य:'

             –ऋग्वेद ५।८३।८

अघ्न्या गौ के लिए शुद्ध जल अति उत्तमता से उपलब्ध हो ।

'यः  पौरुषेयेण  क्रविषा  समङ्क्ते  यो  अश्व्येन  पशुना  यातुधानः

यो  अघ्न्याया  भरति  क्षीरमग्ने  तेषां  शीर्षाणि  हरसापि  वृश्च'

           –ऋग्वेद १०।८७।१६

मनुष्य, अश्व या अन्य पशुओं के मांस से पेट भरने वाले तथा दूध देने वाली अघ्न्या गायों का विनाश करने वालों को कठोरतम दण्ड देना चाहिए ।

'विमुच्यध्वमघ्न्या देवयाना अगन्म'

            –यजुर्वेद १२।७३

अघ्न्या गाय और बैल तुम्हें समृद्धि प्रदान करते हैं ।

'मा गामनागामदितिं  वधिष्ट'

          –ऋग्वेद  ८।१०१।१५

गाय को मत मारो । गाय निष्पाप और अदिति – अखंडनीया है ।

'अन्तकाय  गोघातं'

             –यजुर्वेद ३०।१८

गौ हत्यारे का संहार किया जाये ।

'यदि  नो  गां हंसि यद्यश्वम् यदि  पूरुषं

तं  त्वा  सीसेन  विध्यामो  यथा  नो  सो  अवीरहा'

            –अर्थववेद १।१६।४

यदि कोई हमारे गाय,घोड़े और पुरुषों की हत्या करता है, तो उसे सीसे की गोली से उड़ा दो ।

'वत्सं  जातमिवाघ्न्या'

             –अथर्ववेद ३।३०।१

आपस में उसी प्रकार प्रेम करो, जैसे अघ्न्या – कभी न मारने योग्य गाय – अपने बछड़े से करती है ।

'धेनुं  सदनं  रयीणाम्'

            –अथर्ववेद ११।१।४

गाय सभी ऐश्वर्यों का उद्गम है ।

ऋग्वेद के ६ वें मंडल का सम्पूर्ण २८ वां सूक्त गाय की महिमा बखान रहा है —

१.'आ  गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्त्सीदन्तु'

प्रत्येक जन यह सुनिश्चित करें कि गौएँ यातनाओं से दूर तथा स्वस्थ रहें ।

२.'भूयोभूयो  रयिमिदस्य  वर्धयन्नभिन्ने'

गाय की  देख-भाल करने वाले को ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है ।

३.'न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति'

गाय पर शत्रु भी शस्त्र  का प्रयोग न करें ।

४. 'न ता अर्वा रेनुककाटो अश्नुते न संस्कृत्रमुप यन्ति ता अभि'

कोइ भी गाय का वध न करे  ।

५.'गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छन्'

गाय बल और समृद्धि  लातीं  हैं ।

६. 'यूयं गावो मेदयथा'

गाय यदि स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगी  तो पुरुष और स्त्रियाँ भी निरोग और समृद्ध होंगे ।

७. 'मा वः स्तेन ईशत माघशंस:'

गाय हरी घास और शुद्ध जल क सेवन करें । वे मारी न जाएं और हमारे लिए समृद्धि लायें ।

