गुरुवार, 19 नवंबर 2015

गौपाष्टमी पर्व की सभी गौ भक्तों (गोपालको) को गोक्रांति मंच की और से कोटि कोटि बधाईयाँ....

गौपाष्टमी पर्व की सभी गौ भक्तों (गोपालको) को गोक्रांति मंच की और से कोटि कोटि बधाईयाँ....

आज ही के दिन से भगवान श्रीकृष्ण गौवंश को गोवर्धन पर्वत पर.... संवर्धन हेतू विचरण के लिए ले गए थे....
   आज के पावन दिन मैया यशोदा ने  भगवान् श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके उन्हें गौ चारण के लिए प्रथम बार भेजा था। जिस ब्रह्म की चरण रज के लिए ब्रह्मा-शंकर तक तरसते हैं वो चरण गौ माता की सेवा के लिए कंकड़ पत्थर और कुंज-निकुंजों में विचरण करते हैं।
        गाय भगवान् श्री कृष्ण को सबसे ज्यादा प्रिय हैं। गाय की सेवा सीधी श्रीकृष्ण तक पहुँचती है। गौ माता की सेवा के कारण ही प्रभु का नाम गोपाल पड़ा। गाय हमारे आराध्य की भी आराध्या है। गौ माता में समस्त देवी-देवता निवास करते हैं।
        आज के इस युग में भगवान् श्री कृष्ण को तो बड़े बड़े भोग लगाये जाते हैं पर उनकी प्राण प्यारी गाय भूखी-प्यासी इधर उधर भटकती रहती है। अपने घर पर गाय की सेवा नहीं कर सकते तो किसी गौशाला में गौ माता को दत्तक (गोद) जरुर ले लेना। आज से पवित्र दिन और कौन सा होगा ?

    गौ सेवा एंव गौ रक्षा का संकल्प लें।

जय गौमाता जय गोपाल

निवेदक आपका मित्र
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया

बुधवार, 11 नवंबर 2015

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये

आप सभी अति प्रिय स्नेहीजनो को दीपावली की हार्दिक शुभकामना । आज गौपूजन जरूर करे । क्योकि शास्त्रो में कहा गया है "गोमय वसते लक्ष्मी" गोबर में ही लक्ष्मी जी बिराजति है। गौमाता लक्ष्मी जी की बड़ी बहेन है समुन्द्र मंथन में लक्ष्मी माता से पहले गौमाता प्रकट हुई।
दीपोत्सव के ज्योतिर्मय पर्व पर पूज्या गोमाता आपके जीवन में नवीन सात्विक ऊर्जा, सकारात्मक समझ, निर्मल मन, विवेकवती बुद्धि, हृदय अनुरागी तथा उज्जवल भविष्य के साथ सरलता, विनम्रता, दया, करुणा, संस्कार, स्वास्थ्य, दीर्घायु, समृद्धि, दानशीलता, धैर्य, शौर्य, वीरता एवं पूज्या गोमाता के प्रति पूर्ण समर्पण व सेवा का भाव प्रदान करें यही मंगल कामना करता हूँ।
आपका मित्र
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया

रविवार, 8 नवंबर 2015

गोवत्स द्वादशी

गोवत्स द्वादशी

सत्त्वगुणी, अपने सान्निध्यसे दूसरोंको पावन करनेवाली, अपने दूधसे समाजको पुष्ट करनेवाली, अपना अंग-प्रत्यंग समाजके लिए अर्पित करनेवाली, खेतोंमें अपने गोबरकी खादद्वारा उर्वराशक्ति बढानेवाली, ऐसी गौ सर्वत्र पूजनीय है । हिंदू  कृतज्ञतापूर्वक गौको माता कहते हैं । जहां गोमाताका संरक्षण-संवर्धन होता है, भक्तिभावसे उसका पूजन किया जाता है, वहां व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्रका उत्कर्ष हुए बिना नहीं रहता। भारतीय संस्कृतिमें गौको अत्यंत महत्त्व दिया गया है । वसुबारस अर्थात गोवत्स द्वादशी दीपावलीके आरंभमें आती है । यह गोमाताका सवत्स अर्थात उसके बछडेके साथ पूजन करनेका दिन है ।

१. गोमाता काे सम्पूर्ण विश्‍वकी माता क्याें कहते हैं ?

गोमाताकी रीढमें सींगसे पूंछतक ‘सूर्यकेतु’ नामक एक विशेष नाडी होती है । गोमाता अपने सींगोंके माध्यमसे सूर्यकी ऊर्जा अवशोषित करती है तथा ‘सूर्यकेतु’ नाडीमें वाहित करती है । सूर्यसे मिलनेवाली ऊर्जा दो प्रकारकी होती है । क्रिया ऊर्जा एवं ज्ञा ऊर्जा । क्रिया ऊर्जा गति तथा ज्ञा ऊर्जा विचारशक्ति दान करती है । जुगालीकी क्रियाके समय सूर्यसे प्राप्त दोनों ऊर्जाआेंको चबाकर वह अन्नमें मिला देती है । औषधीय वनस्पतियोंके रस, क्रिया ऊर्जा एवं ज्ञा ऊर्जा का संयोग होकर एक अमृत गोमाताके उदरमें पहुंचता है । वहां सर्व पाचन पूर्ण होनेके पश्‍चात यह अमृत तीन भागोंमें बंटता है – पृथ्वीके पोषण हेतु गोमय, वायुमण्डलके पोषण हेतु गोमूत्र तथा प्राणिजगत, विशेषतः मानवके पोषणके लिए दूध । इस कार गोमाताके कारण सम्पूर्ण सृष्टिका पोषण होता है । इसलिए विष्णुधर्मोत्तर पुराणमें कहा गया है कि ‘गावो विश्‍वस्य मातरः ।’ अर्थात गाय सम्पूर्ण विश्‍वकी माता है ।

