सोमवार, 24 सितंबर 2012

गौ सेवा या गौ रक्षा का लोग गलत मतलब निकाल लेते हैँ

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सब लोग ध्यान से पढ़ेँ
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गौ सेवा या गौ रक्षा का लोग गलत मतलब निकाल लेते हैँ। इसका मतलब ये नहीँ है कि एक डंडा हाथ मेँ लिया एक कट्टा कमर मेँ फसाया और निकल लिये कसाईयोँ और बूचड़ोँ की खोज मे
चूंकि हिन्दू धर्म की विशेषता है कि वो अपनी विसंगतियोँ को भी खुले दिल से स्वीकारता है
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हमारे साथ यही दिक्कत है कि नागपंचमी पर नाग को दूध पिलायेँगेँ और साल के बाकी दिन जहाँ कहीँ साँप नजर आया फौरन उसे मार देँगेँ
गौअष्टमी के दिन गाय को ढ़ूंढ कर चारा खिलायेँगेँ और साल के बाकी दिन बैल के घर के पास नजर आते ही डंडा मार के भगायेँगे

मैँ कोई सेकुलरोँ वाली भाषा इस्तेमाल नहीँ कर रहा हूँ क्योँकि सेकुलरोँ और सुअरोँ मेँ कोई फर्क नहीँ है

कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है गौ रक्षा करने का अर्थ ट्रकोँ को पकड़ना बस नहीँ है
अगर आप लावारिश गायोँ को पकड़कर गौशाला मेँ छोड़ आते हैँ तो ये भी गौ सेवा है
अगर आप एक गाय को चारा डालते है पानी पिलाते हैँ तो ये भी गौ सेवा है
अगर आप एक बीमार बैल को देखकर पास के पशु अस्पताल मेँ 100 रुपये खर्च करके इलाज करवा देते हैँ तो ये भी गौ सेवा है
अगर आप एक दिन का गुटखा,पान,होटल,पार्टी का अपना खर्चा बचाकर उस पैसे को पास की गौशाला मेँ दान कर देते हैँ तो ये भी गौ सेवा है
चूंकि कुछ लोग ये बोलते हैँ कि अमुक राज्य मेँ हजारोँ गायेँ कट रहीँ हैँ वहाँ जाके बहादुरी दिखाओ वगैरह वगैरह उनसे तो हम यही कहते हैँ कि हम लोग किसी प्रधानमंत्री की औलाद नहीँ हैँ कि उठाया हैलीकॉप्टर और चल दिये बूचड़खानोँ पर बम पटकने के लिये

इन सब के लिये जमीनी तौर पर सुदृढ़ रहना पड़ता है हम तो ये कहते हैँ कि अगर आपने अपने स्तर पर एक गाय को भी जीवन दे दिया तो आपके लिये ये सबसे बड़ा पुण्य होगा और गौ सेवा तो होगी ही
हम सोशल मीडिया और जमीनी स्तर पर भी लोगोँ से छोटे समूह और दल बनाने की बात किया करते थे पर आप लोगोँ के कानोँ मेँ जूँ नहीँ रेँगीँ

हम फिर कह रहे हैँ आप लोग भी समूह,समितियोँ,दलोँ आदि का भी अपने स्तर से निर्माण कीजिये,गौशालाओँ मेँ सहयोग दीजिये

अपने आपको छोटा महसूस मत कीजिये क्योँकि कही पर जाने के लिए हमें पहला कदम रखना ही पड़ता है और एक एक कदम कर ही मीलों की दूरियाँ तय होती है

भगवान आपकी सहायता करे
जय गौ माता
स्वदेशी अपनाए व अपने संबंधियों को प्रेरित करे
जय हिंद जय भारत

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

गौ माता की अद्भुत महिमा



महामहिमामयी गौ हमारी माता है उनकी बड़ी ही महिमा है वह सभी प्रकार से पूज्य है गौमाता की रक्षा और सेवा से बढकर कोई दूसरा महान पुण्य नहीं है .


१. गौमाता को कभी भूलकर भी भैस बकरी आदि पशुओ की भाति साधारण नहीं समझना चाहि...
ये गौ के शरीर में "३३ करोड़ देवी देवताओ" का वास होता है. गौमाता श्री कृष्ण की परमराध्या है, वे भाव सागर से पार लगाने वाली है.

