सोमवार, 26 मई 2014

प्रश्नों उतर गौमाता जे जुड़े हुए

प्रश्नोत्तर
गाय एवं गाय के विज्ञान से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले कुछ प्रश्नोत्तर यहाँ दिये गए है| अगर आपके मन में इन प्रश्नों के अलावा भी कोई प्रश्न आए तो आप इस पेज पर कमेंट के रूप में हम से पूछ सकते है| आपके द्वारा पूछे गए अच्छे प्रश्नों को हम यहाँ जोड़ कर सभी के लिए उसका उत्तर उपलब्ध करवाएँगे|

प्रश्न 1.) गाय क्या है?

उत्तर 1.) गाय ब्रह्मांड के संचालक सूर्य नारायण की सीधी प्रतिनिधि है| इसका अवतरण पृथ्वी पर इसलिए हुआ है ताकि पृथ्वी की प्रकृति का संतुलन बना रहे| पृथ्वी पर जितनी भी योनियाँ है सबका पालन-पोषण होता रहे| इसे विस्तृत में समझने के लिए ऋगवेद के 28वें अध्याय को पढ़ा जा सकता है|

प्रश्न 2.) गौमाता और विदेशी काऊ में अंतर कैसे पहचाने?

उत्तर 2.) गौमाता एवं विदेशी काऊ में अंतर पहचानना बहुत ही सरल है| सबसे पहला अंतर होता है गौमाता का कंधा (अर्थात गौमाता की पीठ पर ऊपर की और उठा हुआ कुबड़ जिसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती है), विदेशी काऊ में यह नहीं होता है एवं उसकी पीठ सपाट होती है| दूसरा अंतर होता है गौमाता के गले के नीचे की त्वचा जो बहुत ही झूलती हुई होती है जबकि विदेशी काऊ के गले के नीचे की त्वचा झूलती हुई ना होकर सामान्य एवं कसीली होती है| तीसरा अंतर होता है गौमाता के सिंग जो कि सामान्य से लेकर काफी बड़े आकार के होते है जबकि विदेशी काऊ के सिंग होते ही नहीं है या फिर बहुत छोटे होते है| चौथा अंतर होता है गौमाता कि त्वचा का अर्थात गौमाता कि त्वचा फैली हुई, ढीली एवं अतिसंवेदनशील होती है जबकि विदेशी काऊ की त्वचा काफी संकुचित एवं कम संवेदनशील होती है| पांचवा अंतर होता है गौमाता के

प्रश्न 3.) अगर थोड़ा सा भी दही नहीं हो तब दूध से दही कैसे बनाएँ?

उत्तर 3.) हल्के गुन-गुने दूध में नींबू निचोड़ कर दही जमाया जा सकता है| इमली डाल कर भी दही जमाया जाता है| गुड़ की सहायता से भी दही जमाया जाता है| शुद्ध चा�
प्रश्न 3.) अगर थोड़ा सा भी दही नहीं हो तब दूध से दही कैसे बनाएँ?

उत्तर 3.) हल्के गुन-गुने दूध में नींबू निचोड़ कर दही जमाया जा सकता है| इमली डाल कर भी दही जमाया जाता है| गुड़ की सहायता से भी दही जमाया जाता है| शुद्ध चाँदी के सिक्के को गुन-गुने दूध में डालकर भी दही जमाया जा सकता है|

प्रश्न 4.) किस समय पर दूध से दही बनाने की प्रक्रिया शुरू करें?

उत्तर 4.) रात्री में दूध को दही बनने के लिए रखना सर्वश्रेष्ठ होता है ताकि दही एवं उससे बना मट्ठा, तक्र एवं छाछ सुबह सही समय पर मिल सके|

प्रश्न 5.) गौमूत्र किस समय पर लें?

उत्तर 5.) गौमूत्र लेने का श्रेष्ठ समय प्रातःकाल का होता है और इसे पेट साफ करने के बाद खाली पेट लेना चाहिए| गौमूत्र सेवन के 1 घंटे पश्चात ही भोजन करना चाहिए|

प्रश्न 6.) गौमूत्र किस समय नहीं लें?

उत्तर 6.) मांसाहारी व्यक्ति को गौमूत्र नहीं लेना चाहिए| गौमूत्र लेने के 15 दिन पहले मांसाहार का त्याग कर देना चाहिए| पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को सीधे गौमूत्र नहीं लेना चाहिए, गौमूत्र को पानी में मिलाकर लेना चाहिए| पीलिया के रोगी को गौमूत्र नहीं लेना चाहिए| देर रात्रि में गौमूत्र नहीं लेना चाहिए| ग्रीष्म ऋतु में गौमूत्र कम मात्र में लेना चाहिए|
प्रश्न 7.) क्या गौमूत्र पानी के साथ लें?

उत्तर 7.) अगर शरीर में पित्त बढ़ा हुआ है तो गौमूत्र पानी के साथ लें अथवा बिना पानी के लें|

प्रश्न 8.)अन्य पदार्थों के साथ मिलकर गौमूत्र की क्या विशेषता है? (जैसे की गुड़ और गौमूत्र आदि संयोग)

उत्तर 8.) गौमूत्र किसी भी प्रकृतिक औषधी के साथ मिलकर उसके गुण-धर्म को बीस गुणा बढ़ा देता है| गौमूत्र का कई खाद्य पदार्थों के साथ अच्छा संबंध है जैसे गौमूत्र के साथ गुड़, गौमूत्र शहद के साथ आदि|

प्रश्न 9.) गाय का गौमूत्र किस-किस तिथि एवं स्थिति में वर्जित है? (जैसे अमावस्या आदि)

उत्तर 9.) अमावस्या एवं एकादशी तिथि तथा सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण वाले दिन गौमूत्र का सेवन एवं एकत्रीकरण दोनों वर्जित है|

प्रश्न 10.) वैज्ञानिक दृष्टि से गाय की परिक्रमा करने पर मानव शरीर एवं मस्तिष्क पर क्या प्रभाव एवं लाभ है?

उत्तर 10.) सृष्टि के निर्माण में जो 32 मूल तत्व घटक के रूप में है वे सारे के सारे गाय के शरीर में विध्यमान है| अतः गाय की परिक्रमा करना अर्थात पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करना है| गाय जो श्वास छोड़ती है वह वायु एंटी-वाइरस है| गाय द्वारा छोड़ी गयी श्वास से सभी अदृश्य एवं हानिकारक बैक्टेरिया मर जाते है| गाय के शरीर से सतत एक दैवीय ऊर्जा निकलती रहती है जो मनुष्य शरीर के लिए बहुत लाभकारी है| यही कारण है कि गाय की परिक्रमा करने को अति शुभ माना गया है|
प्रश्न 11.) गाय के कूबड़ की क्या विशेषता है?

