गुरुवार, 9 जून 2016

गौसुक्त

🙏  *गौसुक्त* 🙏

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[ अथर्ववेद के चौथे काण्ड के २१ वें सूक्त को 'गोसूक्त' कहते हैं । इस सूक्त के ऋषि ब्रह्मा तथा देवता गौ हैं । इस सूक्त में गौओं की अभ्यर्थना की गयी है । गायें हमारी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का प्रधान साधन हैं । इनसे हमारी भौतिक पक्ष से कहीं अधिक आस्तिकता जुड़ी हुई है । वेदों में गाय का महत्त्व अतुलनीय है । यह 'गोसूक्त' अत्यन्त सुन्दर काव्य है । इतना उत्तम वर्णन बहुत कम स्थानोंपर मिलता है । मनुष्य को धन, बल, अन्न और यश गौ से ही प्राप्त है । गौएँ घर की शोभा, परिवार के लिये आरोग्यप्रद और पराक्रम स्वरूप हैं, यही इस सूक्त से परिलक्षित होता है । यहाँ यह सूक्त सानुवाद प्रस्तुत है- ]

माता रूद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः ।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट ।।
[ ऋक्○ ८ । १०१ । १५ ]

आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्त्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे ।
प्रजावतीः पुरूरूपा इह स्युरिन्द्राय पूर्वीरूषसो दुहानाः ।। १ ।।
इन्द्रो यज्वने गृणते च शिक्षत उपेद् ददाति न स्वं मुषायति ।
भूयोभूयो रयिमिदस्य वर्धयन्नभिन्ने खिल्ये नि दधाति देवयुम् ।। २ ।।
न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति ।
देवांश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित्ताभिः सचते गोपतिः सह ।। ३ ।।
न ता अर्वा रेणुककाटोऽश्नुते न संस्कृतत्रमुप यन्ति ता अभि ।
उरूगायमभयं तस्य ता अनु गावो मर्तस्य वि चरन्ति यज्वनः ।। ४ ।।
गावो भगो गाव इन्द्रो म इच्छाद्गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः ।
इमा या गावः स जनास इन्द्र इच्छामि हृदा मनसा चिदिन्द्रम् ।। ५ ।।
यूयं गावो मेदयथा कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम् ।
भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु ।। ६ ।।
प्रजावतीः सूयवसे रूशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः ।
मा व स्तेन ईशत माघशंसः परि वो रूद्रस्य हेतिर्वृणक्तु ।। ७ ।।
[ अथर्व○ १२ । १ ]

     गाय रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, अदिति पुत्रों की बहिन और घृत रूप अमृत का खजाना है; प्रत्येक विचारशील पुरुष को मैंने यही समझाकर कहा है कि निरपराध एवं अवध्य गौ का वध न करो ।

     गौएँ आ गयी हैं और उन्होंने कल्याण किया है। वे गोशाला में बैठें और हमें सुख दें । यहाँ उत्तम बच्चों से युक्त बहुत रूपवाली हो जायँ और परमेश्वर के यजन के लिये उष:काल के पूर्व दूध देनेवाली हों ।। १ ।।

     ईश्वर यज्ञकर्ता और सदुपदेशकर्ता को सत्य ज्ञान देता है । वह निश्चयपूर्वक धनादि देता है और अपने को नहीं छिपाता । इसके धन को अधिकाधिक बढ़ाता है और देवत्व प्राप्त करने की इच्छा करनेवाले को अपने से भिन्न नहीं ऐसे स्थिर स्थान में धारण करता है ।। २ ।।

     वह यज्ञ की गौएँ नष्ट नहीं होतीं, चौर उनको दबाता नहीं, इनको व्यथा करनेवाला शत्रु इनपर अपना अधिकार नहीं चलाता, जिनसे देवों का यज्ञ किया जाता है और दान दिया जाता है । गोपालक उनके साथ चिरकालतक रहता है ।। ३ ।।

     पाँवों से धूलि उड़ानेवाला घोड़ा इन गौओं की योग्यता प्राप्त नहीं कर सकता । वे गौएँ पाकादि संस्कार करनेवाले के पास भी नहीं जातीं । वे गौएँ उस यज्ञकर्ता मनुष्य की बड़ी प्रशंसनीय निर्भयता में विचरती हैं ।। ४ ।

     गौएँ धन हैं, गौएँ प्रभु हैं, गौएँ  पहले सोमरस का अन्न हैं, यह मैं जानता हूँ । ये जो गौएँ हैं, हे लोगो! वही इन्द्र है । हृदय से और मन से निश्चयपूर्वक मैं इन्द्र को प्राप्त करने की इच्छा करता हूँ ।। ५ ।।

     हे गौओं! तुम दुर्बल को भी पुष्ट करती हो, निस्तेज को भी सुन्दर बनाती हो । उत्तम शब्दवाली गौओ! घर को कल्याण रूप बनाती हो, इसलिये सभाओं में तुम्हारा बड़ा यश गाया जाता है ।। ६ ।।