२. गौ को अपने घर में रखकर तन-मन-धन से सेवा करनी चाहिये, ऐसा कहा गया है जो तन-मन-धन से गौ की सेवा करता है. तो गौ उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी करती है.

३. प्रातः काल उठते ही श्री भगवत्स्मरण करने के पश्चात यदि सबसे पहले गौमाता के दर्शन करने को मिल जाये तो इसे अपना सौभाग्य मानना चाहिये.

४. यदि रास्ते में गौ आती हुई दिखे, तो उसे अपने दाहिने से जाने देना चाहिये .

५. जो गौ माता को मारता है, और सताता है, या किसी भी प्रकार का कष्ट देता है, उसकी २१ पीढियाँ नर्क में जाती है.

६. गौ के सामने कभी पैर करके बैठना या सोना नहीं चाहिये, न ही उनके ऊपर कभी थूकना चाहिये, जो ऐसा करता है वो महान पाप का भागी बनता है .

७. गौ माता को घर पर रखकर कभी भूखी प्यासी नहीं रखना चाहिये न ही गर्मी में धूप में बाँधना चाहिये ठण्ड में सर्दी में नहीं बाँधना चाहिये जो गाय को भूखी प्यासी रखता है उसका कभी श्रेय नहीं होता .

८. नित्य प्रति भोजन बनाते समय सबसे पहले गाय के लिए रोटी बनानी चाहिये गौग्रास निकालना चाहिये.गौ ग्रास का बड़ा महत्व है .

९. गौओ के लिए चरणी बनानी चाहिये, और नित्य प्रति पवित्र ताजा ठंडा जल भरना चाहिये, ऐसा करने से मनुष्य की "२१ पीढियाँ" तर जाती है .

१०. गाय उसी ब्राह्मण को दान देना चाहिये, जो वास्तव में गाय को पाले, और गाय की रक्षा सेवा करे, यवनों को और कसाई को न बेचे. अनाधिकारी को गाय दान देने से घोर पाप लगता है .

११. गाय को कभी भी भूलकर अपनी जूठन नहीं खिलानी चाहिये, गाय साक्षात् जगदम्बा है. उन्हें जूठन खिलाकर कौन सुखी रह सकता है .

१२. नित्य प्रति गाय के परम पवित्र गोवर से रसोई लीपना और पूजा के स्थान को भी, गोमाता के गोबर से लीपकर शुद्ध करना चाहिये .

१३. गाय के दूध, घी, दही, गोवर, और गौमूत्र, इन पाँचो को 'पञ्चगव्य' के द्वारा मनुष्यों के पाप दूर होते है.

१४. गौ के "गोबर में लक्ष्मी जी" और "गौ मूत्र में गंगा जी" का वास होता है इसके अतिरिक्त दैनिक जीवन में उपयोग करने से पापों का नाश होता है, और गौमूत्र से रोगाणु नष्ट होते है.

१५. जिस देश में गौमाता के रक्त का एक भी बिंदु गिरता है, उस देश में किये गए योग, यज्ञ, जप, तप, भजन, पूजन , दान आदि सभी शुभ कर्म निष्फल हो जाते है .

१६ . नित्य प्रति गौ की पूजा आरती परिक्रमा करना चाहिये. यदि नित्य न हो सके तो "गोपाष्टमी" के दिन श्रद्धा से पूजा करनी चाहिये .

१७. गाय यदि किसी गड्डे में गिर गई है या दलदल में फस गई है, तो सब कुछ छोडकर सबसे पहले गौमाता को बचाना चाहिये गौ रक्षा में यदि प्राण भी देना पड़ जाये तो सहर्ष दे देने से गौलोक धाम की प्राप्ति होती है.

१८ . गाय के बछड़े को बैलो को हलो में जोतकर उन्हें बुरी तरह से मारते है, काँटी चुभाते है, गाड़ी में जोतकर बोझा लादते है, उन्हें घोर नर्क की प्राप्ति होती है .

१९. जो जल पीती और घास खाती, गाय को हटाता है वो पाप के भागी बनते है .

२०. यदि तीर्थ यात्रा की इच्छा हो, पर शरीर में बल या पास में पैसा न हो, तो गौ माता के दर्शन, गौ की पूजा, और परिक्रमा करने से, सारे तीर्थो का फल मिल जाता है, गाय सर्वतीर्थमयी है, गौ की सेवा से घर बैठे ही ३३ करोड़ देवी देवताओ की सेवा हो जाती है .

२१ . जो लोग गौ रक्षा के नाम पर या गौ शालाओ के नाम पर पैसा इकट्टा करते है, और उन पैसो से गौ रक्षा न करके स्वयं ही खा जाते है, उनसे बढकर पापी और दूसरा कौन होगा. गौमाता के निमित्त में आये हुए पैसो में से एक पाई भी कभी भूलकर अपने काम में नहीं लगानी चाहिये, जो ऐसा करता है उसे "नर्क का कीड़ा" बनना पडता है .

गौ माता की सेवा ही करने में ही सभी प्रकार के श्रेय और कल्याण है.

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बुधवार, 5 सितंबर 2012

गोवंशरक्षा - कल आज और कल

गोवंश का तिहास मनुष्य और सृष्टि के प्रारम्भ से शुरु होता है. पृथु मनु ने गोदोहन किया और पुथ्वी पर कृषि का प्रारंभ किया और यह धरा पृथ्वी कहलाई. मानव संरक्षण, कृषि और अन्न उत्पादन में गोवंश का अटूट सहयोग और साथ रहा है. इसही कारण ह्मर्रे शास्त्र वेद पुराण गोमहिमा से भरे है. रघुवंश के रजा दिलीप गोसेवा के पर्याय और राम जन्म सुरभि के दुग्ध द्वारा तैआर खीर से माना गया है


यहां तक ​​कि गाय (गोबर) का मलमूत्र एक पर्यावरण रक्षक के रूप में माना जाता था और फर्श और घरों की दीवारों रसोई में इस्तेमाल किया गया था. गोमूत्र शुद्ध करने के लिए हर घर,मानव शरीर में छिड़काव एक आम बात थी. गोधन धन के रूप में और धन के एक उपाय के रूप में माना जाता था. गाय का दान एक सबसे महान के रूप में कार्य के रूप में माना जाता था,


शिव का वाहन - धर्म का अवतार नंदी


वृषभ 'संस्कृत अंग्रेजी शब्द' बैल 'के बराबर है. नंदी बैल भगवान शिव का वाहन है. वैदिक साहित्य में शिव शब्द 'जनता के कल्याण' (लोक कल्याण) का पर्याय है. और बैल लोक कल्याण कर्ता का वाहक है.हमारी कृषि और ग्रामीण परिवहन की 90% अभी भी हमारे बैलों पर निर्भर हैं. बैल इस प्रकार हमारे धर्म के अवतार हैं. वस्तुतः बैल मानव जाति का एक भाई है, और जो आदमी के लिए काम करता है, वह भी कोई पारिश्रमिक बिना, 3 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद बछड़ा, बछिया, और एक बैल, जो अपने जीवन प्रर्यंत मानव जाति का कार्य करता है . यही कारण है कि प्रत्येक और हर दुनिया में शिव मंदिर में हमेशा एक नंदी की प्रतिमा (मूर्ति) भगवान शिव की प्रतिमा (मूर्ति) के साथ मिल जाएगी



हम गाय को देवी रूप माता इन संदर्भो में भी पाते है

वेदों और वैदिक काल में गाय को सर्वोच्च उत्पत्ति का पर्याय माना गया. गाय भूमि, गाय देवमाता. गाय मेघ, गाय प्राकृतिक जीवन जल, मानी गयी . गाय या गौवंश पुरातन काल मे विशेष सम्पति मानी गयी और युद्ध में बहुत बड़ी जीती हुई सम्पदा मानी गयी और इसके मुकाबले में और किसी प्राणी को स्थान नही दिया जाता था एक विशिष्ट अन्वेंष्ण में पाया गया की जैन संप्रदाय ने वृद्ध और असहाय गायों के लिए गृह " पिंजरापोल बनाये.


