मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

अगले जनम मोहे गौ माता ना कीजो

अगले जनम मोहे गौ माता ना कीजो

 सड़क पर बेसहारा गौवंश

      यह सब देखते हैं पर सब आँख मूँद लेते हैं. हमारे आसपास की सड़कों पर बेसहारा पालतू जानवर  मिल जाते हैं. इन बेजुब़ानों को बूढ़ा होने पर घर से दूर मरने के लिये छोड़ दिया जाता है. यह वाकई पालतू जानवरों के प्रति लोगों की भावना का प्रतीक है.

      अब यहाँ पर मुद्दा उठता है कि गौवध को कैसे भारत में आप प्रतिबंधित कर सकते हैं. पहले के दौर में गौवंश को ना केवल दूध और हल जोतने के लिए काम में लाया जाता था, वरन् उसके अवशिष्ट का उपयोग खेतों में खाद के रूप में होता था. हालांकि यह वर्तमान में भी गांवों में होता है,लेकिन कस्बों और शहरों में पशुस्वामी गाय से बुढ़ापे में, तो उसके नर बच्चे को छोटे में ही छुटकारा पाने के उपाय कर लेते हैं. पिथौरागढ़ के ही पास एक जगह तो बूढ़ी गायों को बुरी तरह बांधकर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है और दूसरी जगह के जो ऐसा करने का बड़ा पाप नहीं करते, वे कहीं दूर छोड़ आते हैं. आप शहर के अंदर ही ऐसे कितने बेजुब़ानों को कूड़े में खाना ढूँढते हुये देख सकते हैं. कितना अमानवीय लगता है यह? यह तो केवल एक पहलू है, अब ज़रा दूसरे पहलू की बात करते हैं. भारत में कई राज्यों में गौ हत्या पर प्रतिबंध है, क्योंकि यहाँ की बहुसंख्यक हिंदु आबादी की आस्था का सवाल है. हिंदु गौ वंश का न सिर्फ आदर करता है बल्कि धार्मिक कर्मकांडों में भी गाय का उच्च स्थान है. इस आधार पर यह घोषित हो गया कि गाय को मारा नहीं जायेगा. अब ज़रा सोचिये कि क्या हम हिंदु लोग गाय को मार नहीं रहे हैं? क्या गाय,जो एक पालतू जानवर है, घर से निकाल देने के बाद सम्मान से जी रही है? क्या ऐसे बुरी तरह बांधकर बिना खाना-पानी के छोड़ देने से गाय की हत्या नहीं हो रही है. 

      असलियत तो यह है कि भारत की बहुसंख्यक आबादी कहने के बजाय यह कुछ लोगों की मोनोपॉली का नतीज़ा है कि एक समुदाय के खिलाफ करने के लिये गौवंश संरक्षण जैसा कानून बनता है और गौवंश को जिसे बचाना चाहिए, वो उसे सड़कों पर मरने के लिए छोड़ आता है,जबकि हिंदुओं की कोई व्यवस्थित संहिता नहीं है और इसमें स्वतंत्रता है कि जीवन को कैसे जीयें. अब यह तय आखिर कैसे किया जा सकता है कि गाय हिंदुओं के लिये पवित्र है तो सबके लिए पवित्र हो. यह भी देख लेना चाहिये कि हिंदुओं की ही कई निम्न स्तर रखने वाली जातियां अपनी भूख मिटाने को गाैमांस खाती हैं.

       बहुत से चरम हिंदु कहलाने वाले कहते हैं कि गाय को हम माता कहते हैं,इसलिये नहीं मारते तो अपनी माँ को ऐसे सड़कों पर मरने क्यों छोड़ देते हो? चलो गाय को माँ मान लिया किंतु गौवंश के अन्य जीव का क्या? क्या हिंदु कानून, जोकि अभी बना ही नहीं, सब पर लागू होता है. क्या जिस वैदिक धर्म के वंशज खुद को कहते हो,उस समय के लोग गौवंश की हत्या नहीं करते थे? यहाँ तक खाते भी थे. गाय को पवित्र कहने वाले आखिर भैंस और अन्य दुधारू पशुओं की चिंता क्यों नहीं? जीव हत्या के विरोधी लोग बता दें किस तरह से हम अपने दैनिक जीवन में जीव हत्या करने से बच सकते हैं? आर्थिक रूप से भी क्या गौवंश का संरक्षण संभव है? अगर आप नहीं करते जो, उसे दूसरे भी ना करें, यह थोपना कहाँ से सही है. भारत एक न्यून प्रोटीन उपभोग वाला देश है, अगर कोई इस उद्देश्य से गौमांस खा ले तो क्या गलत है? क्या सभी हिंदु शाकाहारी हैं. या ऐसा भी नहीं है कि सभी गैर हिंदु मांसाहारी ही हैं. कहने का आशय है कि कौन क्या खाये, क्या ना खाये, यह आखिर कैसे तय किया जा सकता है. सच यह भी है कि भारत गौवंशीय जीवों के मांस का बड़ा निर्यातक भी है.

       अब तय करना है कि हमें सेंसरशिप वाला समाज चाहिए या आज़ादी की जिंदगी,जहां एक वर्ग के विश्वास और परंपराओं को दूसरे पर थोपे न जायें.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें