शनिवार, 24 जनवरी 2015

एक दिवसीय गोवर्धन गौ हुंकार जन -जागरण रैली सभा का आगामी 1 फ़रवरी 2015 रविवार को आयोजन करने के सम्बन्ध में

मान्यवर 

श्रीमान…………………………
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विषय - एक दिवसीय गोवर्धन गौ हुंकार जन -जागरण रैली सभा का आगामी 1 फ़रवरी 2015 रविवार को
आयोजन करने के सम्बन्ध में आपके संरक्षण, मार्गदर्शन,सहयोग व् समर्थन हेतु प्रार्थना।

आदरणीय भाई साहब 
सादर जय गौमाता !

              हिमालय की दिव्य सत्ता एंव ऋषियों की प्ररेणा से गौ गंगा कृपा कांक्षी परम पूज्य गोपाल 'मणी' जी के सानिध्य में विभिन्न सामाजिक ,धार्मिक संगठनो ,जनप्रतिनिध्यो,गौभक्तो,एंव गौशाला संचालको के संयुक्त प्रयास से सर्वदेवमयी गौमाता को "राष्ट्रमाता" के पद पर प्रतिष्ठित करवाने हेतु राज्य स्तरीय एक दिवसीय गोवर्धन जन जागरण रैली सभा का श्री कनिका परमेश्वरी कॉलेज सोकार्पेट चेन्नई में 1 फ़रवरी को प्रात: 10 बजे से होनी सुनिश्चित हुई है।सम्पूर्ण मानव जाती की आस्था का केंद्र गौमाता के इस पावन दिव्य कार्य हेतु आप सब एंव आपके संगठन से पूर्ण सहयोग की अपेक्षा रखते है।
           भारतीय गौ क्रांति मंच  (पूज्य श्री द्वारा स्थापित गौ महिमा प्रचार प्रसार हेतु विभिन्न संगठनो के प्रतिनिध्यो  का नि:स्वार्थ समूह)आपसे इस गोवर्धन गौ हुंकार जन -जागरण रैली सभा का प्रचार प्रसार आप अपने समाज/संगठन में सम्पूर्ण तमिलनाडु प्रदेश में करवाने की अपेक्षा रखते है। सह्रदय आपको गौमाता के इस पवित्र कार्य में सादर आमंत्रित करता है। अतः आप से निवेदन है की उक्त कार्यक्रम /आयोजन के लिये अपने समाज /संगठन में बैठक कर रैली में अधिक से अधिक संख्या में सम्मिलित हो ऐसी रुपरेखा तैयार करने की कृपा करे। इस कार्य के लिए मंच आपसे पूर्ण अपेक्षा करता है। इस संदर्भ में जो भी कार्य की प्रगति हो उससे हमे अवगत कराने की कृपा करेंगे।


जय गौमाता जय गोपाल




ह्रदये से आपका

              (संयोजक)
गोवर्धन जन जागरण रैली सभा
भारतीय गौ क्रांति मंच चेन्नई (तमिलनाडु)
मो.9042322241