उत्तर 11.) गाय के कूबड़ में ब्रह्मा का निवास है| ब्रह्मा अर्थात सृष्टि के निर्माता| कूबड़ हमारी आकाश गंगा से उन सभी ऊर्जाओं को ग्रहण करती है जिनसे इस सृष्टि का निर्माण हुआ है| और इस ऊर्जा को अपने पेट में संग्रहीत भोजन के साथ मिलाकर भोजन को ऊर्जावान कर देती है| उसी भोजन का पचा हुआ अंश जिससे गोबर, गौमूत्र और दूध गव्य के रूप में बाहर निकलता है वह अमृत होता है|

प्रश्न 12.) गौमाता के खाने के लिए क्या-क्या सही भोजन है? (सूची)

उत्तर 12.) हरी घास, अनाज के पौधे के सूखे तने, सप्ताह में कम से कम एक बार 100 ग्राम देसी गुड़ , सप्ताह में कम से कम एक बार 50 ग्राम सेंधा या काला नमक, दाल के छिलके, कुछ पेड़ के पत्ते जो गाय स्वयं जानती है की उसके खाने के लिए सही है, गाय को गुड़ एवं रोटी अत्यंत प्रिय है|

प्रश्न 13.) गौमाता को खाने में क्या-क्या नहीं देना है जिससे गौमाता को बीमारी ना हो? (सूची)

उत्तर 13.) देसी गाय जहरीले पौधे स्वयं नहीं खाती है| गाय को बासी एवं जूठा भोजन, सड़े हुए फल नहीं देना चाहिए| गाय को रात्रि में चारा या अन्य भोजन नहीं देना चाहिए| गाय को साबुत अनाज नहीं देना चाहिए हमेशा अनाज का दलिया करके ही देना चाहिए|

प्रश्न 14.) गौमाता की पूजा करने की विधि? (कुछ लोग बोलते है कि गाय के मुख कि नहीं अपितु गाय कि पूंछ कि पूजा करनी चाहिए और अनेक भ्रांतियाँ है|)

उत्तर 14.) गौमाता की पूजा करने की विधि सभी जगह भिन्न-भिन्न है और इसके बारे में कहीं भी आसानी से जाना जा सकता है| लक्ष्मी, धन, वैभव आदि कि प्राप्ति के लिए गाय के शरीर के उस भाग कि पूजा की जाती है जहां से गोबर एवं गौमूत्र प्राप्त होता है| क्योंकि वेदों में कहा गया है की “गोमय वसते लक्ष्मी” अर्थात गोबर में लक्ष्मी का वास है और “गौमूत्र धन्वन्तरी” अर्थात गौमूत्र में भगवान धन्वन्तरी का निवास है|
प्रश्न 15.) क्या गाय पालने वालों को रात में गाय को कुछ खाने देना चाहिए या नहीं?

उत्तर 15.) नहीं, गाय दिन में ही अपनी आवश्यकता के अनुरूप भोजन कर लेती है| रात्रि में उसे भोजन देना स्वास्थ्य के अनुसार ठीक नहीं है|

प्रश्न 16.) दूध से दही, घी, छाछ एवं अन्य पदार्थ बनाने के आयुर्वेद अनुसार प्रक्रियाएं विस्तार से बताईए|

उत्तर 16.) सर्वप्रथमड दूध को छान लेना चाहिए, इसके बाद दूध को मिट्टी की हांडी, लोहे के बर्तन या स्टील के बर्तन (ध्यान रखे की दूध को कभी भी तांबे या बिना कलाई वाले पीतल के बर्तन में गरम नहीं करें) में धीमी आंच पर गरम करना चाहिए| धीमी आंच गोबर के कंडे का हो तो बहुत ही अच्छा है| पाँच-छः घंटे तक दूध गरम होने के बाद गुन-गुना रहने पर 1 से 2 प्रतिशत छाछ या दही मिला देना चाहिए| दूध से दही जम जाने के बाद सूर्योदय के पहले दही को मथ देना चाहिए| दही मथने के बाद उसमें स्वतः मक्खन ऊपर आ जाता है| इस मक्खन को निकाल कर धीमी आंच पर पकाने से शुद्ध घी बनता है| बचे हुए मक्खन रहित दही में बिना पानी मिलाये मथने पर मट्ठा बनता है| चार गुना पानी मिलने पर तक्र बनता है और दो गुना पानी मिलने पर छाछ बनता है|

प्रश्न 17.) दूध के गुणधर्म, औषधीय उपयोग| किन-किन चीजों में दूध वर्जित है?

उत्तर 17.) गाय का दूध प्राणप्रद, रक्तपित्तनाशक, पौष्टिक और रसायन है| उनमें भी काली गाय का दूध त्रिदोषनाशक, परमशक्तिवर्धक और सर्वोत्तम होता है| गाय अन्य पशुओं की अपेक्षा सत्वगुणयुक्त है और दैवी-शक्ति का केंद्रस्थान है| दैवी-शक्ति के योग से गोदुग्ध में सात्विक बल होता है| शरीर आदि की पुष्टि के साथ भोजन का पाचन भी विधिवत अर्थात सही तरीके से हो जाता है| यह कभी रोग नहीं उत्पन्न होने देता है| आयुर्वेद में विभिन्न रंग वाली गायों के दूध आदि का पृथक-पृथक गुण बताया गया है| गाय के दूध को सर्वथा छान कर ही पीना चाहिए, क्योंकि गाय के स्तन से दूध निकालते समय स
प्रश्न 24.) गाय और बैल के सिंग को ऑइलपेंट और किसी भी तरह कि सजावट क्यों नहीं करनी चाहिए?

उत्तर 24.) गाय और बैल के सिंग को ऑइलपेंट और किसी भी तरह कि सजावट इसलिए नहीं करनी चाहिए क्योंकि सिंग चंद्रमा से आने वाली ऊर्जा को अवशोषित करते शरीर को देते है| अगर इसे पेंट कर दिया  जाए तो वह प्रक्रिया बाधित होती है|

प्रश्न 25.) अगर गाय का गौमूत्र नीचे जमीन पर गिर जाये तो क्या उसे हम अर्क बनाने में उपयोग कर सकते है?

उत्तर 25.) नहीं, फिर उसे केवल कृषि कार्य के उपयोग में ले सकते है|

प्रश्न 26.) भिन्न प्रांत की नस्ल वाली गाय को किसी दूसरे वातावरण में पाला जाये तो उसकी क्या हानियाँ है?

उत्तर 26.) भिन्न-भिन्न नस्लें अपनी-अपनी जगह के वातावरण के अनुरूप बनी है अगर हम उन्हे दूसरे वातावरण में ले जा कर रखेंगे तो उन्हें भिन्न वातावरण में रहने पर परेशानी होती है जिसका असर गाय के शरीर एवं गव्यों दोनों पर पड़ता है| और आठ से दस पीड़ियों के बाद  वह नस्ल बदल कर स्थानीय भी हो जाती है| अतः यह प्रयोग नहीं करना चाहिए|

प्रश्न 27.) क्या ताजा गौमूत्र से ही चंद्रमा अर्क बना सकते है, पुराने से नहीं?

उत्तर 27.) हाँ, चंद्रमा अर्क सूर्योदय से पहले चंद्रमा की शीतलता में बनाया जाता है|

प्रश्न 28.)गाय का घी और उसके उत्पाद महंगे क्यों होते है?

उत्तर 28.) एक लीटर घी बनाने में तीस लीटर दूध की खपत होती है जिसका मूल्य कम से कम 30 रु. लीटर के हिसाब से 900 रुपये केवल दूध का होता है| और इसे बनाने में मेहनत आदि को जोड़ दिया जाये तब घी का न्यूनतम मूल्य 1200 रुपये प्रति लीटर होता है| ्

बुधवार, 21 मई 2014

गोवत्स पाठशाला २०१४ जगन्नाथ पूरी Govats Pathsala 2014 Jagannath Puri

गोवत्स पाठशाला २०१४ जगन्नाथ पूरी 

गौरक्षा हेतु हनुमान जी से विनती..

गौरक्षा हेतु हनुमान जी से विनती...
हे हनुमान छुपेँ केहि कारन ।
सुरभी संकट करहुँ निबारन ॥

भीर परि गैया अति रोवे ।
तड़पत रहत प्रान निज खोवे ॥

पाद बाँधि गल छुरि चलावे ।
डारि उष्नजल चर्म खिँचावे ॥

दयानिधि साधु रखवारो ।
अबहुँ मौन केहि कारन धारो ॥

लंक उजारि धेनु सुध लीन्हो ।
निज प्रभु काज पवनसुन कीन्हो ॥

बजि चुटकी सब काम सुधारा ।
दुखी धेनु सो नगर उजारा ॥

कहि तुलसी चहुँ जुग रखवारे।
बिसरि सुभाउ धेनु पिआरे ॥

सुन लीजो प्रभु बिनती हमारी ।
दुखी धेनु अब हाय पुकारी ॥

दो॰- तुम संकर गिरिजापति बिस्वनाथ बृषकेतु ।
गुपतरूप बानर बने प्रीत रीत बनि सेतु ॥

जय बजरंगबली।

गौचरणों का दास 
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया 








मंगलवार, 20 मई 2014

कविता ***गायों की सेवा करो, रोज नवाओ शीश । खुश होकर देंगी तुम्हें, वे लाखों आशीष ।।

गायों की सेवा करो, रोज नवाओ शीश ।
खुश होकर देंगी तुम्हें, वे लाखों आशीष ।।
+ + +
बछड़े उनके जोतते, खेत और खलियान ।
जिनसे पैदा हो रहे, रोटी-सब्जी-धान ।।
+ + +
घास-फूस खाकर करें, दूध, दही की रेज ।
इसी वजह से सज रही,मिष्ठानों की सेज ।।
+ + +
गोबर करता है यहाँ, ईधन का भी काम ।
गो सेवा जिसने करी, हो गये चारो धाम ।।
+ + +
गो माता करतीं सदा, भव सागर से पार ।
इनकी तुम सेवा करो, जीवन देंगी तार ।।
+ + +
गोबर से बढ़िया नही, खाद दूसरी कोय ।
डालोगे गर यूरिया, लाख बीमारी होय ।।
+ + +
गो पालीं तब ही बने, कान्हा जी गोपाल ।
दूध-दही से वे करें, सब को मालामाल ।।
+ + +
गायों की सेवा करो, और बचाओ जान ।
कान्हा आगे आयेंगे,सुख की छतरी तान ।।
+ + +
बची नहीं गायें अगर, ऐसा होगा हाल ।
तरसेंगे फिर दूध को,इस माटी के लाल ।।
+ + +
जब भी हो अंतिम समय,करिये गैया दान ।
हमको यह समझा रहे, अपने वेद पुरान ।।

Govats Radheshyam Ravoria

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शनिवार, 17 मई 2014

कहीं आप विदेशी जर्सी गाय का दूध तो नहीं ए\पी रहें ??


कहीं आप विदेशी जर्सी गाय का दूध तो नहीं ए\पी रहें ??

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कृप्या बिना पूरी post पढ़ें ऐसी कोई प्रतिक्रिया ना दें ! कि अरे तुमने गाय मे भी स्वदेशी -विदेशी कर दिया ! अरे गाय तो माँ होती है तुमने माँ को भी अच्छी बुरी कर दिया !! लेकिन मित्रो सच यही है की ये जर्सी गाय नहीं ये पूतना है ! पूतना की कहानी तो आपने सुनी होगी भगवान कृष्ण को दूध पिलाकर मारने आई थी वही है ये जर्सी गाय !!

पूरी post नहीं पढ़ सकते तो यहाँ click करें !
https://www.youtube.com/watch?v=AclsCffns1c

सबसे पहले आप ये जान लीजिये की स्वदेशी गाय और विदेशी जर्सी गाय (सूअर ) की पहचान क्या है ? देशी और विदेशी गाय को पहचाने की जो बड़ी निशानी है वो ये की देशी गाय की पीठ पर मोटा सा हम्प होता है जबकि जर्सी गाय की पीठ समतल होती है ! आपको जानकर हैरानी होगी दुनिया मे भारत को छोड़ जर्सी गाय का दूध को नहीं पीता ! जर्सी गाय सबसे ज्यादा डैनमार्क ,न्यूजीलैंड , आदि देशो मे पायी जाती है ! डैनमार्क मे तो कुल लोगो की आबादी से ज्यादा गाय है ! और आपको ये जानकार हैरानी होगी की डैनमार्क वाले दूध ही नहीं पीते ! क्यों नहीं पीते ? क्योंकि कैंसर होने की संभवना है ,घुटनो कर दर्द होना तो आम बात है ! मधुमेह (शुगर होने का बहुत बड़ा कारण है ये जर्सी गाय का दूध ! डैनमार्क वाले चाय भी बिना दूध की पीते है ! डैनमार्क की सरकार तो दूध ज्यादा होने पर समुद्र मे फेंकवा देती है वहाँ एक line बहुत प्रचलित है 
! milk is a white poison !

और जैसा की आप जानते है भारत मे 36000 कत्लखानों मे हर साल 2 करोड़ 50 गाय काटी जाती है और जो 72 लाख मीट्रिक टन मांस का उत्पन होता है वो सबसे ज्यादा अमेरिका और उसके बाद यूरोप और फिर अरब देशों मे भेजा जाता है ! आपके मन मे स्वाल आएगा की ये अमेरिका वाले अपने देश की गाय का मांस क्यो नहीं खाते ?

दरअसल बात ये है की यूरोप और अमेरिका की जो गाय है उसको बहुत गंभीर बीमारियाँ है और उनमे एक बीमारी का नाम है Mad cow disease ! इस बीमारी से गाय के सींघ और पैरों मे पस पर जाती और घाव हो जाते हैं सामान्य रूप से जर्सी गायों को ये गंभीर बीमारी रहती है अब इस बीमारी वाली गाय का कोई मांस अगर खाये तो उसको इससे भी ज्यादा गंभीर बीमारियाँ हो सकती है ! इस लिए यूरोप और अमेरिका के लोग आजकल अपने देश की गाय मांस कम खाते हैं भारत की गाय के मांस की उन्होने ज्यादा डिमांड है ! क्योंकि भारत की गायों को ये बीमारी नहीं होती है ! आपको जानकार हैरानी होगी जर्सी गायों को ये बीमारी इस लिए होती है क्योंकि उसको भी मांसाहारी भोजन करवाया जाता है ताकि उनके शरीर मे मांस और ज्यादा बढ़े ! यूरोप और अमेरिका के लोग गाय को मांस के लिए पालते है मांस उनके लिए प्राथमिक है दूध पीने की वहाँ कोई परंपरा नहीं है वो दूध पीना अधिक पसंद भी नहीं करते !!

तो जर्सी गाय को उन्होने पिछले 50 साल मे इतना मोटा बना दिया है की वे भैंस से भी ज्यादा बत्तर हो गई है ! यूरोप की गाय की जो मूल प्रजातियाँ है holstein friesian ,jarsi ये बिलकुल विचित्र किसम की है उनमे गाय का कोई भी गुण नहीं बचा है ! जितने दुर्गुण भैंस मे होते हैं वे सब जर्सी गाय मे दिखाई देते हैं !
उदाहरण के लिए जर्सी गाय को अपने बचे से कोई लगाव नहीं होता और जर्सी गाय अपने बच्चे को कभी पहचानती भी नहीं ! कई बार ऐसा होता है की जर्सी गाय का बच्चा किसी दूसरी जर्सी गाय के साथ चला जाए उसको कोई तकलीफ नहीं ! 

लेकिन जो भारत की देशी गाय है वो अपने बच्चे से इतना प्रेम करती है इतना लगाव रखती है की अगर उसके बच्चे को किसी ने बुरी नजर से भी देखा तो वो मर डालने के लिए तैयार हो जाती है ! देशी गाय की जो सबसे बड़ी विशेषता है वो ये की वह लाखो की भीड़ मे अपने बच्चे को पहचान लेती है और लाखो की भीड़ मे वो बच्चा अपनी माँ को पहचान लेता हैं ! जर्सी गाय कभी भी पैदल नहीं चल पाती ! चलाने की कोशिश करो तो बैठ जाती है ! जबकि भारतीय गाय की ये विशेषता है 
उसे कितने भी ऊंचे पहाड़ पर चढ़ा दो चढ़ती चली जाएगी ! 

कभी आप हिमालय पर्वत की परिक्रमा करे जितनी ऊंचाई तक मनुष्य जा सकता है उतनी ऊंचाई तक आपको देशी गाय देखने को मिलेगी ! आप ऋषिकेश ,बद्रीनाथ ,आदि जाए जितनी ऊंचाई पर जाए 8000 -9000 फिट तक आपको देशी गाय देखने को मिलेगी ! जर्सी गाय को 10 फिट ऊपर चढ़ाना पड़े तकलीफ आ जाती है 
जर्सी गाय का पूरा का पूरा स्वभाव भैंस जैसा है बहुत बार ऐसा होता है जर्सी गाय सड़क पर बैठ जाये और पीछे से लोग होरन बजा बजा कर पागल हो जाते है लेकिन वो नहीं हटती ! क्योंकि हटने के लिए जो i q चाहिए वो उसमे नहीं है !!
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सामान्य रूप से ये जो जर्सी गाय उसके बारे मे यूरोप के लोग ऐसा मानते है की इसको विकसित किया गया है डुकर (सूअर )के जीन से ! भगवान ने गाय सिर्फ भारत को दी है और आपको सुन कर हैरानी होगी ये जितनी भी जर्सी गाय है यूरोप और अमेरिका मे इनका जो वंश बढ़ाया गया है वो सब artificial insemination से बढ़ाया गया और आप सब जानते है artificial insemination मे ये गुंजाइश है की किसी भी जानवर का जीन चाहे घोड़े ,का चाहें सूअर का उसमे डाल सकते है ! तो इसे सूअर से विकसित किया गया है ! और artificial insemination से भी उसको गर्भवती बनाया जाता है ये उनके वहाँ पिछले 50 साल से चल रहा है !!

यूरोप और अमेरिका के भोजन विशेषज्ञ (nutrition expert ) हैं ! उनका कहना है की अगर जर्सी गाय का भोजन करे तो 15 से 20 साल मे कैंसर होने की संभवना ,घुटनो का दर्द तो तुरंत होता है ,sugar,arthritis,ashtma और ऐसे 48 रोग होते है इसलिए उनके देश मे आजकल एक अभियान चल रहा है की अपनी गाय का मांस कम खाओ और भारत की सुरक्षित गाय मांस अधिक खाओ ! इसी लिए यूरोपियन कमीशन ने भारत सरकार के साथ समझोता कर रखा है और हर साल भारत से 72 लाख मीट्रिक टन मांस का निर्यात होता है जिसके लिए 36000 कत्लखाने इस देश मे चल रहें हैं !! 
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तो मित्रो उनके देश के लोग ना तो आजकल अपनी गाय का मांस खा रहे हैं और ना ही दूध पी रहें हैं ! और हमारे देश के नेता इतने हरामखोर है की एक तरह तो अपनी गाय का कत्ल करवा रहें हैं और दूसरी तरफ उनकी सूअर जर्सी गाय को भारत मे लाकर हमे बर्बाद करने मे लगे है ! पंजाब और गुजरात से सबसे ज्यादा जर्सी गाय है ! और एक गंभीर बात आपको सुन कर हैरानी होगी भारत की बहुत सी घी बेचने वाली कंपनियाँ बाहर से जर्सी गाय का दूध import करती है !

दूध को दो श्रेणियों मे बांटा गया है A1 और A2 !
A1 जर्सी का A2 भारतीय देशी गाय का !

तो होता ये है की इन कंपनियो को अधिक से अधिक रोज घी बनाना है अब इतनी गाय को संभलना उनका पालण पोषण करना वो सब तो इनसे होता नहीं ! और ना ही इतनी गाय ये फैक्ट्री मे रख सकते है तो ये लोग क्या करते है डैनमार्क आदि देशो से A1 दूध (जर्सी गाय ) का मँगवाते है powder (सूखा दूध )के रूप मे ! उनसे घी बनाकर हम सबको बेच रहें है ! और हम सबकी मजबूरी ये है की आप इनके खिलाफ कुछ कर नहीं सकते क्योंकि भारत मे कोई ऐसा कानून नहीं बना जो ये कहता है की जर्सी गाय का दूध A1 नहीं पीना चाहिए ! अगर कानून होगा तो ही आप कुछ करोगे ना ? यहाँ A1 - को जाँचने की लैब तक नहीं ! नेता देश बेचने मे मस्त हैं 
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तो आप सबसे निवेदन है की आप देसी गाय का ही दूध पिये उसी के गोबर से राजीव भाई द्वारा बताए फार्मूले से खाद बनाए और खेती करे ! देशी गाय की पहचान हमने ऊपर बताई थी की उसकी पीठ पर मोटा सा हम्प होता है ! दरअसल ये हम्प ही सूर्य से कुछ अलग प्रकार की तिरंगे लेता है वही उसके दूध ,मूत्र और गोबर को पवित्र बनाती है जिससे उसमे इतने गुण है ! गौ माता सबसे पहले समुन्द्र मंथन से निकली थी जिसे कामधेनु कहते है गौ माता को वरदान है की इसके शरीर से निकली को भी वस्तु बेकार नहीं जाएगी ! दूध ,हम पी लेते है ,मूत्र से ओषधि बनती है ,गोबर से खेती होती है ! और गोबर गैस गाड़ी चलती है , बिजली बनती है ! सूर्य से जो किरणे इसके शरीर मे आती है उसी कारण इसे दूध मे स्वर्ण गुण आता है और इसके दूध का रंग स्वर्ण (सोने जैसा होता है ) ! और गाय के दूध से 1 ग्राम भी कोलोस्ट्रोल नहीं बढ़ता !

कल से ही देशी गाय का दूध पिये अपने दूध वाले भाई से पूछे वो किस गाय का दूध लाकर आपको दे रहा है (वैसे बहुत से दूध वालों को देशी -जर्सी गाय का अंतर नहीं पता होगा ) आप बता दीजिये दूध देशी गाय का ही पिये ! और घी भी देशी गाय का ही खाएं !! गाय के घी के बारे मे अधिक जानकारी के लिए ये जान लीजिये !

गाय का घी मुख्य रूप से 2 तरह का है एक खाने वाला घी है और दूसरा पंचग्व्या नाक मे डालकर इलाज करने वाला ! ( पंचग्व्या घी की लागत कम होती है क्योंकि 2 -2 बूंद नाक मे या नाभि मे पड़ता है 48 रोग ठीक करता है ( 8 से 10 हजार रूपये लीटर बिकता है ) लेकिन 10 ML ही महीना चल जाता है ! इसको असली विधि जो आयुर्वेद मे लिखी उसी ढंग से बनाने वाले भारत मे ना मात्र लोग है !
एक गुजरात मे भाई है dhruv dave जी वैसे वो सबको नहीं बेचते केवल रोगी को ही देते हैं लेकिन फिर भी कभी एक बार इस्तेमाल करने की इच्छा हो तो आप email से संपर्क कर सकते हैं davedhruvever@gmail.com अगर उत्पादन मे हुआ तो शायद आपको मिल जाएँ !

आयुर्वेद मे खाने वाला गाय के दूध का घी निकालने की जो विधि लिखी है उस विधि से आप घी निकले तो आपको 1200 से 2000 रुपए किलो पड़ेगा ! क्योकि 1 किलो घी के लिए 25 से 30 लीटर दूध लग जाता है ! महंगा होने का कारण ये भी है की देशी गाय की संख्या काम होती जा रही है कत्ल बहुत हो रहा है वैसे तो यही घी सबसे बढ़िया है ! लेकिन एक दूसरे ढंग से भी आजकल निकालने लग गए हैं ! जिससे दूध से सीधा क्रीम निकालकर घी बनाया जाता है ! अब समस्या ये है की लगभग सभी कंपनियाँ या तो भैंस का घी बेचती है या गाय का घी बोलकर जर्सी का बेच रही है ! 

आपको अगर घी खाना ही है तो भारत की सबसे बड़ी गौशाला - विश्व की भी सबसे बढ़ी गौशाला वो है राजस्थान मे उसका नाम है पथमेढ़ा गौ शाला ! उनका घी खा सकते हैं पथमेढ़ा गौशाला मे 3 लाख देशी गाय है ! इनके घी की सबसे बड़ी विशेषता है ये है की ये देशी गाय का घी ही बेचते हैं ! बस अंतर ये है की यह क्रीम वाले ढंग से निकाला बनाया जाता है लेकिन फिर भी भैंस और जर्सी सूअर के घी की तुलना मे बहुत बहुत बढ़िया है ! लेकिन इसका मूल्य साधारण घी से थोड़ा ज्यादा है ये 1 लीटर 600 रूपये मे उपलब्ध है ! भगवान की अगर आप पर आर्थिक रूप से ज्यादा कृपा तो आप देशी गाय ही घी खाएं !! कम खा लीजिये लेकिन जर्सी का कभी मत खाएं !! और दूध भी हमेशा देशी गाय का ही पिये !

और अंत मे एक और बात जान लीजिये अब इन विदेशी लोगो को भारत की गाय की महत्ता का अहसास होने लगा है आपको जानकर हैरानी होगी भारतीय नस्ल की सबसे बढ़िया गाय( गीर गाय ) को जर्मनी वाले अपने देश मे ले जाकर इनका वंश आगे बढ़ाकर 2 लाख डालर (लगभग 1 करोड़ की एक गाय बेच रहें है !
जबकि भारत मे ये गीर गाय सिर्फ 5000 ही रह गई है !! तो मित्रो सबसे पहला कार्य अगर आप देश के लिए करना चाहते हैं तो गौ रक्षा करें गौ रक्षा ही भारत रक्षा है !!

आपने पूरी पोस्ट पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !
एक बार यहाँ जरूर click करें 

https://www.youtube.com/watch?v=AclsCffns1c

अमर बलिदानी राजीव दीक्षित जी की जय !
जय गौ माता जय भारत माता !

निवेदक आपका मित्र 
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया 

बुधवार, 14 मई 2014

गौक्रांति के उद्देश्य

 गाय दुनिया की सर्व श्रेश्ठ प्राणी है इसकी उपयोगिता, महत्वता और आवष्यकता धार्मिक, आध्यात्मिक सांस्कृतिक वैज्ञानिक और आर्थिक दृश्टि कोण से वर्तमान में प्रमाणित हो चुकी है।
    कलयुग में गोहत्या रुपी कंलक से पीडित आधुनिक भोगवादी मानव के अत्याचार की षिकार वेद वर्णित कामधेनु रुवरुप गाय आज स्वंय को बचाने के लिए सम्पूर्ण मानव जाति का कारुणि आह्वान करती है। ब्राह्मण्ड पालक -पोशक,जीवनी षक्ति का दान करने वाली जगत अधिश्ठात्री विष्व जननी भगवती, करुणा दया, अहिंसा, यक्षा एवं वात्सल्य की प्रतिमूर्ति और अभयदान देने में समर्थ भगवद ऊर्जा, ऋशि ऊर्जा एवं मानव ऊर्जा का मिश्रित स्रोत को हमने माता का दर्जा देकर, 33 करोड देवों का वास गोमाता में बताकर हिन्दू धर्म ने गोमाता को सर्वोच्च स्थान पर विराजित कर आरम्भ से ही इसकी उपयोगिता, महत्वता और आवष्यकता को मान्य किया है। इसके संरक्षण, सर्वधन एंव पालन के लिए न्यास पूरे देष में गौ सम्बधि क्षेत्र में धार्मिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक, सामाजिक व आर्थिक दृश्टि से हो रहे कार्यो का प्रचार -प्रसार कर मानव जीवन में सुख-षान्ति व समृद्धि के लिए गोमाता के अतिमहत्वपूर्ण योगदान व आवष्यकता को जनमानस में स्थापित करने का प्रयास करेगा।

   वर्ममान में देष भर में गौसरंक्षण, सर्वधन, सेवा, षोध इत्यादि क्षेत्रों में बहुत बडे स्तर पर कार्य हो रहे है, परन्तु उनका प्रचार – प्रसार न होने के कारण जन -मानस एवं गौसंबधि कार्यो में कार्यरत लोगों तक उसकी जानकारी नहीं पहुँच पाती है।
   