     उत्तम बच्चोंवाली, उत्तम घास के लिये भ्रमण करनेवाली, उत्तम जल स्थान में शुद्ध जल पीनेवाली गौओ! चोर और पापी तुमपर अधिकार न करें । तुम्हारी रक्षा रुद्र के शस्त्र से चारों ओर से हो ।। ७ ।।

जय गौ माता
     _________________✍

'वैदिक सूक्त-संग्रह' [ सानुवाद ] पुस्तक से, पुस्तक कोड- 1885, विषय- गोसूक्त, पृष्ठ-संख्या- १४४-१४५, गीताप्रेस गोरखपुर,,

गौअंक, गीताप्रेस गौरखपुर की पुस्तक से और
वैदिक सूक्त संग्रह, गीताप्रेस गौरखपुर की पुस्तक से

बुधवार, 8 जून 2016

गऊमाँ से होगा निरोगी भारत का पुन:निर्माण

इस पृथ्वी पर ८४ लाख प्रकार के जीव-जन्तु हुए हैं, परन्तु वनस्पतियों की संख्या का वास्तविक गणित नहीं है। इन सभी के शरीर में केवल पांच यौगिक तत्व हैं। १) भूमि, २) जल, ३) वायु, ४) अग्नि और ५) आकाश। इतना ही नहीं ; हमारी आंखों से दिखलाई देने वाला कोई भी वस्तु इन्हीं पांच तत्वों के संयोग से बना होता है। पुराणों ने स्पष्ट कहा है। क्षिती, जल, पावक, गगन, समीर – पंच रत्न यह बना शरीर। अत: इस शरीर में इन पांच को छोड़कर कुछ और खोजना गोबर के कंडे में घृत सुखाना जैसा है।
हमारे शरीर में जब कोई बिमारी होती है उससे पहले इन्हीं पांच तत्वों का आपसी संतुलन बिगड़ता है। इस संतुलन को फिर से बनाना ही चिकित्सा है। आयुर्वेद में सदियों से यही होते आया है। वनस्पितियों को आधार मानकर शरीर में पंचमहाभूत के संतुलन को बनाया जाता है। यही कारण है कि आयुर्वेद जब तक अपने रास्ते पर था सभी रोग साध्य होते थे। अब, जब से एलोपैथी के रास्ते पर गया है, अपनी गरिमा और शक्ति को खोया है।
पंचगव्य चिकित्सा विज्ञान में यही कार्य गौमाता के गव्यों से किया जाता है। गऊमाता का गोबर इस सृष्टि का शुद्ध मिट्टी तत्व है। अत: जब भूमि तत्व का संतुलन शरीर में बिगड़ता है तब गौमाता हमें गोबर के रूप में औषधी प्रदान करती है। जब हमारे शरीर के जल तत्व का संतुलन बिगड़ जाए तब गोमाता के दूध को औषध के रूप में सेवन हैं। इसी प्रकार जब वायु तत्व का असंतुलन हो तब गौमूत्र पिया जाता है। इस प्रकार गौमाता हमारे शरीर के पांच में से तीन तत्वों के असंतुलन को सीधे – सीधे अपने गव्यों से संतुलित करती है। इसके अलावा शरीर में दो और तत्व और हैं। १) अग्नि २) आकाश। दूध में अग्नि की खोज हमारे महर्षियों ने आदि काल में ही कर लिया था। दूध से दही बनाना और दही को मथकर उसमें से मक्खन निकालना। फिर मक्खन से जल को वाष्पिकृत कर घृत निकालने की कला खोजी गई थी। प्रकृति की यह सबसे बड़ी खोज थी। जिसे हमारे पुराणों में क्षीर सागर के मंथन से दर्शाया गया है। घृत ही इस सृष्टि का शुद्ध अग्नि तत्व है। आकाश तत्व जिसे विज्ञान नहीं मानता, इसका संतुलन गऊमाँ द्वारा उत्पन्न ध्वनि (माँ ), दही मंथन प्रक्रिया से निकले हुए ध्वनि आदि से होता है। यह आकाशीय संतुलन ही हमारे मन की चेतना को संतुलित रखती है।
अंगरेजों के समय तक के भारत में सभी लोगों का जीवन गाय और उनके गव्यों पर आधारित था। दूध, घृत और छाछ का सेवन सीधे – सीधे करते थे। गोबर और गौमूत्र का सेवन कृषि कर्म से उगे अनाज, फल, फूल और सब्जियों के माध्यम से करते थे। इस प्रकार शरीर में पाये जाने वाले पांचों महाभूतों में कोई कमी नहीं होती थी। लोग कभी बिमार नहीं पड़ते थे।
अब ; जैसे – जैसे हमारा जीवन इन पांच महाभूत से हटकर कार्बन आधारित भोजन और अप्राकृत्य (अन्टीबायोटिक) ड्रग्स से जुड़ता जा रहा है वैसे – वैसे शरीर के पांचों महाभूतों का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। यही कारण है कि आजकल छोटी उम्र में ही मधुमेह जैसी बिमारियां हो रही है। ऐसे किसी भी प्रकार के असंतुलन को गाय के गव्यों से सही किया जा रहा है।
इसकी जांच की क्रिया में भारत का पौराणिक नाड़ी – नाभी विज्ञान सहायक सिद्ध हो रहा है। नाड़ी ज्ञान वेâ माध्यम से शरीर के असंतुलन की जानकारी लेकर यदि गव्य आधारित चिकित्सा की जाए तो निश्चित रूप से मनुष्य शरीर के सभी असंतुलन मिट रहे हैं। इसकी आधिकारित पढ़ाई कांचीपुरम (तमिलनाडु) स्थित पंचगव्य गुरुकुलम ने वर्ष २०१२ में शुरु किया था। पंचगव्य चिकित्सा विज्ञान में जांच की क्रिया नाड़ी और नाभी विज्ञान आधारित है जिसके कारण चिकित्सा का खर्च बहुत कम होता है।
पंचगव्य चिकित्सा विज्ञान की मुख्य उपलब्धियों में थैलिसिमिया के रोगी का पूर्ण रूप में साध्य होना। दो वर्षों तक पंचगव्य के सेवन से मधुमेह रोग का जड़ से समाप्त होना, केनसर जिसे अभी तक असाध्य माना जाता रहा इस क्षेत्र में भी उपलब्धियां प्राप्त हो रही है। अभी तक के प्रयासों से लगभग सभी असाध्य कहे जाने वाले रोग साध्य हुए हैं।
इसलिए यदि हमने अपने जिले की गोमाता की जाति को बचा लिया तो आने वाले समय में उनके गव्यों से सभी रोगों की चिकित्सा हो पाएगी। पंचगव्य चिकित्सा विज्ञान में गऊमाता का स्थानीय होना जरुरी होता है।