मंगलवार, 6 जनवरी 2015

गऊ सेवा से ही समाज का कल्याण संभव- परमपूज्य श्री कृष्णानंद जी महराज

गऊ सेवा से ही समाज का कल्याण संभव- परमपूज्य श्री कृष्णानंद जी महराज

दियों से गोमाता का भारत वर्ष की पुण्यधरा पर विशिष्ट स्थान रहा है। प्राचीन भारत में गाय समृद्धि का प्रतीक मानी जाती थी। गाय पृथ्वी पर जीवों के परम मंगल हेतु श्री हरि की अनुपम देन है। जिस घर में गाय की सेवा होती है उस परिवार के कलह-क्लेश व सभी प्रकार के वास्तुदोष दूर हो जाते है। ग्रह-नक्षत्रादि का अशुभ प्रभाव अपने ऊपर लेकर गोमाता अपने सेवकों को अभयदान देती है। धर्मग्रंथों में भी कहा गया है गावों विश्वस्थ मातर:- गाय विश्व की माता है। परंतु अफसोस आज हमारी मां को अनेकों दुर्दशाओं का सामना करना पड़ रहा है। तुम्हें मिले जो मांगों तुम उसको मिलती मौत। शायद इसी पीड़ा ने युगद्रष्टा संत गोकृपा मूर्ति परमपूज्य स्वामी कृष्णानंद जी महाराज जैसे समाज सेवी के अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया। आज पूज्य महाराज जी गोवंश की रक्षा हेतु पूर्ण रूप से संकल्पबद्ध हैं।
परमपूज्य स्वामी कृष्णानंद जी महाराज का मानना है कि कामधेनु स्वरूप गोवंश साक्षात् कल्पतरू है। प्राकृतिक विज्ञान के अनुसार एक गाय अनेक प्राणियों का पोषण करने में सक्षम है। गऊ के दूध, दही, घी, मूत्र और गोबर से प्राप्त पंचगव्य औषधियां मानव केलिए बहुमूल्य वरदान हैं। दुर्भाग्यवश माता स्वरूप गाय आज गली-गली भटक रही है। भूख से व्याकुल गाय गंदगी और प्लास्टिक खाने पर मजबूर है। कसाई घरों में नित्य गोवध होने के कारण देश का अमूल्य गोवंश दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है। गऊ द्वारा प्रद्त्त, दुग्ध-पदार्थ, औषधियां व अन्य लाभ किसी जाति विशेष के लिए ही लाभकारी नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व के लिए अमूल्य निधि हैं। अत: हमें जाति-पाति, धर्म, वर्ग की सीमा से उठकर गोसंरक्षण, गोसंवर्धन व गोशालाओं का विकास करना चाहिए। गो सेवा मिशन गोसेवा जागृति को समर्पित एक प्रयास है जो आपके सद्सहयोग से ही पूर्ण होगा। गाय हमारी माता है, जन्म-जन्म का नाता है हम इसकी सेवा व रक्षा करेंगे। भारत में विभिन्न दार्शनिक विचारों वाले अनेक संत हुए है, जिनके चलाए पथों की परंपराओं और मान्यताओं में अनेक विविध ताएं हैं। परंतु गाय के महत्व, गोसेवा और गोरक्षा के विषय पर सभी एक हैं। सभी ने गऊ सेवा को अमोघ फलदायी बताया है।
गोहत्या के महापाप से देश को बचाएं- गोहत्या महापाप है। इसके कारण ही आजदेश में हिंसा, आतंकवाद, भूकंप, बाढ़ बेरोजगारी आदि का महाप्रकोप हो रहा है। हमारे देश में गोहत्या पर तुरंत पाबंदी लगनी चाहिए और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के उस वचन को सत्य करना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत देश के आजाद होते ही गोहत्या बंद होगी। देश के सभी राजनीतिक नेतागण एवं संपूर्ण देशवासी अपनी अंतरात्मा की आवाज को पहचाने और शीघ्र ही गोहत्या बंद करवाने के लिए संघर्ष करें। गोहत्या बंद होने से देश का परमहित होगा।
गोवंश रक्षा हेतु हम सामान्य-
जन क्या कर सकते हैं?-
1 घर में कम-से-कम एक गाय को पाले। संभव न हो तो गोशाला की कम-से-कम एक गाय के पालन-पोषण का खर्च वहन करें।
2 पंचगव्य निर्मित स्वस्त व लाभप्रद मंजन, जैसे उत्पादों का ही उपयोग करें।
3 घर में गाय के ही दूध, दही, तक्र घृत का उपयोग करें।
4 बीमारियों में स्वस्त, सुलभ अपायहित पंचगव्य औषधियों का ही उपयोग करें।
5 समय-समय पर मित्र-परिवार सहित गोशाला में भेंट दे तथा गोरक्षा हेतु होने वाले आंदोलनों में सक्रीय सहयोग दें।
6 लाखों गोवंश के मृत्यु का कारण बनी प्लास्टिक थैलियां का उपयोग न करें।
7 चांदी के वर्क लगी मिठाइयों का विरोध करें।
8 गोवंश हत्या से प्रेरित हिंसक उत्पादों को जान लें तथा इस विषय में जनजागरण करें जैसे चमड़े से बने जूते-चप्पल, चांदी के वर्क, कोट, पर्स सूटकेस, बिस्तर बंद, बेल्ट, गलीचा, फर्नीचर कवर, ढोलक, वाद्ययंत्र, किक्रेट बॉल, फुटबॉल, मूर्तियां, टोपी, हाथपोस, बेबीसूट, गोमास व चरबी से बने नकली घी, बेकरी उत्पाद, आईस्क्रीम, चॉकलेट, टूथपेस्ट व पाउडर, कुछ साबुन, कोल्डक्रीम, वैनीशिंग क्रीम, लिपस्टिक, परफ्युम, नेलपॉलिश, डाई, लोशन, शैंपू, सिंथेटिक दूध, खिलौने इत्यादी।
9 आजकल पनीर में गायके बछड़े से प्राप्त रेनेट का उपयोग होता है। ऐसे पनीर का विरोध करें।
10 जैविक कृषि से प्राप्त खाद्यान्न का ही उपयोग करें।
11 विपत्ति में पड़े और कत्तलखानों में जा रहे गोवंश को छुड़ाने में सहयोग करें।
गो-ग्रास का महत्व-
हम भारतीयों की गो-ग्रास देने की प्राचीन परंपरा जो दिन-प्रतिदिन लुप्त होती जा रही है, इसको पुन: स्थापित एवं व्यापक करने के उद्देश्य से जनसाधारण को गो-ग्रास के लिए प्रेरित करना जरूरी है। गाय कगो श्रद्धा-भक्ति पूर्वक दिया गया खाद्य पदार्थ, मिष्ठान, रोटी आदि गो-ग्रास कहलाता है।