इसी विशय को ध्यान में रखकर ‘‘गौक्रांति मंच ’’ की स्थापना की गयी, जिसका मूल उद्देष्य देषभर में चल रहें गौ-आधारित कार्यो की जानकारी जन-जन तक पहुँचाने के लिए सषक्त सूचना तंत्र उपलब्ध कराना है। जिसके लिए न्यास ने www.gokranti.com आरम्भ किया है जो गौ-संबंधी विशयों की जानकारी आदान-प्रदान करने वाली वेब साईट है।

    जिससें गौ-संबंधी हो रहे कार्यो का बडे -स्तर पर प्रचार -प्रसार हो सकेगा तथा संबंधित विशय से जुडें लोग इस पर अध्ययन कर सकेगें तथा सबसे महत्वपूर्ण होगा कि प्रेरणा प्राप्त कर नये -नये लोग गौ-सम्बन्धित कार्यो से जुड सकेगें और गौमाता की उपयोगिता, महत्वत्ता और आवष्यकता जन मानस में स्थापित हो सकेगी।

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आप का मित्र   
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया 
फ़ोन -9042322241 

गाय एक पर्यावरण शास्त्र

1. गाय के रम्भाने से वातावरण के कीटाणु नष्ट होते हैं। सात्विक तरंगों का संचार होता है। 2. गौघृत का होम करने से आक्सीजन पैदा होता है। - वैज्ञानिक शिरोविचा, रूस 3. गंदगी व महामारी फैलने पर गोबर गौमूत्र का छिडक़ाव करने से लाभ होता है। 4. गाय के प्रश्वांस, गोबर गौमूत्र के गंध से वातावरण शुद्ध पवित्र होता है। 5. घटना – टी.बी. का मरीज गौशाला मे केवल गोबर एकत्र करने व वहीं निवास करने पर ठीक हो गया। 6. विश्वव्यापी आण्विक एवं अणुरज के घातक दुष्परिणाम से बचने के लिए रूस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक शिरोविच ने सुझाव दिया है - * प्रत्येक व्यक्ति को गाय का दूध, दही, छाछ, घी आदि का सेवन करना चाहिए। * घरों के छत, दीवार व आंगन को गोबर से लीपने पोतने चाहिए। * खेतों में गाय के गोबर का खाद प्रयोग करना चाहिए। * वायुमण्डल को घातक विकिरण से बचाने के लिए गाय के शुद्ध घी से हवन करना चाहिए। 7. गाय के गोबर से प्रतिवर्ष 4500 लीटर बायोगैस मिल सकता है। अगर देश के समस्त गौवंश के गोबर का बायोगैस संयंत्र में उपयोग किया जाय तो वर्तमान में ईंधन के रूप में जलाई जा रही 6 करोड़ 80 लाख टन लकउ़ी की बचत की जा सकती है। इससे लगभग 14 करोड़ वृक्ष कटने से बच सकते हैं। गाय एक अर्थशास्त्र : सबसे अधिक लाभप्रद, उत्पादन एवं मौलिक व्यवसाय है ‘गौपालन’। यदि एक गाय के दूध, दही, घी, गोबर, गौमूत्र का पूरा-पूरा उपयोग व्यवसायिक तरीके से किया जाए तो उससे प्राप्त आय से एक परिवार का पलन आसानी से हो सकता है। यदि गौवंश आधारित कृषि को भी व्यवसाय का माध्यम बना लिया जाए तब तो औरों को भी रोजगार दिया जा सकता है। * गौमूत्र से औषधियाँ एपं कीट नियंत्रक बनाया जा सकता है। * गोबर से गैस उत्वादन हो तो रसोई में ईंधन का खर्च बचाने के साथ-साथ स्लरी खाद का भी लाभ लिया जा सकता है। गोबर से काला दंत मंजन भी बनाया जाता है। * घी को हवन हेतु विक्रय करने पर अच्छी कीमत मिल सकती है। घी से विभिन्न औषधियाँ (सिद्ध घृत) बनाकर भी बेची जा सकती है। * दूध को सीधे बेचने के बजाय उत्पाद बनाकर बेचना ज्यादा लाभकारी है। गाय एक कृषिशास्त्र : मित्रों! गौवंश के बिना कृषि असंभव है। यदि आज के तथकथित वैज्ञानिक युग में टै्रक्टर, रासायनिक खाद, कीटनाशक आदि के द्वारा बिना गौवंश के कृषि किया भी जा रहा है, तो उसके भयंकर दुष्परिणाम से आज कोई अनजान नहीं है। यदि कृषि को, जमीन को, अनाज आदि को बर्बाद होने से बचाना है तो गौवंश आधारित कृषि अर्थात् प्राकृतिक कृषि को पुन: अपनाना अनिवार्य है। -

???भारतीय गायों के अस्तित्व का प्रश्न ???