२. गौमें सभी देवताओंके तत्त्व आकर्षित होते हैं

गौ भगवान श्रीकृष्णको प्रिय हैं । दत्तात्रेय देवताके साथ भी गौ है । उनके साथ विद्यमान गौ पृथ्वीका प्रतीक है । प्रत्येक सात्त्विक वस्तुमें कोई-ना-कोई देवताका तत्त्व आकर्षितहोता है । परंतु गौकी  यह विशेषता है, कि उसमें सभी देवताओंके तत्त्व आकृष्ट होते हैं । इसीलिए कहते हैं, कि गौमें सर्व देवी-देवता वास करते हैं । गौसे प्राप्त सभी घटकोंमें, जैसे दूध, घी, गोबर अथवा गोमूत्रमें सभी देवताओंके तत्त्व संग्रहित रहते हैं ।

३. गोवत्स द्वादशी का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व

ऐसी कथा है कि समुद्रमंथनसे पांच कामधेनु उत्पन्न हुर्इं । उनमेंसे नंदा नामक धेनुको उद्देशित कर यह व्रत मनाया जाता है । वर्तमान एवं भविष्यके अनेक जन्मोंकी कामनाएं पूर्ण हों एवं पूजित गौके शरीरपर जितने केश हैं, उतने वर्षोंका स्वर्गमें वास हो ।

शक संवत अनुसार आश्विन कृष्ण द्वादशी तथा विक्रम संवत अनुसार कार्तिक कृष्ण द्वादशी गोवत्स द्वादशीके नामसे जानी जाती है । यह दिन एक व्रतके रूपमें मनाया जाता है । गोवत्स द्वादशी के दिन श्री विष्णुकी आपतत्त्वात्मक तरंगें सक्रिय होकर ब्रह्मांडमें आती हैं । इन तरंगोंका विष्णुलोकसे ब्रह्मांडतकका  वहन विष्णुलोककी एक कामधेनु अविरत करती हैं । उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनेके लिए कामधेनुके प्रतीकात्मक रूपमें इस दिन गौका पूजन किया जाता है ।

४. गोवत्स द्वादशी व्रतके अंतर्गत उपवास

इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां उपवास एक समय भोजन कर रखाती है । परंतु भोजनमें गायका दूध अथवा उससे बने पदार्थ, जैसे दही, घी, छाछ एवं खीर तथा तेलमें पके पदार्थ, जैसे भुजिया, पकौडी इत्यादि ग्रहण नहीं करते, साथ ही इस दिन तवेपर पकाया हुआ भोजन भी नहीं करते । प्रातः अथवा सायंकालमें सवत्स गौकी पूजा की जाती हैं ।

५. गोवत्स द्वादशी को गौपूजन प्रात अथवा सायंकालमें करनेका शास्त्रीय आधार

प्रातः अथवा सायंकालमें श्री विष्णुके प्रकट रूपकी तरंगें  गौमें अधिक मात्रामें आकर्षित होती हैं । ये तरंगें श्री विष्णुके अप्रकट रूपकी तरंगोंको १० प्रतिशत अधिक मात्रामें गतिमान करती है । इसलिए गोवत्स द्वादशीको गौपूजन सामान्यतः प्रातः अथवा सायंकालमें करनेके लिए कहा गया है ।

उपरांत ‘इस गौके शरीरपर जितने केश हैं, उतने वर्षोंतक मुझे स्वर्गसमान सुख की प्राप्ति हो, इसलिए मैं गौपूजन करता हूं ।  इस प्रकार संकल्प किया जाता है । प्रथम गौ पूजनका संकल्प किया जाता है । तत्पश्चात पाद्य, अर्घ्य, स्नान इत्यादि उपचार अर्पित किए जाते हैं। वस्त्र अर्पित किए जाते हैं । उपरांत गोमाताको चंदन, हलदी एवं कुमकुम अर्पित किया जाता है । उपरांत अलंकार अर्पित किए जाते हैं । पुष्पमाला अर्पित की जाती है ।

तदुपरांत गौके प्रत्येक अंगको स्पर्श कर न्यास किया जाता है । गौ पूजनके उपरांत बछडेको चंदन, हलदी, कुमकुम एवं पुष्पमाला अर्पित की जाती है । उपरांत गौ तथा उसके बछडेको धूपके रूपमें दो अगरबत्तियां दिखाई जाती हैं । उपरांत दीप दिखाया जाता है । दोनोंको नैवेद्य अर्पित किया जाता है । उपरांत गौकी परिक्रमा की जाती है ।

पूजनके उपरांत पुनः गोमाताको  भक्तिपूर्वक प्रणाम करना चाहिए । गौ प्राणी है । भयके कारण वह यदि पूजन करने न दें अथवा अन्य किसी कारणवश गौका षोडशोपचार पूजन करना संभव न हों, तो पंचोपचार पूजन भी कर सकते हैं । इस पूजनके लिए पुरोहितकी आवश्यकता नहीं होती ।

६. गोवत्सद्वादशीसे मिलनेवाले लाभ

गोवत्सद्वादशीको गौपूजनका कृत्य कर उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है । इससे व्यक्तिमें लीनता बढती है । फलस्वरूप कुछ क्षण उसका आध्यात्मिक स्तर बढता है । गौपूजन व्यक्तिको चराचरमें ईश्वरीय तत्त्वका दर्शन करनेकी सीख देता है । व्रती सभी सुखोंको प्राप्त करता है ।