कृष्ण की कृपा प्राप्त करने का सुगम उपाय है गऊ सेवा

कृष्ण की कृपा प्राप्त करने का सुगम उपाय है गऊ सेवा
समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत पान से ब्रह्माजी के मुख से जो फेन निकला, उससे गाय उत्पन्न हुई। कामधेनु समुद्र मंथन से मिला देव-मनुष्यों को वरदान है। गो-दुग्ध से ही श्रीर-सागर बना। गौ के शरीर में समस्त देवताओं का वास है।
ऋग्वेद में गाय को अधंया यजुर्वेद में अनुपमेय, अथर्ववेद में संपत्तियों का घर कहा गया है। गौ के मुख में 6 दर्शन व षडंग तथा चारों पैरों में वेद रहते हैं। श्री कृष्ण गो-सेवा से जितने शीघ्र प्रसन्न होते हैं। उतने अन्य किसी उपाय से नहीं।
भगवान राम ने पूर्वज महाराज दिलीप भी नन्दिनी की पूजा करते थे। उन्हीं की कृपा से उनका वंश उन्नति को प्राप्त हुआ। महर्षि वशिष्ट के आश्रम में भी कामधेनु उनकी समस्त आवश्यकताओं को पूर्ण करती थीं। विश्वामित्र इसी कामधेनु को प्राप्त करने के लिये वशिष्ठ पर नारायणस्त्र, ब्रह्मास्त्र व पाशुपतास्त्र का संधान किया था परंतु कामधेनु के आशीष से सभी अस्त्र-शस्त्र निर्मूल सिद्ध हुए थे।
भगवान शिव का वाहन नंदी दक्षिणी भारत के ओंगलें नामक नस्ल का सांड था। जैन आदि तीर्थ कर भगवान ऋषभदेव का चिन्ह बैल था। तुलसीदास जी के अनुसार धर्म-अर्थ, काम व मोक्ष चारों फल गाय के चार थन रूप हैं। हिन्दू शास्त्रों में व जैन आगमों में कामधेनु को स्वर्ग की गाय कहा है। गाय को ‘अवध्या’ माना है।
भगवान महावीर के अनुसार ‘गौ रक्षा’ बिना मानव रक्षा संभव नहीं है। पैगाम्बर हजरत मोहम्मद ने कहा है की ‘गाय का दूध रसायन, घी अमृत व मांस बीमारी है। तथा गाय दौलत की रानी है। ईसा मसीह ने कहा है कि एक बैल को मारना एक मनुष्य को मारने के समान है।
स्वामी दयानंद सरस्वती ‘गौ करुणानिधि’ में कहते हैं कि ‘एक गाय अपने जीवन काल में 4,10,440 लाख मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है। जबकि उसके मांस से 80 मांसाहारी केवल एक समय अपना पेट भर सकते हैं।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कलम की नोक से गोहत्या पूर्ण बंद कर दी जाएगी। प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था भारत में गोपालन सनातन धर्म है।
पूज्य देवराहा बाबा के अनुसार जब तक गौमाता का खून इस भूमि पर गिरता रहेगा, कोई भी धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं होगा। कोई भी धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं होगा। स्व. जयप्रकाश नारायण ने कहा था, हमारे लिये गोहत्या बंदी अनिवार्य है। गाय के वैज्ञानिक महत्व को प्रतिपादित करने वाले अनेक शोध निष्कर्ष विज्ञान की कसौटी पर खरे उतरे हैं। रूसी वैज्ञानिक