गाय का अर्थशास्त्र समझे सरकार

१९४७ से जो भी लोग सत्ता में आते हैं गाय के प्रति उनके ध्वनि बदल जाती हैं। हम भारत के लोग आशा रखते थे कि माननीय नरेन्द्र मोदी के प्रधान मंत्री बनते ही कम से कम गाय के अस्तित्व का मामला सुलझ जाएगा। लेकिन जो चीजें सामने घट रही है और घट चुकी है उससे नाकारा भी नहीं जा सकता है। भाजपा की सरकार गाय के प्रति चाहे जो कहे लेकिन आंकड़े कुछ और बोलते हैं।
पिछले साल भर में भारत से गोमांस का निर्यात पंद्रह प्रतिशत बढ़ा है। राजग सरकार की मंत्री मनेका गांधी के अनुसार अकेले बंगला देश को सोलह हजार टन गोमांस बेचा जा चुका है। विश्व हिंदू परिषद के प्रवीण तोगड़िया के अनुसार देश में सर्वाधिक गोमांस उत्पादन गुजरात में हुआ है। इस अवधि में नरेंद्र मोदी की सरकार रही है। वे बारह वर्ष गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। तब गोचर भूमि उद्योगपतियों को कुड़े के भाव में देने का आरोप भी उनपर लगा था। भारत में गुलाबी (दुग्ध) क्रांति का नारा बुलंद करने वाले नरेन्द्र मोदी ने जन्माष्टमी (१ अक्तूबर, २०१२) पर अपने ब्लॉग में आरोप लगाया था कि यूपीए सरकार गोमांस निर्यात द्वारा आय बढ़ा रही है। अब क्या उत्तर देंगे प्रधानमंत्री मोदी ? सत्ता में आते ही गोमांस निर्यात पर १२ वर्ष पूर्व बने कानून को कड़ाई के साथ लागू करने में इतनी देरी क्यों हो रही है। एक ओर सरकार कह रही है कि गोमांस निर्यात नहीं हो रहा है तो दूसरी ओर जो देश गोमांस खरीद रहे हैं वे कह रहे हैं कि उनके देश में गोमांस की आपूर्ति भारत कर रहा है। फिर इतना बड़ा झूठ क्यों बोला जा रहा है ?
इस संदर्भ में वर्ष १९४७ के बाद की स्थिति का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि गाय की रक्षा के प्रति अभी तक की कोई भी सरकार ईमानदार नहीं रही है। मनमोहन सिंह सरकार के योजना आयोग ने बारहवीं पंचवर्षीय योजना में बूचड़खानों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि का लक्ष्य तय किया गया था। मोंटेक सिंह अहलूवालिया पशु कत्लगाहों के आधुनिकीकरण के लिए अरबों रुपए की राशि आबंटित कर चुके थे। लाइसेंस में भी बढ़ोतरी का आदेश दिया था। इस सत्य को कौन नाकार सकता है ?
आज जो भाजपा है कल भारतीय जनसंघ था। जनसंघ की शुरुआत ही गाय की रक्षा से हुई है। जब नए – नए अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में आए थे तब वे भी गाय की रक्षा के नारे लगाते थे और गाय के रक्षार्थ जेल भी गए। उन्होंने नारा भी लगाया था ‘कटती गौवें करें पुकार, बंद करो यह अत्याचार।’ लेकिन जब उन्हें सत्ता मिली तो वे भी नारा भूल गए। ‘गाय हत्या रोकने का कानून राज्यों का है और राज्य ही इसे अमल में ला सकते हैं’ की आड़ में रहकर अपना दोष राज्यों के ऊपर मढ़ दिया। प्रश्न उठता है कि राज्य देश से परे हैं क्या ? भारत के राज्य क्या भारत के संसद के निर्णय से मुकर सकते हैं ? उन दिनों केन्द्रीय कृषिमंत्री पंजाब में मुख्यमंत्री रह चुके स्व.सुरजीत सिंह बरनाला थे। वाजपेयी जी ने इन्हें राज्यों को मनाने का कार्यभार सौंपा था। लेकिन पी ए संगमा, ममता बनर्जी और चन्द्रबाबू नायडु को वे मना नहीं पाए। पी ए संगमा ने कहा – गौमांस का भक्षण तो हम बचपन से करते आ रहे हैं, यह वैâसे बंद किया जा सकता है ? ममता बनर्जी ने कहा – गौमांस खाना तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। चन्द्रबाबू नायडु ने कहा हमारे प्रदेश में मुस्लिम जनसंख्या अधिक है इस कारण गौहत्या बंदी नहीं हो सकता। मामला अटक गया। संसद भी चुप हो गई। संसद ने इसे गंभीरता के साथ नहीं लिया। अटलजी छह वर्षों तक राज किये, गोवध नहीं रोका? एक बहाना मिल गया था। पशुधन पर कानून केवल राज्य बना सकते हैं। संविधान में यह विषय केवल राज्य – सूची में है। प्रश्न उठता है कि फिर क्यों नहीं बदलते ऐसे कबाड़ी संविधान को ?
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ६ अप्रैल, १९३८ को एक पार्टी अधिवेशन में घोषणा किये थे कि आजादी मिलने पर कांग्रेस कभी भी गोवध पर पाबंदी नहीं लगाएगी। बाद में गाय के प्रति भारतवासियों की भावना को ताड़कर बयान बदला और १९४५ आते – आते कहने लगे आजादी मिलने के बाद पहला कानून गौहत्या बंदी का बनेगा। प्रधानमंत्री बनने के बाद गोहत्या बंदी से मुकर गए और आचार्य विनोबा भावे की भावनाओं का भी कद्र नहीं किया। यहां तक कि संसद में बोला कि किसी भी किसी भी कीमत पर गौहत्या बंदी नहीं हो सकता। और कह डाला कि यदि मजबूर किया गया तो वे त्यागपत्र दे देंगे। क्योंकि वे जानते थे कि उनके चमचे जो उन दिनों संसद में थे वे ऐसा कभी नहीं होने देंगे। इस प्रकार नेहरु ने गाय के प्रति धोखा भी दिया और और बात भी बदली।