           –जय श्रीमन्नारायण।

महाभारत ,गाय और राजा रन्तिदेव :एक और इस्लामिक कम्युनिस्ट कुटिलता

महाभारत ,गाय और राजा रन्तिदेव :एक और इस्लामिक कम्युनिस्ट कुटिलता

धर्म हमारे महान भारत देश का प्राणभूत तत्व रहा है और इसीलिए भारत के शत्रुओं ने बार बार हिन्दू धर्म पर प्रहार किया है और इसी कड़ी कुछ लोग यह हास्यास्पद बात कह रहे हैं की भारत में पुराने समय में गौ-मांस खाया जाता था और वो महाभारत के राजा रान्तिदेव को गौ हत्या करने वाला सिद्ध करने का मुर्खतापूर्ण परन्तु कुटिल प्रयत्न करते हैं |सबसे पहले तो देखे की महाभारत की रचना किसने की और इसे किसने लिखा था |महाभारत के श्लोक वेदव्यास रचित हैं और उन्हें श्री गणेश ने स्वयं लिपिबद्ध किया है | लेखन कार्य प्रारंभ होने से पहले श्री गणेश के यह शर्त रखी थी की मेरी लेखनी रुकनी नहीं चाहिए और वेदव्यास ने शर्त राखी थी की आप बिना समझे हुए कुछ नहीं लिखेंगे और इसके बाद व्यास जी ने जटिल और गूढ़ शब्दों का प्रयोग किया था |महाभारत के सम्बन्ध में स्वयं भगवन श्रीकृष्ण कहते हैं की "इसमें ८८८०  श्लोक हैं जिनका अर्थ मैं जनता हूँ , सूत जी जानते हैं और संजय जानते हैं या नहीं ये मैं नहीं जनता .."| अब आप स्वयं ही सोचये की जिनके अर्थ को संजय जानते हाँ या नहीं इसमें संशय है वो क्या इतने सीधे होंगे की उनकी गूढता और प्रसंग का विचार किये बिना केवल शाब्दिक अर्थ (वो भी व्याकरण को छोड़कर) ले लिया जाय ?
अब देखते हैं महाभारत के वनपर्व के वो श्लोक जिसके आधार पर राजा रंतिदेव को गोहयता करने वाला कहा जाता है -

राज्ञो महानसे पूर्वं रंतिदेवस्य वै द्विज |
द्वे सहस्त्रे तु वध्येते पशुनंन्वहनं तदा |
अहन्यहनि वध्येते द्वे सहस्त्रे गवां तथा ||
हास्यास्पद कम्युनिस्ट - इस्लामिक अर्थ- रान्तिदेव नामक एक राज प्रतिदिन  लोगों  को मान्स  बांटने के लिए दोहजर पशुओं और दो हजार गायों की हत्या करता था |

व्याकरणगत अशुद्धि -
इस श्लोक में 'वध्येते'" का अर्थ मारना लिया गया है जो की संस्कृत व्याकरण के अनुसार पूर्णतयः अशुद्ध है क्यूँकी संस्कृत में 'वध' धातु स्वतन्त्र है ही नहीं जिसका अर्थ 'मारना' हो सके ,मरने के अर्थ में तो 'हन्' धातु का प्रयोग होता है |पाणिनि का सूत्र है "हनी वध लिङ् लिङु च " इस सूत्र में  कर्तः हन् धातु को वध का आदेश होता है अर्थात वध स्वतन्त्र रूप से प्रयोग नही हो सकता है |अतः व्याकरण के आधार पर स्पस्ट है की की ये 'वध्येते ' हिंसा वाले वध के रूप में नहीं हो सकते हैं | तब हंमे यह ढूढ़ना पड़ेगा की इस शब्द का क्या अर्थ है और निश्चय ही ये हत्या वाले 'हिंसा' नहीं अपितु बंधन वाले ' बध बन्धने' धातु है |
इसके अतिरिक्त २ और पंक्तियाँ है जिनके आधार पर राजा रान्तिदेव को गोवध करने वाला , ऐसा सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है -
समांसं ददतो ह्रान्नं रन्तिदेवस्‍य नित्‍यशः
अतुला कीर्तिरभवन्‍नृप्‍स्‍य द्विजसत्तम
सदा मान्स सहित भिजन देने वाले राज रान्तिदेव कि अतुलित कीर्ति हुयी |
यहाँ पर 'समांसं'  का अर्थ पशुमंस से युक्त उचित नहीं होगा और कारन आगे बताया जाएगा |पुराने समय में सभी शब्दों के विस्तृत अर्थ हुआ करते थे परन्तु आज उनका अर्थ अत्यंत सीमित हो गया है उदहारणतयः 'मृग' का अर्थ पहले सभी वन्य पशुओं के लिए था जबकि वर्त्तमान में यह केवल 'हिरण' के लिए हैं और वृषभ का अर्थ बैल , अपने विषय में सर्वश्रेष्ठ , तेज गति से चलने वाला , शक्तिशंली इस भांति के १६ अर्थ थे परन्तु आज केवल बैल अर्थ लिया जाता है इसी भांति पुराने समय में मांस का अर्थ पशुमांस के साथ साथ गौउत्पाद  अर्थात दूध , दही भी था परन्तु आज वहग केवल पशुमांस का पर्याय बन कर रह गया है | वर्त्तमान पंक्तियों के सन्दर्भ में , राजा रातीदेव के चरित्र ,पंक्तियों के प्रसंग ,गौ की महत्तता तथा तात्कालिक सामाजिक मान्यताओं के कारन यहाँ पर पशुमांस नहीं अपितु दूध यह अर्थ ही उचित होगा |
इसके अतिरिक्त