शिरोविच के अनुसार गाय के दूध में रेडिया विकिरण से रक्षा करने की सर्वाधिक शक्ति होती है एवं जिन घरों में गाय के गोबर से लिपाई पुताई होती है, वे घर रेडियों विकिरण से सुरक्षित रहते हैं। गाय का दूध ह्दय रोग से बचाता है। गाय का दूध स्फर्तिदायक, आलस्यहीनता व स्मरण शक्ति बढ़ाता है। गाय व उसकी संतान के रंभने से मनुष्य की अनेक मानसिक विकृतियां व रोग स्वत: ही दूर होते हैं। मद्रास के डॉ. किंग के अनुसंधान के अनुसार गाय के गोबर में हैजे की कीटाणुओं को नष्ट करने की शक्ति होती है। टी.वी. रोगियों को गाय के बाड़े या गौशाला में रखने से, गोबर व गोमूत्र की गंध से क्षय रोग (टीवी) के कीटाणु मर जाते हैं।
एक तोला गाय के घी से यज्ञ करने पर एक टन आक्सीजन (प्राणवायु) बनती है। रूस में प्रकाशित शोध जानकारी के अनुसार कत्लखानों से भूंकप की संभावनाएं बढ़ती हैं। शारीरिक रूप से गाय की रीड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती हैं जो सूर्य के प्रकाश में जाग्रत होकर पीले रंग का केरोटिन तत्व छोड़ती है। यह तत्व मिला दूध सर्व रोग नाशक, सर्व विष नाशक होता है।
गाय के घी को चावल से साथ मिलाकर जलाने से अत्यंत महत्वपूर्ण गैस जैसे इथीलीन आक्साइड गैस जीवाणु रोधक होने के कारण आप्रेशन थियेटर से लेकर जीवन रक्षक औषधि बनाने के काम आती है।
वैज्ञानिक प्रोपलीन आक्साइड गैस कृत्रिम वर्षा का आधार मानते हैं। इसलिये यज्ञ करना पाखंड नहीं अपितु पूर्ण वैज्ञानिक होते हैं। भारतीय गौवंश के मूत्र व गोबर से तैयार लगभग 32 औषधियों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र व राजस्थान आदि सरकारों से मान्यता प्राप्त हैं।
गाय के गोमूत्र में तांबा होता है। जो मनुष्य के शरीर में पहुंचकर स्वर्ण में परिवर्तन हो जाता है। व स्वर्ण में सर्व रोगनाशक शक्ति होती है। गोमूत्र में अनेक रसायन होते हैं। जैसे नाइट्रोजन कार्बोलिक एसिड, दूध देती गाय के मूत्र में लैक्टोज सल्फर, अमोनिया गैस, कापर, पौटेशियम, यूरिया, साल्ट तथा अन्य कई क्षार व आरोग्यकारी अमल होते हैं।
गाय के गोबर में 16 प्रकार के उपयोगी खनिज पाये जातें हैं। गोमूत्र में आक, नीम व तुलसी आदि उबालकर, कई गुना पानी में मिलाकर बढ़िया कीट नियंत्रण बनते हैं। गोबर की खाद प्राकृतिक है इससे धरती की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। जबकि रसायनिक खाद व कीटनाशकों से धरती बंजर हो जाती है।
ब्रह्मा की सृष्टि के सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राणी ‘गो वंश का रक्षणा’ हमें भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों में इसे शामिल करना चाहिए। गो वंश के रक्षण, पालन व संवर्धन का कार्य सभी को करना चाहिए।