गांधीजी ने कहा था कि ‘जो गाय बचाने के लिए तैयार नहीं है, उसके लिए अपने प्राणों की आहुति नहीं दे सकता, वह हिंदू नहीं है।’ उधर मुसलिम लीग नेता मोहम्मद अली जिन््नाा से पूछा गया कि वे पाकिस्तान क्यों चाहते हैं? उनका उत्तर था, ‘ये हिंदू लोग हमसे हाथ मिला कर अपना हाथ साबुन से धोते हैं और हमें गोमांस नहीं खाने देते। मगर पाकिस्तान में ऐसा नहीं होगा।’
गाय के संबंध में अब कुछ बातें जो राजनीति से हट कर है। पैगंबरे-इस्लाम की राय जग-जाहिर है कि ‘गाय का आदर करो, क्योंकि वह चौपाए की सरदार है।’ भारत के इस्लामिक केन्द्र के वरिष्ठ सदस्य मौलाना मुश्ताक ने लखनऊ प्रेसक्लब में (१४ फरवरी, २०१२) कहा था कि ‘नबी ने गोमूत्र पीने की सलाह दी थी। इससे बीमार ठीक हो गया था।’ वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) ने अपनी सहयोगी संस्थाओं के साथ मिल कर गोमूत्र के पेटेंट के लिए आवेदन पर कार्य किया है। लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में तत्कालीन स्वास्थ्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने बताया था कि शोध में पाया गया है कि पंचगव्य घृत पूरी तरह सुरक्षित और कई घातक बिमारियों की चिकित्सा में बहुत प्रभावकारी है।
पश्चिमी वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि गौमूत्र में कार्बोलिक एसिड होने के कारण कीटनाशक होता है। अमेरिकी वैज्ञानिक मैकफर्सत ने २००२ में गोमूत्र का पेटेंट औषधि के वर्ग में करा लिया था। चर्म रोग के उपचार में यह लाभप्रद पाया गया है। गाय को चलता फिरता अस्पताल कहा। मेलबर्न विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक मैरिट क्राम्स्की द्वारा हुए शोध से निष्कर्ष निकला कि गाय के दूध को मिलाकर बने क्रीम से एचआइवी से बचाव होता है। पंचगव्य पदार्थों के गुण सर्वविदित हैं। मसलन, गोबर से लीपी गई जमीन मच्छर – मक्खी से मुक्त रहती है। महान नृशास्त्री वैरियर एल्विन ने निजी प्रयोग द्वारा कहा था कि दही से बेहतर पेट – दर्द शांत करने का उपचार नहीं है। नाइजीरिया ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति स्व. एपीजे अब्दुल कलाम की सरकारी यात्रा पर अनुरोध किया था कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की तीन हजार गंगातीरी गायें उनके देश की जरुरत है, भेजने की व्यवस्था की जाए। उस गाय का दूध, दही और मक्खन स्वास्थ्यवर्धक होता है। अंगरेजों ने गंगातीरी गाय के दूध के सेवन के लिए वारानसी में एक गौशाला बनवाई थी जो आज भी चल रही है। लेकिन दुखद तथ्य है कि प्रतिवर्ष सरकारें गायों को कसाईयों के हाथ निलाम करती है।
आल इंडिया मुसलिम मजलिस के उत्तर प्रदेश सचिव मौलाना बद्र काजमी ने आरोप लगाया था कि जिला पुलिस और मांस व्यापारियों की मिलीभगत से सहारनपुर जिले में बड़े पैमाने पर गोवंश की कटान हो रही है। लखनऊ के धर्मगुरुमौलाना इरफान फिरंगी महली ने २९ अगस्त, २०१२ को गोहत्या बंदी की मांग की थी। कुरान के जानकार इबेंसनी और हाकिम अबू नईम खुद पैगंबर की उक्ति की चर्चा करते हैं कि ‘लाजिम कर लो कि गाय का दूध पीना है, क्योंकि वह दवा है। गाय का घी शिफा है और बचो गाय के गोश्त से चूंकि वह बीमारी पैदा करता है।’ हजरत इमाम आजम अबु अनीफा ने लिखा है कि ‘तुम गाय का दूध पीने के पाबंद हो जाओ। चूंकि गाय अपने दूध के अंदर सभी तरह के पौधों के सत्त्व को रखती है।’ अपनी शोधपूर्ण पुस्तक ‘मुसलिम राज में गोसंवर्धन’ में डॉ सैयद मसूद ने लिखा भी है कि अकबर के समय में गोवध प्रतिबंधित था। फारसी में लिखी अपनी वसीयत में बाबर ने १५२६ में गोकशी पर पाबंदी लगाई थी, जिसका उनके बेटे हुमायूं ने पूरी तरह पालन किया था। आज विश्व के सबसे बड़े मुसलिम राष्ट्र इंडोनेशिया के बाली द्वीप में लंबू नामक सफेद गाय (स्थानीय भाषा में तरो) की पूजा-अर्चना की जाती है। उसका दाह-संस्कार भी किया जाता है।
इन तथ्यों से प्रमाणित होता है कि गाय कोई सांप्रदायिक जीव नहीं है। इसकी रक्षा तत्काल होनी चाहिए नहीं तो संपूर्ण सृष्टि काल-कलवित हो जाएगी।.