आलाभ्यंत शतं गवः सहस्त्राणि च विशन्ति
हिंदुत्व विरोधी आलाभ्यंत का अर्थ हिंसा करते हैं
इसी भांति महाकवि कालिदास र्षित मेघ दूत में रंतिदेव से सम्बंधित पंक्ति
व्यालाम्बेथः सुरभितानाया - आलम्भ्जाम मनिष्यन
में आलम्भ्जाम का अर्थ हिंसक कहते हैं |
जबकी इसका अर्थ स्पर्श या प्राप्त है और यह परंपरा रही है की दान देने वाला व्यक्ति दान दी जारी  वास्तु को छूकर दान दे देता  है| आलाभ्यंत शब्द का वेदों अन्य स्थानों पर भी इसी भांति प्रयोग हुआ है यथा -
ब्रहामाने ब्राहमण अलाभ्ते - ज्ञान के लिए ज्ञानी को प्राप्त करता है
क्षत्राय राज्न्यम आलाभ्ते -शौर्य के लिए शूर को प्राप्त करता है

तार्किक असम्भाव्यता -

तार्किक रूप से भी पशुओं के वध वाला अर्थ उचित नहीं  लगता है क्यूँकी सर्वप्रथम कभी भी रसोई में पशुओं का वध नहीं किया जाता है | वध स्थल में इतनी अधिक गन्दगी होती है की वहा रसोई से बहुत दूर और यदि संभव हो तो नगर के बाहर  होता है |दूसरी बात हिंदुत्व विरोधी कहते हैं  की मारी गयी गायों के चमड़े से निकले हुए पानी से चर्म्वती नदी बन गयी | एक तो न ही कभी मारे हुए पशुओं का चमडा रसोई में रखा जाता है और न ही गीले चमड़े से निकला हुआ जल इतनी अधिक मात्रा में होता हिया की बहता हुआ दिखाई दे हाँ यदि इसे पशुओं को धोने से बहता हुआ जल कहा जाय तो तर्कसंगत होगा|इसके अतिरिक्त महाभारत में ही सामान प्रसंग में कहा गया है की "रजा रंतिदेव के यज्ञ में प्रेमवश ग्रामो और वनों से पशु स्वयं उपस्थित हो जाते थे "; अब क्या वो अपने वध के लिए आते होंगे ?इसके अतिरिक्त महाभारत में कई स्थानों पर गौ दान के द्वारा कीर्ति प्राप्त होने की बात कही गयी है |