गाय का ज्योतिषीय महत्व

गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी महत्व है, लेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का। वैदिक काल में गायों की संख्या व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी। दुधारू पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है।
भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही गोधन को मुख्य धन मानते थे, और सभी प्रकार से गौ रक्षा और गौ सेवा, गौ पालन भी करते थे। शास्त्रों, वेदों, आर्ष ग्रथों में गौरक्षा, गौ महिमा, गौपालन आदि के प्रसंग भी अधिकाधिक मिलते हैं। रामायण, महाभारत, भगवतगीता में भी गाय का किसी न किसी रूप में उल्लेख मिलता है। गाय का जहाँ धार्मिक आध्यात्मिक महत्व है वहीं कभी प्राचीन काल में भारतवर्ष में गोधन एक परिवार, समाज के महत्वपूर्ण धनों में से एक है।
आज के दौर में गायों को पालने और खिलाने पिलाने की परंपरा में लगातार कमी आ रही है। कभी हमारा देश पशुपालन में अग्रणी रहा है। देशवासियों की काफी जरूरतों को यही गौधन ही पूरा किया करता था। गाय से बछड़ा-बछड़ा से बैल-बैल से खेती की जरूरतें पूरी होती हैं। कृषि के लिए गाय का गोबर आज भी वरदान माना गया है।
फिर भी गौ पालन, गौ संरक्षण आदि महत्वपूर्ण क्यों नहीं है? यह एक विचारणीय प्रश्न है।
गाय को गोमाता के रूप में मानना भी अत्यन्त वैज्ञानिक है। मां के दूध के बाद सबसे पौष्टिक आहार देसी गाय का दूध ही है। इसमें जीव के लिये उपयोगी ऐसे संजीवन तत्व है कि इसका सेवन सभी विकारों को दूर रखता है। जिस प्रकार मां जीवन देती है उसी प्रकार गोमाता पूरे समाज का पोषण करने का सामर्थ्य रखती है । इसमें माता के समान ही संस्कार देने की भी क्षमता है । देशज वंशों की गाय स्नेह की प्रतिमूर्ति होती है। गाय जिस प्रकार अपने बछड़े अर्थात वत्स को स्नेह देती है वह अनुपमेय है, इसलिये उस भाव को वात्सल्य कहा गया है। वत्स के प्रति जो भाव है वह वत्सलता है। भारत में गाय को देवी का दर्जा प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवताओं का निवास है। यही कारण है कि दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशेष पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से श्रृंगार किया जाता है।प्राचीन भारत में गाय समृद्धि का प्रतीक मानी जाती थी। युद्ध के दौरान स्वर्ण, आभूषणों के साथ गायों को भी लूट लिया जाता था। जिस राज्य में जितनी गायें होती थीं उसको उतना ही सम्पन्न माना जाता है। कृष्ण के गाय प्रेम को भला कौन नहीं जानता। इसी कारण उनका एक नाम गोपल भी है।
मानव को स्वयं में परिपूर्ण होने के लिये आत्मीयता के इस संस्कार की बड़ी आवश्यकता है। परिवार, समाज, राष्ट्र व पूरी मानवता को ही धारण करने के लिये यह त्याग का संस्कार अत्यन्त आवश्यक है। पूरे विश्व का पोषण करने में सक्षम व्यवस्था के निर्माण के लिये अनिवार्य तत्व का संस्कार गोमाता मानव को देती है। शोषण मानव को दानव बनाता है।