आध्यात्मिक शोध द्वारा प्राप्त गाय के दूध की निम्नलिखित कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं ।

आध्यात्मिक शोध द्वारा प्राप्त गाय के दूध की निम्नलिखित कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं ।
  • भारतीय मूल की गायों का दूध सर्वोत्तम सात्त्विक पेयों में से एक है । अन्य देशों   की गायों के दूध की सात्त्विकता भारतीय मूल की गायों के दूध की तुलना में ५० प्रतिशत तक अल्प होती है । इस दूध में चैतन्य को आकर्षित और शक्ति की सूक्ष्म-तरंगों को प्रक्षेपित करने की क्षमता होती है ।
  • फलस्वरूप जब हम भारतीय मूल की गायों के दूध पीते हैं तो हमारे शरीर की कोशिकाएं इस दूध में विद्यमान सात्त्विकता से संचारित (charge) हो जाती हैं ।
  • संस्कृत में एक श्‍लोक है – आहार शुद्धो सत्व शुद्धो, जिसका अर्थ है, जैसा आहार, वैसे विचार । अतएव सात्त्विक भोजन और पेय ग्रहण करने से, संपूर्ण शरीर की शुद्धि हो जाती है । जिससे हमारे विचारों में सकारात्मक परिवर्तन होते हैं । सात्त्विक विचार व्यक्ति को केवल धर्माचरण हेतु प्रेरित करते हैं ।
  • अन्य किसी भी पशु के दूध की तुलना में भारतीय मूल की गाय का दूध अधिक सात्त्विक होता है ।

गाय पर निबंध | Essay on Cow

गाय पर निबंध | Essay on Cow!
भूमिका:
गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी महत्व है, लेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का । वैदिक काल में गायों की संख्या व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी । दुधारू पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है ।

उपयोगिता:

