मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

गाय सारे राष्ट्र और विश्वकी माता है

गाय सारे राष्ट्र और विश्वकी माता है 

( ब्रह्मलीन श्रद्धेय स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराज )

1. हम गायकी सेवा करेंगे तो गायसे हमारी सेवा होगी ।

2. शुद्ध संकल्पमें संकल्पसिद्धि रहती है। शुद्ध संकल्पका र्अर्थ क्या है? जिसकी पूर्तिमें लोगों का हित हो और प्रभुकी प्रसन्नता हो, उसको शुद्ध संकल्प कहते हैं। जब संकल्प शुद्ध होता है तो सिद्ध होता ही है, ऐसा प्रभुका मंगलमय विधान है।
3. सेवक कैसा होना चाहिये, इसपर विचार करनेसे लगता है कि सेवक के हृदयमें एक मधुर-मधुर पीड़ा रहनी चाहिये और उत्साह रहना चाहिये तथा निर्भयता रहना चाहिये एवं असफलता देखकर कभी भी निराश नहीं होना चाहिये। सेवक से सेवा होती है, सेवा से कोई सेवक नहीं बन सकता।
4. इस देश में ही नहीं,.समस्त विश्वमें मानव और गायका ऐसा सम्बन्ध है कि जैसा मानवशरीर में प्राण। अब अन्य देशों में गाय का सम्बन्ध आत्मीय नहीं रहा, कहीं आर्थिक बना दिया, कहीं कुछ बना दिया। मेरे ख्यालसे गाय का सम्बन्ध आत्मीय सम्बन्ध है। गाय मनुष्यमात्र की माता है।
5. लोग गायका आर्थिक पक्ष सामने रखकर सोचते हैं कि गाय कि सेवा तनसे और मनसे होना चाहिये। आज हमलोगोंकी ऐसी स्थूल दृष्टि हो गयी है कि धनकी सेवाको बहुत बड़ी सेवा समझते हैं। बहुत बड़ी सेवा तो मन की सेवा है, जिसे हर भाई-बहन कर सकता है।
5. लोग गायका आर्थिक पक्ष सामने रखकर सोचते हैं कि गाय कि सेवा तनसे और मनसे होना चाहिये। आज हमलोगोंकी ऐसी स्थूल दृष्टि हो गयी है कि धनकी सेवाको बहुत बड़ी सेवा समझते हैं। बहुत बड़ी सेवा तो मन की सेवा है, जिसे हर भाई-बहन कर सकता है।
6. हमारा मन और गाय यह एक होना चाहिये। हमारे मन में गाय बस जाय, किसलिये? इसलिये नहीं कि हमको कोई लाभ होगा, पर इसलिये कि अगर विश्व में गाय है तो सात्विक प्राण, सात्विक बुद्धि और दीर्घायुवाली बात पूरी हो सकती है।
7. केवल इसी बात को लेकर कि हमारी संस्कृतिमें गाय है, हमारे धर्म में गाय है, यह सब तो है ही, लेकिन मेरा विश्वास है कि गायका और मनुष्यके प्राणों का बहुत ही घनिष्ट सम्बन्ध है। गाय मानवीय प्रकृति से जितनी मिल-जुल जाती है, उतना और कोई पशु नहीं मिल पायेगा।
8. बच्चेके मरनेका जितना शोक होता है और उसके पैदा होनेपर जितना हर्ष और उत्सव होता है, वैसे ही गायके मरने और पैदा होनेपर शोक और हर्ष होता था, यह हमने बचपन में देखा था।
9. जिस गाय का बच्चा मर जाय उसका दूध नहीं पीते थे।आज तो बच्चा मारकर ही दूध निकालते हैं।
10. गाय जितनी प्रसन्न होती है,उतने ही उसके दूध में विटामिन्स उत्पन्न होते हैं और गाय जितनी दु:खी होती है, उतना ही दूध कमजोर होता है।
11. मेरी हार्दिक इच्छा है कि कोई घर ऐसा न हो, जिसमें गाय न हो; गाय का दूध न हो। हर घर में गाय हो और गाय का दूध पीने को मिलना चाहिये। गाय ने मानवबुद्धि की रक्षा की है।
12. बेईमानीका समर्थन करना और उससे एक-दूसरेपर अधिकार जमाना, यह बढ़ता जा रहा है । इसका कारण है कि बुद्धि सात्विक नहीं है, बुद्धि सात्विक क्यों नहीं? कारण मन सात्विक नहीं है । मन सात्विक क्यों नहीं? कारण शरीर सात्विक नहीं है। शरीर सात्विक नहीं है, तो इसका कारण? आहार सात्विक नहीं है।
13. मैं आपसे निवेदन करना चाहता था कि सचमुच जितना आपलोग गाय के सम्बन्धमें जानते हैं, उसका हजारवाँ हिस्सा भी मैं नहीं जानता हूँ, लेकिन क्या सचमुच आपलोग गाय के साथ मातृ-सम्बन्ध जोड़नेके लिए राजी हैं? अगर हाँ, तो हमारा बेड़ा पार हो जायगा।
14. जो लोग सेवा करना चाहते हैं--वे कैसे हैं, इस बातपर जोर डालिये। समाज क्या करता है, राज्य क्या करता है, कुछ लोग देते हैं कि नहीं, वह गौण है। मुख्य बात यह है कि अपने दिलमें गायके प्रति पीड़ा होती है कि नहीं?
15. गाय हमारी ही नहीं, मानवसमाजकी माँ है, सारे राष्ट्रकी और सारे विश्वकी माँ है। गायकी रक्षा होती है तभी प्रकृति भी अनुकूल होती है, भूमि भी अनुकूल होती है। गायकी सेवा होनेसे भूमिकी सेवा होती है और भूमि स्वयं रत्न देने लगती है।
16. जैसे-जैसे आप गोसेवा करते जायँगे, वैसे-वैसे आपको यह मालूम होता जायगा कि गाय आपकी सेवा कर रही है। आपको यह लगेगा कि आप गाय कि सेवा कर रहे हैं तो गाय हर तरह से स्वास्थ्य की दृष्टिसे, बौद्धिक दृष्टिसे, धार्मिक दृष्टिसे आपकी सेवा कर रही है।
17. हम सच्चे सेवक होंगे तो हमारी सेवा होगी, हमारी सेवाका मतलब मानवजातिकी सेवा होगी, मानवमात्रकी सेवासे ही सब कुछ हो सकता है। मानव जब सुधरता है तो सब कुछ सुधरता है और मानव जब बिगड़ता है तो सब कुछ बिगड़ जाता है।

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