गोमाता संस्कार देती है दोहन का। दोहन अर्थात अपनी आवश्यकता के अनुरूप ही संसाधनों का प्रयोग। जिस प्रकार गाय का दूध निकालते समय बछड़े की आवश्यकता को संवेदना के साथ देखा जाता है उसी प्रकार जीवन के सभी क्रिया-कलापों में भोग को नियंत्रित करने का संस्कार दोहन देता है। आज सारी व्यवस्था ही शोषण पर आधारित हो गई है। इस कारण सम्पन्न व विपन्न के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। गोमाता के मातृत्व को केन्द्र में रखकर बनी व्यवस्था से ही “सर्वे भवन्तु सुखिन:” को साकार करना संभव हो सकेगा। इसी आदर्श को प्रस्थापित करने हमारे ज्ञानी पूर्वजों ने गाय की पूजा की। गायों की प्रचूरता के कारण ही भारतभूमि यज्ञभूमि बनी है। पर आज हमने गायों को दुर्लक्षित कर दिया है इसी कारण देश के प्राणों पर बन पडी है। गाय के सान्निध्य मात्र से ही मनुष्य प्राणवान बन जाता है। आज हमारे शहरी जीवन से हमने गाय को कोसों दूर कर दिया है। परिणाम स्पष्ट है मानवता त्राही-त्राही कर रही है और दानवता सर्वत्र हावी है। तपोभूमि भारत ॠषियों की भूमि है। तपस्या के द्वारा यहाँ ज्ञान व विज्ञान दोनों का ही परमोच्च विकास हुआ। अपने गहन अंतरतम में प्रसुप्त सत्य को प्रकाशित करना ज्ञानयज्ञ है। वहीं सत्य जब जीवन के व्यवहार में उतारा जाता है तब ज्ञान के इस विशेष प्रयोग को विज्ञान कहते हैं। हिन्दू जीवन पद्धति के हर अंग की वैज्ञानिकता का यही रहस्य है। आधुनिक भौतिक विज्ञान की प्रगति के साथ जहाँ अन्य मतों को अपने धर्मग्रंथों को बदलना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर जैसे-जैसे अणु से भी सूक्ष्म कणों पर प्रयोग के द्वारा सृष्टि के सुक्ष्मतम रहस्यों की खोज होती जा रही है वैसे-वैसे वेदोक्त हिन्दू सिद्धान्तों की पुष्टि होती जा रही है।
बीकानेर के लालेश्वर महादेव मंदिर के महंत संवित सोमगिरीजी महाराज को रक्षा अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने सूचना दी कि आधुनिक भौतिक विज्ञान की खोजें वेदान्त के सिद्धान्तों को साबित कर रही है तो स्वामीजी ने अनायास कहा, ‘‘इसका अर्थ है अब भौतिक विज्ञान सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। वेद तो सत्य है ही उनके निकट आने से आधुनिक विज्ञान की सत्यता स्पष्ट होती है। यदि हमारे ॠषियों की बातें आज हमें वैज्ञानिक आधार पर स्पष्ट नहीं हो पा रही है तो शंका उनकी सत्यता पर नहीं विज्ञान के अधूरेपन पर करनी होगी ।”
भारतीय विज्ञान की दिशा अंदर से बाहर की ओर है। आधुनिक विज्ञान बाह्य घटनाओं के निरीक्षण व प्रयोग के द्वारा उसमें छिपे सत्य को पहचानने का प्रयत्न करता है। हिन्दू विज्ञान सूक्ष्म से स्थूल की ओर ले जाता है तो आधुनिक विज्ञान ठोस स्थूल के माध्यम से विश्लेषण व निष्कर्ष की विधि द्वारा सूक्ष्म को पकड़ने का प्रयास कर रहा है। इस मूलभूत भेद को समझने से हम भारतीय वैज्ञानिक दृष्टि का सही विकास कर सकते हैं। फिर हम अपने अज्ञान के कारण ॠषियों द्वारा स्थापित परम्पराओं को अन्धविश्वास के रूप में नकारने के स्थान पर उनमें छिपे गूढ तत्व को समझने का प्रयत्न करेंगे। गाय को भारतीय जीवन