गाय का दूध बहुत ही पौष्टिक होता है । यह बीमारों और बच्चों के लिए बेहद उपयोगी आहार माना जाता है । इसके अलावा दूध से कई तरह के पकवान बनते हैं । दूध से दही, पनीर, मक्खन और घी भी बनाता है । गाय का घी और गोमूत्र अनेक आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के काम भी काम आता है । गाय का गोबर फसलों के लिए सबसे उत्तम खाद है । गाय के मरने के बाद उसका चमघ, हड़िया व सींग सहित सभी अंग किसी न किसी काम आते हैं ।
अन्य पशुओं की तुलना में गाय का दूध बहुत उपयोगी होता है । बच्चों को विशेष तौर पर गाय का दूध पिलाने की सलाह दी जाती है क्योंकि भैंस का दूध जहां सुस्ती लाता है, वहीं गाय का दूध बच्चों में चंचलता बनाए रखता है । माना जाता है कि भैंस का बच्चा (पाड़ा) दूध पीने के बाद सो जाता है, जबकि गाय का बछड़ा अपनी मां का दूध पीने के बाद उछल-कूद करता है ।
गाय न सिर्फ अपने जीवन में लोगों के लिए उपयोगी होती है वरन मरने के बाद भी उसके शरीर का हर अंग काम आता है । गाय का चमडा, सींग, खुर से दैनिक जीवनोपयोगी सामान तैयार होता है । गाय की हड्‌डियों से तैयार खाद खेती के काम आती है ।

शारीरिक संरचना:

गाय का एक मुंह, दो आखें, दो कान, चार थन, दो सींग, दो नथुने तथा चार पांव होते हैं । पांवों के खुर गाय के लिए जूतों का काम करते हैं । गाय की पूंछ लंबी होती है तथा उसके किनारे पर एक गुच्छा भी होता है, जिसे वह मक्खियां आदि उड़ाने के काम में लेती है । गाय की एकाध प्रजाति में सींग नहीं होते ।

गायों की प्रमुख नस्लें:

गायों की यूं तो कई नस्लें होती हैं, लेकिन भारत में मुख्यत: सहिवाल (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार), गीर (दक्षिण काठियावाड़), थारपारकर (जोधपुर, जैसलमेर, कच्छ), करन फ्राइ (राजस्थान) आदि हैं । विदेशी नस्ल में जर्सी गाय सर्वाधिक लोकप्रिय है । यह गाय दूध भी अधिक देती है । गाय कई रंगों जैसे सफेद, काला, लाल, बादामी तथा चितकबरी होती है । भारतीय गाय छोटी होती है, जबकि विदेशी गाय का शरीर थोड़ा भारी होता है ।

भारत में गाय का धार्मिक महत्व:

भारत में गाय को देवी का दर्जा प्राप्त है । ऐसी मान्यता है कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवताओं का निवास है । यही कारण है कि दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशेष पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से श्रुंगार किया जाता है ।
प्राचीन भारत में गाय समृद्धि का प्रतीक मानी जाती थी । युद्ध के दौरान स्वर्ण, आभूषणों के साथ गायों को भी लूट लिया जाता था । जिस राज्य में जितनी गायें होती थीं उसको उतना ही सम्पन्न माना जाता है । कृष्ण के गाय प्रेम को भला कौन नहीं जानता । इसी कारण उनका एक नाम गोपाल भी है ।

निष्कर्ष:

कुल मिलाकर गाय का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व है । गाय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तो आज भी रीढ़ है । दुर्भाग्य से शहरों में जिस तरह पॉलिथिन का उपयोग किया जाता है और उसे फेंक दिया जाता है, उसे खाकर गायों की असमय मौत हो जाती है । इस दिशा में सभी को गंभीरता से विचार करना होगा ताकि हमारी आस्था और अर्थव्यवस्था के प्रतीक गोवंश को बताया जा सके ।

ग्लोबल वार्मिंग के एक खतरे से देसी गाय भारत को ही नहीं, सारी दुनिया को बचा सकती है

वैज्ञानिकों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते आने वाले वर्षों में दूध के उत्पादन में कमी आएगी और देसी गाय इस समस्या का हल हो सकती है