राजा रान्तिदेव  का चरित्र -
महाभारत के अनुशासन पर्व के पांच श्लोकों में बहुत से राजाओं के नाम गिनाये गए हैं जिन्होंने कभी मांस नहीं खाया और उसमे राजा रान्तिदेव का भी नाम है | जिस राजा ने कभी मांस न खाया हो क्या उसकी पाकशाला में प्रतिदिन २ हजार पशुओं की हत्या मांस केलिए की जा सकती है ??नारद जी राजा संजय से कहते हैं "संजय !सुना है की संकृति के पुत्र रान्तिदेव भी जीवित न रह सके |उन महामना के दरबार यहाँ दो लाख रसोइये थे जो घर आये हुए अतिथियों को दिन रात  कच्चे और पक्के उत्तम अन्न दिन रात परोसते थे |" , यहाँ पर स्पस्ट है की राजा रान्तिदेव के यहाँ अन्न परोसा जाता था |
श्रीमदभगवतमहापुराण के नवे स्कंध में   रजा रंतिदेव की एक कथा आती है की उनको ४८ दिनों तक भूखा रहना पड़ा था |उसके बाद उनको खीर इस्यादी प्राप्त हुआ |जैसे ही वो भोजन करने बैठे एक ब्राहमण आया जिसके भीतर रन्तिदेव ने भगवन को ही देखा और उसका आदर पूर्वक स्वागत किया |जब ब्राहमण खाकर चला गया तब रजा अपने परिवार सहित बचा हुआ भोजन करने के लिए बैठे तभी एक शुद्र अतिथि आ गया| रजा ने उस अतिथि को भी भोजन करवा दिया |जैसे ही शुद्र अतिथि गया एक दूसरा अतिथि कुछ कुत्ते साथ लिए हुए पहुंचा तो रजा रन्तिदेव ने बचा हुआ सम्पूर्ण अन्न दे दिया और भगवन समझ कर प्रणाम किया |अब वे भोजन पकाए हुए बर्तनों का धोवन पानी सकुटुम्ब आपस में बांटकर उस पानी को पीने ही वाले थे की  पानी की खोज करता हुआ एक प्यासा चंडाल आ पहुंचा |रजा ने सारा पानी उसे दे दिया और सृष्टिकर्ता से प्रार्थना की "हे भगवन ! न तो मैं अष्टसीद्धियों से युक्त सरवोछ स्थान चाहता हूँ और न मुक्ति |मैं तो यह चाहता हूँ  की प्राणिमात्र के अन्तः कारन में बैठ कर उनके दुखों को स्वयं सहन कर हूँ जिससे की सभी प्राणी अपने सभी प्रकार के दुखों से बच सकें | " अब आप स्वयं ही निर्णय करें की क्या ऐसा राजा प्रतिदिन ४ हजार पशुओं को भोजन के लिए मरवा सकता है ?

महाभारत का मूल प्रसंग  -
ये श्लोक महाभारत के वनपर्व के हैं तथा जिसमे एक वधिक द्वारा की गयी हिंसा की निंदा की गयी है |  जिस खंड का उद्देश्य ही वधिक द्वारा की गयी हिंसा की निंदा हो उस के अन्दर चार हजार निर्दोष पशुओं की हत्या करके कीर्ति प्राप्त करने की बात लिखी होना हास्यास्पद है |इस प्रसंग में पुत्र वध से दुखी राजा युधिषठिरको समझाते हुए भगवन श्री कृष्ण कहानते हैं की पूर्व काल के कई यशस्वी राजा भी जीवित नहीं रहे | इसी क्रम में भगवन सही कृष्ण ने कई राजाओं जैसे शिबी आदि के नाम बताये जिन्होंने गौ दान के द्वारा यश अर्जित किया था |कहीं भी गौ हत्या जैसा कोई प्रसंग नहीं है |महाभारत में उसके ठीक पहले वाले अध्याय में "अहिंसा परमो धर्मः" का सन्देश दिया गया है | एक अध्याय में अहिंसा परमो धर्मः का उपदेश देकर अगले ही अध्याय में हिंसा करने वाले राजा की कीर्ति कैसे गायी जा सकती है ?