में दिये जाने वाले महत्व को भी इसी श्रद्धात्मिका दृष्टि से समझा जा सकता है। गाय का आध्यात्मिक महत्व:- गाय का विश्व स्तर पर आध्यात्मिक महत्व है, ''गावो विश्वस्य मातरः'' नवग्रहों सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहु, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, केतु के साथ साथ वरूण, वायु आदि देवताओं को यज्ञ में दी हुई प्रत्येक आहुति गाय के घी से देने की परंपरा है, जिससे सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है। यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है, और वर्षा से ही अन्न, पेड़-पौधों आदि को जीवन प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में जितने धार्मिक कार्य, धार्मिक संस्कार होते हैं जैसे नामकरण, गर्भाधान, जन्म आदि सभी में गाय का दूध, गोबर, घी, आदि का ही प्रयोग किया जाता है जहां विवाह संस्कार आदि होते हैं वहां भी गोबर के लेप से शुद्धिकरण की क्रिया करते हैं। विवाह के समय गोदान का भी बहुत महत्व माना गया है। जनना शौच और मरणाशौच मिटाने के लिए भी गाय का गोबर और गौमूत्र का प्रयोग किया जाता है।
इसकी धार्मिक वजह यह भी है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी जी का और गोमूत्र में गंगा जी का
निवास है। वैतरणी पार करने के लिए गोदान की प्रथा आज भी हमारे समाज में मौजूद है, श्राद्ध कर्म में भी गाय के दूध की खीर का प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसी खीर से पितरों की ज्यादा से ज्यादा तृप्ति होती है। पितर, देवता, मनुष्य आदि सभी को शारीरिक बल गाय के दूध और घी से ही मिलता है। गाय के शारीरिक अंगों में सभी देवताओं का निवास माना जाता है। गाय की छाया भी बेहद शुभ प्रद मानी गयी है। गाय के दर्शन मात्र से ही यात्रा की सफलता स्वत: सिद्ध हो जाती है। दूध पिलाती गाय का दर्श तो बेहद शुभ माना जाता है। गाय का ज्योतिषीय महत्व:-
 1. नवग्रहों की शांति के संदर्भ में गाय की विशेष भूमिका होती है कहा तो यह भी जाता है कि गोदान से ही सभी अरिष्ट कट जाते हैं। शनि की दशा, अंतरदशा, और साढेसाती के समय काली गाय का दान मनुष्य को कष्ट मुक्त कर देता है।
2. मंगल के अरिष्ट होने पर लाल वर्ण की गाय की सेवा और निर्धन ब्राह्मण को गोदान मंगल के प्रभाव को क्षीण करता है।
3. बुध ग्रह की अशुभता निवारण हेतु गौवों को हरा चारा खिलाने से बुध की अशुभता नष्ट होती है।
4. गाय की सेवा, पूजा, आराधना, आदि से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को सुखमय होने का वरदान भी देती हैं।
5. गाय की सेवा मानसिक शांति प्रदान करती है।
गाय से संबंधित धार्मिक वृत व उपवास:
1 गोपद्वमव्रतः- सुख, सौभाग्य, संपत्ति, पुत्र, पौत्र, आदि के सुखों को देने वाला है।
2 गोवत्सद्वादीशी व्रत:- इस व्रत से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
3. गोवर्धन पूजाः- इस लोक के समस्त सुखों में वृद्धि के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. गोत्रि-रात्र व्रतः- पुत्र प्राप्ति, सुख भोग, और गोलोक की प्राप्ति होती है।