अधिक दूध की मांग के आगे नतमस्तक होते हुए भारतीय पशु वैज्ञानिकों ने बजाय भारतीय गायों के संवर्द्धन के विदेशी गायों व नस्लों को आयात कर एक आसान रास्ता अपना लिया। इसके दीर्घकालिक प्रभाव बहुत ही हानिकारक हो सकते हैं। आज ब्राजील भारतीय नस्ल की गायों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। क्या यह हमारे लिए शर्म का विषय नहीं है…?
भारत में गाय को माता कहा जाता है। विश्व के दूसरे देशों में गाय को पूजनीय नहीं माना जाता। भारतीय गोवंश मानव का पोषण करता रहा है, जिसका दूध, गोमूत्र और गोबर अतुलनीय है। सुख, समृद्धि की प्रतीक रही भारतीय गाय आज गोशालाओं में भी उपेक्षित है। अधिक दूध के लिए विदेशी गायों को पाला जा रहा है, जबकि भारतीय नस्ल की गायें आज भी सर्वाधिक दूध देती हैं। गौशाला में देशी गोवंश के संरक्षण, संवर्द्धन की परंपरा भी खत्म हो रह है। हमारी गोशालाएं ‘डेयरी फार्म’ बन चुकी हैं, जहां दूध का ही व्यवसाय हो रहा है और सरकार भी इसी को अनुदान देती है। वैसे गोशाला में दान देने वाले व्यक्तियों की भी कमी नहीं है। हमें देशी गाय के महत्त्व और उसके साथ सहजीवन को समझना जरूरी है। आज भारतीय गोशालाओं से भारतीय गोवंश सिमटता जा रहा है। गाय की उत्पत्ति स्थल भी भारत ही है। गाय का उद्भव बास प्लैनिफ्रंस के रूप में प्लाईस्टोसीन के लिए चरण (15 लाख वर्ष पूर्व) में हुआ। इस प्रकार इसका सर्वप्रथम विकास एशिया में हुआ। इसके बाद प्लाईस्टोसीन के अंतिम दौर (12 लाख वर्ष पूर्व) गाय अफ्रीका और यूरोप में फैली। विश्व के अन्य क्षेत्र उत्तरी व दक्षिणी अमरीका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में तो 19वीं सदी में गोधन आया। गायों का विकास दुनिया के पर्यावरण, वहां की आबोहवा के साथ उनके भौतिक स्वरूप व अन्य गुणों में परिवर्तित हुआ। भारतीय ऋषि-मुनियों ने गाय को कामधेनु माना, जो समस्त भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करने वाली है। गाय का दूध अनमोल पेय रहा है। गोबर से ऊर्जा के लिए कंडे व कृषिके लिए उत्तम खाद तैयार होती है। गोमूत्र तो एक रामबाण दवा है, जिसका अब पेंटेंट का हो चुका है। भारतीय संस्कृति में गाय को माता का स्थान दिया गया है। गाय में सभी देवताओं का वास बताया जाता है। ‘देवता’ अर्थात देने वाले। समाज से कम से कम लेकर ज्यादा से ज्यादा देना यही दैवत्व है। गाय हमसे कम से कम लेती है और अधिक से अधिक देती है। इसलिए उसे भारतीय जीवन और अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। आज इसी कृषि प्रधान भारत का किसान दरिद्रतापूर्ण जीवन जी रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि हमने शास्त्रसम्मत विकसित ज्ञान-विज्ञान के आधार को त्याग दिया है। औद्योगिक दृष्टि से प्रगतिशील राष्ट्र अमरीका, जापान, फ्रांस आदि भी गाय पालन एवं खेती को महत्त्व दे रहे हैं किंतु गाय को माता मानने वाले भारत में गाय की स्थिति अत्यंत दयनीय है। गायों की संख्या बढ़ाए बिना, इसमें सुधार किए बिना, भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थाई विकास स्थायी विकास करना संभव नहीं है।
विदेशी नस्ल की गाय को भारतीय संस्कृति की दृष्टि से गोमाता नहीं कहा जा सकता। जर्सी, होलस्टीन, फ्रिजियन, आस्ट्रियन आदि नस्ल की तुलना भारतीय गोवंश से नहीं हो सकती। आधुनिक गोधन जिनेटिकली इंजीनियर्ड है। इन्हें मांस व दूधउत्पादन अधिक देने के लिए सुअर के जींस से बनाया गया है। अधिक दूध की मांग के आगे नतमस्तक होते हुए भारतीय पशु वैज्ञानिकों ने बजाय भारतीय गायों के संवर्द्धन के विदेशी गायों व नस्लों को आयात कर एक आसान रास्ता अपना लिया। इसके दीर्घकालिक प्रभाव बहुत ही हानिकारक हो सकते हैं। आज ब्राजील भारतीय नस्ल की गायों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। क्या यह हमारे लिए शर्म का विषय नहीं है? भारतीय नस्ल की गायें सर्वाधिक दूध देती थीं और आज भी देती हैं। ब्राजील में भारतीय गोवंश की नस्लें सर्वाधिक दूध दे रही हैं। अंग्रेजों ने भारतीयों की आर्थिक समृद्धि को कमजोर करने के लिए षड्यंत्र रचा था। कामनवैल्थ लाइब्रेरी में ऐसे दस्तावेज आज भी रखे हैं। आजादी बचाओ आंदोलन के प्रणेता प्रो. धर्मपाल ने इन दस्तावेजों का अध्ययन कर सच्चाई सामने रखी है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट में कहा गया है-ब्राजील भारतीय नस्ल की गायों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। वहां भारतीय नस्ल की गायें होलस्टीन, फ्रिजीयन (एचएफ) और जर्सी गाय के बराबर दूध देती हैं। हमारे गोवंश की शारीरिक संरचना अद्भुत है। इसलिए गोपालन के साथ वास्तु शास्त्र में भी गाय को विशेष महत्त्व दिया गया है। ज्योतिष शात्र के अनुसार भारतीय गोवंश की रीढ़ से सूर्य केतु नामक एक विशेष नाड़ी होती है, जब इस पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तब यह नाड़ी सूर्य किरणों के तालमेल से सूक्ष्म स्वर्ण कणों का निर्माण करती है। यही कारण है कि देशी नस्ल की गायों का दूध पीलापन लिए होता है। इस दूध में विशेष गुण होता है। विदेशी नस्ल की गायों का दूध त्याज्य है। ध्यान दें कि अनेक पालतू पशु दूध देते हैं, पर गाय का दूध को उसके विशेष गुण के कारण सर्वोपरि पेय कहा गया है।
गाय के दूध, गोबर व मूत्र में अद्भुत गुण हैं, जो मानव के पोषण के लिए सर्वोपरि है। देशी गाय का गोबर व गोमूत्र शक्तिशाली है। रासायनिक विश्लेषण में देखें कि खेती के लिए जरूरी 23 प्रकार के प्रमुख तत्त्व गोमूत्र में पाए जाते हैं। इन तत्त्वों में कई महत्त्वपूर्ण मिनरल, लवण, विटामिन, एसिड्स, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट होते हैं। गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। हिंदुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश उनकी माता पार्वती को गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है। गौरी-गणेश के बाद ही पूजा कार्य होता है। गोबर में खेती के लिए लाभकारी जीवाणु, बैक्टीरिया, फंगल आदि बड़ी संख्या में रहते हैं। गोबर खाद से अन्न उत्पादन व गुणवत्ता में वृद्धि होती है। गाय मानव जीवन के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्राणी है। भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति और परंपरा में गाय को इसीलिए पूजनीय ही माना जाता है। हम भारतीय गोवंश को अपनाकर उन्हें गोशाला में संरक्षित, संवर्द्धित कर सकते हैं, जिसका सर्वाधिक लाभ भी हमें ही मिलेगा। देशी गौवंश को हमारी गोशालाओं से हटाने की साजिश भी सफल हो रही है, जिस पर समय रहते ध्यान देना जरूरी है।