- रोगों से उपचार - गाय पंचगव्य, एक दिव्य पदार्थ.
हमारी समृद्धि, हमारी आजीविका, और जैविक, पर्यावरण के अनुकूल, टिकाऊ, कम लागत और गुणवत्ता के कृषि उपज स्थायी ऊर्जा के एक स्रोत के रूप में और प्रदूषण मुक्त वातावरण से हमारे रोगों से प्रतिरक्षा एक बहुत बड़ी हद तक हमारे पशुओं पर निर्भर करती है,
गोवंश हमें अपने दूध और दूध उत्पादों के माध्यम से.पंचगव्य-गाय के दूध, दही, घी, मूत्र और गोबर ताजा गाय के गोबर के रस के नुस्खे और प्रक्रियाओं से तैयार एक मिश्रण बीमारियों के खिलाफ प्रतिरोध की अद्भुत शक्ति रखता है एक दिव्य पदार्थ है,
'गाय' शब्द का अर्थ
वेदों और शब्द "गो ", जो अंग्रेजी शब्द स्मृती' में एक व्यापक अर्थ है. 'गाय' के लिए कहा गया है, इसमें केवल गाय, बैल और बछडे बल्कि दूध, गौमूत्र और गोबर भी शामिल है.हमारे लिए, 'गाय' मूल रूप से हमारे स्वदेशी नस्लों की गाय, जिसमे कुछ निहित दिव्य और प्रमाणित गुण है, 50 से अधिक स्वदेशी नस्लों, जिनमें से कुछ के नाम नीचे का उल्लेख कर रहे हैं
1.गीर , 2. काकरेज , 3. हरियाणा, 4. नागौरी , 5. अमृतमहल , 6. हल्लीकर , 7. मलावी , 8. निमरी , 9. दाज्जल , 10. अलाम्हादी , 11. बरगुर , 12. कृष्णवल्ली , 13. लाल सिन्धी, 14. थारपारकर , 15. गंगातीरी , 16. राठी, 17. ओंगोले, 18. धन्नी , 19. पंवार, 20. खेरिगढ़ , 21. मेवाती , 22. डांगी, 23. खिल्लारी , 24. बछौर , 25. गोलो , 26. सिरी कंगायम .

यह नसले अपने उत्तम दुग्ध, शक्ति और पर्यावरण रक्षक के रूप में पूर्ण विश्व में जानी जाती हैं. आज ब्राजील, आस्ट्रेलिया, इस्रायल और योरप के कितने ही देशों में इन को अर्थ व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है. विभिन्न विश्व स्तर की प्रतियोगिताओं में इन नस्लों को उच्चत्त्तम स्थान मिलता है

गाय का अर्थव्यवस्था के लिए योगदान

गाय के लिए इस देश के लोगों के मन में श्रद्धा किसी अंधविश्वास या धार्मिक अनुष्ठान के कारण नही वरण

गाय की उपयोगिता के कारण है. कृषि, ग्राम उद्द्योग, यातायात के अलावा दूध, दही और छाछ,गौमूत्र और गोबर विभिन्न प्रयोजनों के लिए उपयोगी होते हैं. यहां तक ​​कि उसकी मौत के बाद, चर्म विभिन्न वस्तुओं के निर्माण का साधन और गाय के सींग और शरीर के अन्य भाग का खाद बनाने में उपयोग किया जाता है, जो मिट्टी के लिए पोषक तत्वों में बहुत अमीर है और कृषि दृष्टि से बहुत कीमती है