5 गोपाअष्टमी:- सुख सौभाग्य में वृद्धि होती है।
6. पयोव्रतः- पुत्र की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दम्पत्तियों को संतान प्राप्ति होती है।
आज भी गाय की उत्पादकता व उपयोगिता में कोई कमी नहीं आई है । केवल हमने अपनी जीवनशैली को प्राकृतिक आधार से हटाकर यन्त्राधारित बना लिया है । विदेशियों के अंधानुकरण से हमने कृषि को यन्त्र पर निर्भर कर दिया । यन्त्र तो बनने के समय से ही ऊर्जा को ग्रहण करने लगता है और प्रतिफल में यन्त्रशक्ति के अलावा कुछ भी नहीं देता । बैलों से हल चलाने के स्थान पर ट्रेक्टर के प्रयोग ने जहाँ एक ओर भूमि की उत्पादकता को प्रभावित किया है वहीं दूसरी ओर गोवंश को अनुपयोगी मानकर उसके महत्व को भी हमारी दृष्टि में कम कर दिया है । फिर यंत्र तो ईंधन भी मांगते हैं।
सारी सृष्टि में केवल दो ही प्राणियों के देह ऐसे हैं जिनमे पूरे तैंतीस कोटी प्राण निवास करते हैं- गाय और मानव। मानव को कर्म स्वातंत्र्य होने के कारण वह उन प्राणों का साक्षात्कार कर अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिये उनका प्रयोग कर सकता है। इसी के लिये गोमाता का पूजन व सान्निध्य अत्यन्त उपयोगी है। इस विज्ञान के कारण ही गाय को समस्त देवताओं के निवास के रूप में पूजा जाता है। सभी धार्मिक अनुष्ठानों में गाय के पंचगव्यों का महत्व होता है। गोबर से लिपी भूमि, दूध, दही, घी से बना प्रसाद, गोमूत्र का सिंचन तथा गोमाता का पूजन पूरे तैंतीस करोड़ प्राणों को जागृत कर पूजास्थल को मानव के सर्वोच्च आध्यात्मिक उत्थान की प्रयोगशाला बना देता है। गायों की प्रचूरता के कारण ही भारतभूमि यज्ञभूमि बनी है। आज हमने गायों को दुर्लक्षित कर दिया है इसी कारण देश के प्राणों पर बन पड़ी है। गाय के सान्निध्य मात्र से ही मनुष्य प्राणवान बन जाता है। आज हमारे शहरी जीवन से हमने गाय को कोसों दूर कर दिया है। परिणाम स्पष्ट है मानवता त्राही-त्राही कर रही है और दानवता सर्वत्र हावी है।
आज मानव के स्वयं के कल्याण हेतु, विश्व की रक्षा हेतु, पर्यावरण के बचाव के लिये तथा समग्र, अक्षय विकास के लिये गाय के संवर्धन की नितान्त आवश्यकता है। गो-विज्ञान को पुन: जागृत कर जन-जन में प्रचारित करने की अनिवार्यता है। गोशालाओं के माध्यम से कटती गायों को बचाने के उपक्रम तो आपात्कालीन उपाय के रूप में करने ही होंगे किन्तु गो आधारित संस्कृति के विकास के लिये गो-केन्द्रित जीवन पद्धति को विकसित करना होगा। प्रत्येक घर में गाय का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करना आवश्यक है। गाय के सान्निध्य मात्र से ही जीवन शरीर, मन, बुद्धि के साथ ही आध्यात्मिक स्तर पर पवित्र व शुद्ध हो जायेगा। प्रतिदिन कटती लाखों गायों के अभिशाप से बचने के लिये शासन पर दबाव डालकर गो-हत्या बंदी करवाने का प्रयास तो आवश्यक है ही किन्तु उससे भी बड़ी आवश्यकता है प्रत्येक के दैनंदिन जीवन में गाय प्रमुख अंग हो गया है।
लेखक- पंडित दयानन्द शास्त्री""अंजाना""
मो. 09711060179