राजा रान्तिदेव की कीर्ति का वास्तविक कारण -
राजा रान्तिदेव  की कीर्ति का कारण गायों का दान करना तथा फल फूल द्वारा ऋषियों का स्वागत करना था | राजा रंतिदेव के बारे में कहा गया हिया की वो हजारों गायें और सहस्त्रों निष्क छूकर दान देते थे |निष्क एक राशी होती है जिसमे एक स्वर्ण माला से युक्त वृषभ , उसके पीछे एक हजार गायें और एक सौ आठ स्वर्ण मुद्राएँ होती हैं |राजा रान्तिदेव की रसोई में मणिमाय कुंडल धारण किये हुए रसोइये पुकार पुकार कर कहते थे आप लोग खूब दाल भात खाइए |राजा रन्तिदेव की कीर्ति का वास्तविक कारण यही था |

चर्मण्वती नदी -
हिंदुत्व  के विरोधी एक  श्लोक का अर्थ करते हुए कहते हैं की राजा रंतिदेव की 'रन्तिदेव' की रसोई में दो हजार गायें मारी जाती थी और उनका गीला चमडा रसोई में रखा जाता था |उसका टपका हुआ जो जल बहा वह एक नदी बन गया जो की कर्मवती नदी कहलाया | परन्तु यदी आप महा भारत में उस श्लोक के ठीक पहले वाला श्लोक उठा कर देखें तो आप को  इस तर्क की हास्यास्पदता पता चलेगी जिसमे की कहा गया है की कठोर व्रत का पालन करने वाले राजा रन्तिदेव के यहाँ गावों और जंगल से पशु  यज्ञ के लिए स्वयं उपस्थित हो जाते थे | अब आप स्वयं विचार करिए की क्या वो पशु स्वयं के वध के लिए उपस्थित होते रहे होंगे या दूध देने के लिए ?वास्तव में पशुओं को धोने के लिए जिस नाधि का जल प्रयोग किया जाता था उसका नाम चर्म्वती नदी था जो की आज चम्बल है |

गौ की अवध्यता -
वेदों में पुराणो में तथा महाभारत में भी सभी स्थानों पर गौ को अवध्य कहा गया है |यहता महाभारात्र शांतिपर्व "श्रुति में गौवों को अवध्य कहा गया है  तो कौन उनके वध का विचार करेगा ? जो गायों और बैलों को मरता है वो महान पाप करता है  " | "अगर पशुओं की हत्या का फल स्वर्ग है तो नरक किन कर्मों का फल है  ? "
आरे गोहा नृहा वधो वो अस्तु ऋग्वेद ७ ।५६।१७
सदा ही रक्षा के पात्र गाय और बैल को मत मार |

सूयवसाद भगवती हि भूया अथो वयं भगवन्तः स्याम
अद्धि तर्णमघ्न्ये विश्वदानीं पिब शुद्धमुदकमाचरन्ती ऋग्वेद १।१६४।४०

ऋग्वेद गौ- हत्या को जघन्य अपराध घोषित करते हुए मनुष्य हत्या के तुल्य मानता है और ऐसा महापाप करने वाले के लिये दण्ड का विधान करता है |

अघ्न्येयं सा वर्द्धतां महते सौभगाय ऋग्वेद १ ।१६४।२७
अघ्न्या गौ- हमारे लिये आरोग्य एवं सौभाग्य लाती हैं |
यदि नो गां हंसि यद्यश्वम् यदि पूरुषं
तं त्वा सीसेन विध्यामो यथा नो सो अवीरहा अर्थववेद १।१६।४
यदि कोई हमारे गाय,घोड़े और पुरुषों की हत्या करता है, तो उसे सीसे की गोली से उड़ा दो |

पुरे विवेचन से स्पस्ट है की गाय सदा से हिन्दुओं के लिए पूज्य रही है और ये पुरे हिन्दू समाज को एक सूत्र में पिरोने  का कार्य करती रही है | गौ हत्या और गौमांस खाने के  विचार हिंदुत्व विरोधियों की गाय के पार्टी श्रद्धा को समाप्त करने का मात्र एक कुटिल प्रयास है जिससे की हिंदुत्व की एकता के सूत्र को ही समाप्त किया जा सके परन्तु यह संभव नहीं है | एक हिन्दू की तीन माताएं होती हैं एक जन्म देवे वाली माता , एक पृथ्वी माता और एक गौ माता ; और भला एक माता और पुत्र के स्नेह को काम करने में कौन की कुटिलता सफल हो सकती है ?