करोड़ों लोगों को रोजगार देने वाले भारतीय डेयरी उद्योग के ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित होने का खतरा है. वैज्ञानिकों का आकलन है कि इसके चलते आने वाले वर्षों में दूध के उत्पादन में कमी आ सकती है. भारतीय वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन से 2020 तक दूध उत्पादन में 30 लाख टन से ज्यादा की सालाना गिरावट की चेतावनी दी है. द टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) ने अपना यह आकलन कृषि मंत्रालय से भी साझा किया है.
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है. डेयरी उद्योग देश की करीब छह करोड़ ग्रामीण आबादी की आजीविका का आधार है. अब तक देश में दूध उत्पादन लगातार बढ़ता रहा है. 2015-16 में कुल दुग्ध उत्पादन 16 करोड़ टन रहा है. आकलन है कि दूध की घरेलू मांग 2021-22 तक 20 करोड़ टन हो जाएगी. इस लिहाज से यह खबर चिंताजनक है.
‘तापमान बढ़ने से दूध के उत्पादन और प्रजनन क्षमता में गिरावट से सबसे ज्यादा गायों की विदेशी और संकर प्रजातियां प्रभावित होंगी. भैंसों पर भी इसका असर पड़ेगा. ग्लोबल वॉर्मिंग से देसी नस्लें सबसे कम प्रभावित होंगी’. 
दूध उत्पादन में कमी आने से घरेलू मांग पूरी होने में समस्या आएगी जिससे प्रति व्यक्ति दूध की खपत घट जाएगी. बताया जा रहा है कि तापमान में बढ़ोतरी से सबसे ज्यादा असर गायों की संकर प्रजातियों पर पड़ेगा. यही वजह है कि भारत सरकार समय रहते इस समस्या पर काबू पाने की कोशिश कर रही है. ‘नेशनल गोकुल ग्राम मिशन’ के तहत देसी प्रजातियों के विकास पर ध्यान दिया जा रहा है. अखबार से बातचीत में कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह कहते हैं, ‘तापमान बढ़ने से दूध के उत्पादन और प्रजनन क्षमता में गिरावट से सबसे ज्यादा गायों की विदेशी और संकर प्रजातियां प्रभावित होंगी. भैंसों पर भी इसका असर पड़ेगा. ग्लोबल वॉर्मिंग से देसी नस्लें सबसे कम प्रभावित होंगी’.
तापमान में बढ़ोतरी की समस्या का सामना पूरी दुनिया कर रही है. देसी नस्लें सिर्फ भारत के लिए ही उम्मीद की किरण नहीं हैं. दुनिया के बड़े दूध उत्पादक देश जैसे अमेरिका, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया भी तापमान सहने वाली नस्लों के विकास के लिए भारतीय दुधारू मवेशियों का आयात कर रहे हैं.
केंद्र सरकार ‘गोकुल ग्राम’ स्थापित करने में राज्यों की मदद कर रही है. ये गायों और भैंसों की देसी नस्लों के वैज्ञानिक संरक्षण में स्थानीय किसानों की मदद करने वाले केंद्र होंगे. इसके अलावा इनमें देसी नस्लों का विकास भी किया जाएगा और किसानों को उच्च आनुवंशिक क्षमता वाले पशुओं की आपूर्ति की जाएगी.
नेशनल गोकुल मिशन के तहत केंद्र ने अब तक अलग-अलग राज्यों में कुल 14 गोकुल ग्रामों को मंजूरी दी है. पूरी तरह से आत्मनिर्भर ये केंद्र दूध, जैविक खाद, वर्मी कंपोस्ट और गोमूत्र की बिक्री से अपने संसाधन जुटाएंगे.
नेशनल गोकुल मिशन के तहत केंद्र ने अब तक अलग-अलग राज्यों में कुल 14 गोकुल ग्रामों को मंजूरी दी है. पूरी तरह से आत्मनिर्भर ये केंद्र दूध, जैविक खाद, वर्मी कंपोस्ट और गोमूत्र की बिक्री से अपने संसाधन जुटाएंगे. इसके अलावा घरेलू इस्तेमाल के लिए वे बायो-गैस से बिजली उत्पादन करेंगे और पशुओं से जुड़े उत्पादों की बिक्री भी करेंगे. एक गोकुल ग्राम में एक हजार पशुओं की देखभाल का इंतजाम होगा. इनमें दुधारू और अनुत्पादक पशुओं को 60:40 के अनुपात में रखा जाएगा.
देसी नस्लों का फायदा सिर्फ यही नहीं है कि वे ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला करने के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं. कृषि मंत्री के मुताबिक ये नस्लें प्रोटीन (ए2 टाइप) की अधिकता वाला दूध देने के लिए पहचानी जाती हैं, जो कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से बचाता है. सरकार ने देशी पशुओं की संख्या बढ़ाने और इनके संरक्षण के लिए दो ‘राष्ट्रीय कामधेनु प्रजनन केंद्र’ बनाने की भी योजना बनाई है. इनमें से एक केंद्र आंध्र प्रदेश में बनाया जा रहा है, जबकि दूसरा मध्य प्रदेश में बनाया जाएगा.

शुक्रवार, 3 जून 2016

गाय और कृष्ण भगवान

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श्रीकृष्ण और उनकी प्रिय गायें.........

बड़ी ही मधुर लीला है जरूर पढ़े

आगे गाय पाछे गाय, इत गाय उत गाय, गोविन्द को गायन में बसवोई भावे।
गायन के संग धाये, गायन में सचु पाये, गायन की खुररेणु अंग लपटावे॥

गायन सो ब्रज छायो बैकुंठ बिसरायो, गायन के हेत कर गिरि ले उठायो।
छीतस्वामी गिरिधारी विट्ठलेश वपुधारी, ग्वारिया को भेष धरे गायन में आवे॥

भगवान श्रीकृष्ण को गाय अत्यन्त प्रिय है।

भगवान ने गोवर्धन पर्वत धारण करके इन्द्र के कोप से गोप, गोपी एवं गायों की रक्षा की।
अभिमान भंग होने पर इन्द्र एवं कामधेनु ने भगवान को ‘गोविन्द’ नाम से विभूषित किया।