सोमवार, 12 मई 2014

Benefits of cow urine

Benefits of Cow Urine (Go Ark/ Go Mutra)
“Gavyam pavitram ca rasayanam ca pathyam ca hrdyam balam buddhi syata Aayuh pradam rakt vikar hari tridosh hridrog vishapaham syata”
Meaning: Cow urine panchgavya is great elixir, proper diet, pleasing to heart, giver of mental and physical strength, enhances longevity. It balances bile, mucous and airs. Remover of heart diseases and effect of poison.
Cow Urine (gomutra), is a natural antiseptic and in Ayurveda it is known as ‘Sanjivani’. It is an extremely potent medicine most effective in treating all kinds of infections especially those of the kidney and liver. Gomutra is able to cleanse the system of toxins and acts as an antidote that protects the body from various types of poison. When used as an eye drop, it is very effective in treating all manner of eye infections. Gomutra can also be used as an eco-friendly household disinfectant and natural insecticide.
Today many AIDS patients are taking cow urine therapy. People who were suffering with migraine and headache for the past 15 years have recovered within six months of taking this therapy. Whether it is the question of relieving tension or improving the memory power, in the past few years the Cow Urine Treatment and Research Center, Indore, has treated one and a half lakhs of people. Out of the total patients 85 to 90 percent were patients of constipation there is an old saying that if the stomach is clean half of the diseases get cured automatically. The patient taking cow urine therapy says that he is enjoying sound heath and passing bowels easily within one month of this therapy.
1.Cow urine has amazing germicidal power to kill varieties of germs. All germ generated diseases are thus destroyed.
2.According to Ayurveda the cause of all diseases is the imbalance in three faults (tri-dosas) i.e. mucous, bile and air. Cow urine balances the tri-dosas, thus diseases are cured.
3.Cow urine corrects functioning of liver. So, liver makes healthy pure blood. It gives disease resistance power to the body.
4.There are some micronutrients in our body, which give life strength. These micronutrients are flushed out through urine. Therefore gradually ageing steps in our body. Cow urine has all elements, which compensate for deficiency of nutrients in our body, which are required for healthy life. Thus Cow urine stops ageing process. So it is called an elixir and also life giving.
5.Cow urine contains many minerals especially Copper, gold salts, etc. It compensates for bodily mineral deficiency. Presence of gold salts protects body against diseases.
6.Mental tension hurts nervous system. Cow urine is called medhya and hradya, which means it, gives strength to brain and heart. Thus cow urine protects heart and brain from damages caused by mental tension and protects these organs from disorders and diseases.
7.Excessive use of any medicine leaves some residue in our body. This residue causes diseases. Cow urine destroys the poisonous effects of residues and makes body disease free.
8.Electric currents (rays) which are present in the
environment keep our body healthy. These rays in form of extremely small currents enter our body through Copper in our body. We get Copper from cow urine. To attract these electric waves is quality of Copper. Thus we become healthy.
9.By acting against the voice of soul (immoral & sinful action), the heart and mind become narrow minded. Due to this the functioning of body is effected and causes diseases. Cow urine provides mode of goodness. Thus helps us to perform correct activities by mind. Thus protects from diseases.
10.In scriptures some diseases are said to be due to sinful actions performed in previous lives which we have to bear. Ganga resides in cow urine. Ganga is destroyer of sins, thus cow urine destroys such previous sins and so diseases are cured.
11.The diseases caused by entrance of ghosts in body are cured by intake of cow urine. The Master of ghosts is Lord Shiva. Lord Shiva holds Ganga on his head. Ganga is in cow urine also. Thus by taking cow urine, the ghosts get to see Ganga over their master's head. So they are calmed and become peaceful. So they do not trouble the body. Thus, diseases caused by entrance of ghosts are also destroyed.
12.By regularly taking cow urine before sickness, we get so much immunity that any attack of diseases is repulsed.
13.Cow urine being miraculous poison destroyer, destroys the disease caused by poison (Toxin). Extremely dangerous chemicals are purified by cow urine. Cow urine provides immunity power by increasing resistance power against diseases in human body. It is anti toxin.
14."Sarve rogaah hi mandagnau" All diseases begin with mandagni (Low fire i.e. digestive capacity). If fire is strong, diseases won't occur. Cow urine keeps the fire strong.
Chemical description of cow urine as per modern concepts and cure of diseases accordingly
Chemical contents of cow urine:-
1. Nitrogen N2 ,NH2 Removes blood abnormalities and toxins, Natural stimulant of urinary track, activates kidneys and it is diuretic.
2. Sulphur S Supports motion in large intestines. Cleanses blood.
3. Ammonia NH3 Stabilise bile, mucous and air of body. Stabilises blood formation.
4. Copper Cu Controls built up of unwanted fats
5. Iron Fe Maintains balance and helps in production of red blood cells & haemoglobin. Stabilises working power.
6. Urea CO(NH2)2 Affects urine formation and removal. Germicidal.
7. Uric Acid C5H4N4O3 Removes heart swelling or inflammation. It is diuretic therefore destroys toxins.
8. Phosphate P Helps in removing stones from urinary track.
9. Sodium Na Purifies blood. Antacid
10. Potassium K Cures hereditary rheumatism. Increases appetite.
Removes muscular weakness and laziness.
11. Manganese Mn Germicidal, stops growth of germs, protects decay due to gangrene.
12. Carbolic acid HCOOH Germicidal, stops growth of germs and decay due to gangrene
13. Calcium Ca Blood purifier, bone strengthener, germicidal
14. Salt NaCl Decreases acidic contents of blood, germicidal
15. Vitamins A,B,C,D,E Vitamin B is active ingredient for energetic life and saves from nervousness and thirst, strengthens bones and reproductive ingredient for energetic life and saves from nervousness and thirst, strengthens bones and reproductive power.
16. Other Minerals Increase immunity
17. Lactose C6H12O6 Gives satisfaction., strengths heart, removes thirst and nervousness.
18. Enzymes Make healthy digestive juices, increase immunity
19. Water (H2O) . It is life giver. Maintains fluidity of blood, maintains body temperature
20. Hipuric acid CgNgNox . Removes toxins through urine
21. Creatinin C4HgN2O2 Germicide
22. Aurum Hydroxide AuOH It is germicidal and increases immunity power. AuOH is highly antibiotic and anti-toxic
(Source : Goshala)
Gomutra has been found to be a good digestive, laxative and a neutralizing agent against toxins. With regard to the Ayurvedic concept of tridosha, Gomutra is said to be a vitiator of kapha and is reported to alleviate vata and pitta disorders.
Cow's urine has been described in Ayurveda as a therapeutic agent. Gomutra is used as a cure for various diseases such as anaemia 5.6, jaundice 7, rakta pitta 8, heart diseases 9, piles 10 and hoarseness of voice II as the main treatment or as anupan, i.e. as a base for other plant derived drugs or minerals such as loha-bhasma or loha-churna. It is interesting to know that cow's fermented urine is also used in Africa as a treatment for malaria 12; cattle do not suffer from malaria although there is babesiosis, an infection of red cells. (Source:- govigyan)
CLINICAL BENEFITS AND INDICATIONS:
Note: dose and volume etc are not discussed here as it is fixed based on condition, type of patient, type of disorder etc. hence it is carefully administered by physician after complete analysis of patient’s criteria.
In Hypercholesterolemia: Gomutra along with jeeraka, honey and triphala churna taken in empty stomach daily reduces cholesterol, harmful alkaloids, etc.
In Obesity: Gomutra along with honey and lime juice made as a drink consumed daily reduces weight greatly without any harm to other systems.
In High Degree Fevers: Gomutra especially arka can be administered along with jeeraka water reduces the fever and also kindles digestive fire.
In Astma and Other Bronchial Disorders: Gomutra mixed with shunti and pippali and little honey. This mixture is administered for 1-2 week twice daily in empty stomach in morning and at bed time at night. This also reduces wheeze.
In Stomach Pain and Abdominal Colic’s: (Other Than Appendicitis And Renal Colic’s): Warm the Gomutra along with vata shamaka tailam and applied warm over pain region and done smooth massage in anulomana direction.
In Hypertension/Depression/Headaches: Gomutra is heated with ghee and the fumes are inhaled followed by application of same mixture in naval (nabhi). This also releases thamas.
In Baldness/Alopecia: - Gomutra nasya