गो शब्द के तीन अर्थ हैं:- इन्द्रियाँ, गाय और भूमि, श्रीकृष्ण इन तीनों को आनन्द देते हैं।

गौ, ब्राह्मण तथा धर्म की रक्षा के लिए ही श्रीकृष्ण ने अवतार लिया है।

            'नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहिताय च।
          जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नम:॥'

श्रीरामचरितमानस में भी लिखा है:-

        'बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
          निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार॥'

गोमाता मातृशक्ति की साक्षात् प्रतिमा है, वेदों में कहा गया है कि गाय रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, अदिति-पुत्रों की बहन और घृतरूप अमृत का खजाना है।

भविष्यपुराण में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा है:-समुद्रमंथन के समय क्षीरसागर से लोकों की कल्याणकारिणी जो पांच गौएँ उत्पन्न हुयीं थीं उनके नाम थे - नन्दा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला और बहुला, इन्हें कामधेनु कहा गया है।

संसार में पृथ्वी और गौ से अधिक क्षमावान और कोई नहीं है, ब्राह्मणों में मंत्रों का निवास है और गाय में हविष्य स्थित है।

गाय को सर्वतीर्थमयी कहा गया है, गाय को इहलोक में मुक्ति दिलाकर परलोक में शान्ति दिलाने का माध्यम माना गया है।

श्रीकृष्ण की बाललीला का मुख्य पात्र गौएं ही थीं, श्रीकृष्ण का गाय चराने जाना, उनकी मधुर वंशी ध्वनि पर गायों का उनकी ओर भागते चले आना, श्रीकृष्ण का छोटी उम्र में हठ करके गाय का दूध दूहना सीखना एवं प्रसन्न होना, गाय का माखन चुराना आदि।

नंदबाबा के पास नौ लाख गौएँ थीं।

श्रीकृष्ण कुछ बड़े हुए तो उन्होंने गोचारण के लिए माँ यशोदा से आज्ञा माँगी:-

मैया री! मैं गाय चरावन जैंहौं।
तूँ कहि, महरि! नंदबाबा सौं, बड़ौ भयौ, न डरैहौं॥

श्रीदामा लै आदि सखा सब, अरु हलधर सँग लैहौं।
दह्यौ-भात काँवरि भरि लैहौं, भूख लगै तब खैहौं॥

बंसीबट की सीतल छैयाँ खेलत में सुख पैहौं।
परमानंददास सँग खेलौं, जाय जमुनतट न्हैहौं॥

माता यशोदा का हृदय तो धक्-धक् करने लगा कि इतनी दूर वन में मेरा प्राणधन अकेला कैसे जायेगा।

उन्होंने बहुत समझाया कि बेटा अभी तुम छोटे हो पर कृष्ण की जिद के आगे वह हार मान ही गयीं।

कार्तिकमास के शुक्लपक्ष की अष्टमी को गोचारण का मुहूर्त निकला।
माता यशोदा ने प्रात:काल ही सब मंगलकार्य किये और श्रीकृष्ण को नहला कर सुसज्जित किया।

सिर पर मोरमुकुट, गले में माला, तथा पीताम्बर धारण करवाया, हाथ में बेंत तथा नरसिंहा दिया।

फिर पैरों में जूतियाँ पहनाने लगीं तो कृष्ण ने जूते पहनने से मना कर दिया और माँ से कहा:- ‘यदि तू मेरी सारी गौओं को जूती पहना दे तो मैं इनको पहन लूँगा, जब गैया धरती पर नंगे पाँव चलेगी तो मैं भी नँगे पाँव जाऊँगा।’

श्रीकृष्ण जब तक ब्रज में रहे उन्होंने न तो सिले वस्त्र पहने, न जूते पहने और न ही कोई शस्त्र उठाया।

श्रीकृष्ण ने गोमाता की दावानल से रक्षा की, ब्रह्माजी से छुड़ाकर लाए, इन्द्र के कोप से रक्षा की।

गायों को श्रीकृष्ण से कितना सुख मिलता है यह अवर्णनीय है, जैसे ही गायें कृष्ण को देखतीं वे उनके शरीर को चाटने लगतीं हैं।

हर गाय का अपना एक नाम है, कृष्ण हर गाय को उसके नाम से पुकारते हैं तो वह गाय उनके पास दौड़ी चली आती है और उसके थनों से दूध चूने लगता है, समस्त गायें उनसे आत्मतुल्य प्रेम करती थीं।

गौ के बिना जीवन नहीं, गौ के बिना कृष्ण नहीं, कृष्णभक्ति भी नहीं।
जो व्यक्ति अपने को कृष्ण भक्त मानता है और शारीरिक व मानसिक रूप से वृन्दावन में वास करता है उन्हें तो विशेष रूप से कृष्ण की प्रसन्नता के लिए गोपालन, गोरक्षा व गोसंवर्धन पर ध्यान देना चाहिए।

नमो गोभ्य: श्रीमतीभ्य: सौरभेयीभ्य: एव च।
नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो नमो नम:॥

जय श्री राधे कृष्ण
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