हमारे देश में मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान देश है. कृषि की प्रणाली गोवंश के उपयोग पर आधारित थी. भारत के कृषि क्षेत्रों में मिट्टी, ज्यादातर बहुत नाजुक और पतली है,मिट्टी की इस स्थिति में बैलों का उपयोसबसे उपयुक्त था. यह बताया जाता है कि 200 साल के आसपासमालाबार, तमिलनाडु और इस देश के अन्य क्षेत्रों, रेलवे लाइनों की स्थापना, यहां तक ​​कि ब्रिटिश सेना परिवहन प्रयोजनों के लिए बैलों का उपयोग किया गया गोवंश टन प्रति वर्ष की से १२० करोड़ टन गोबर और ८० रोड़ किलो लीटर गोमूत्र प्रदान करता है. यहमात्रा लो की देश के विकास में सहायक होनी चाहिए आज पर्यावरण की समस्या बन गयी है ग्राम- शहर कीनालिओं से बह कर ्षेत्र के जलाशयों, और नदिओं के जल स्तर को ऊँचा करती जा रही . अगर इसगोवंशशक्ति को उपयोग में लाया जाये तो १२० करोड़ टन गोबर ५०,००० करोड़ का प्राकृतिक उर्वरक, ३५,०००करोड़ की १०,००० करोड़ यूनिट बिजली और एक बैल अश्वशक्ति ८० करोड़ अश्व शक्ति के सामान बैलशक्ति देशकी ग्रामीण विद्युत्, इंधन और पेय जल माश्या का निदान है.
भारत में गो हत्या का प्रारम्भ
भारत में पहली बार 1000 ई. के आसपास जब विभिन्न इस्लामी आक्रमणकारियों तुर्की, ईरान (फारस), अरब और अफगानिस्तान से आये और वे इस्लामी परंपराओं के अनुसार. विशेष अवसरों पर वे ऊंट और बकरी और भेड़ बलिदान करते थे.हालांकि, मध्य और पश्चिम एशिया के इस्लामी शासक, गोमांस खाने के आदी नही थे, उन्होंने भारत में आने के पश्चात् गाय के वध को और गायों की क़ुरबानी, विशेष रूप से बकरी - ईद के अवसर पर शुरू कर दिया. यह ज्यादा करके इस देश के मूल निवासी को अपमानित करने और उनके भोजन प्रयोजनों में संप्रभुता और श्रेष्ठता करने को किया गया था.
इस के कारण इस देश के मूल हिंदू आबादी में असंतोष पनपने लगा.कहा जाता है. हिंदुओं के विरोध को संज्ञान देते हुए अकबर और औरंगजेब जैसे मुगल शासकों के विभिन्न स्थानों पर मुस्लिम त्योहारों के दौरान गाय की हत्या और गायों के बलिदान निषिद्ध घोषित किया.वास्तव में 1800 ई. की अवधि 1700 के दौरान बहुत कगाय की हत्या हुई थी
ब्रिटिश भारत में गो हत्या

2000 से अधिक वर्षों से , यूरोप गाय का मांस का एक प्रमुख उपभोक्ता है 19 वीं सदी के प्रारंभिक भाग में, भारत में ब्रिटिश शासन के आगमन के साथ, एक नई स्थिति गोरों के आने से, जो गोमांस खाने के अभ्यस्त थे उत्त्पन्न हुयी. लेखक"N.G. चेरन्यस्विसकी ने उपन्यास (अंग्रेजी संस्करण विंटेज 1961)में लिखा रूसी लोगों को विश्वास है कि गोमांस मनुष्य को महान शक्ति और सहनशक्ति देता है . स्वाभाविक रूप से, इसलिए गोरों ने भारत में 19 वीं सदी में भारत के विभिन्न भागों में गौहत्या को शुरू किया. और पश्चिमी तर्ज पर भारत के विभिन्न भागों में वध घरों की एक बड़ी संख्या विशेषत: ब्रिटिश सेनाओं की तीन कमान (बंगाल, मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी में) बनाये गये . ऐसे हत्या करने के लिए, कसायिओं की एक बड़ी संख्या में रखा जाना था. हिंदुओं ने इस काम को मना कर दिया इस लिए परिवर्तित भारतीय ईसाइयों और मुसलमानों कसाई को गायों के वध के लिए उपयोग किया गया.

हरियाणा के लाला हरदेव सहाय ने अपनी जीवनी - 1995 105 पीपीमें एक अनुमान दिया कि किसी एक वर्ष में इस्लामी शासन के दौरान मारे गए गायों की अधिकतम संख्या 20,000 गायों से ज्यादा नही थी . जबकि राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी के 1917 में मुजफ्फरपुर में दिए गए भाषण में 30,000 प्रति दिन गौबध कहा ब्रिटिश (CMMG 14, पृष्ठ 80) (1 10 लाख सालाना करोड़)

यह समय था जब ब्रिटिश ने भारतीय गायों की निंदा शुरू कर दिया. व प्रचार किया की भारत में अंधविश्वासी लोग जिनका जानवर, नदियों, पेड़ों और पौधों भूमि में एक अंधविश्वास था, और भारतीय कमजोर और गंदे मैले थे, और यहां तक ​​कि उनके पशु कमजोर नस्लों के और अर्थ व्यवस्था पर भार थे. महान लेखक मुंशी प्रेमचंद ने , अपने उपन्यास गोदान " में इस भावना को प्रगट किया , जब उन्होंने अपने पात्रों में से एक किसान द्वारा एक पश्चिमी नस्ल की गाय की खरीद की वकालत की . कृषि पर रॉयल

आयोग की 1928 की रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय भारतीय गाय नस्लों को कमजोर और बेकार बताया और इस प्रकार इस देश में उन्होंने विदेशी नस्लों की आमद को शुरू कर दिया.

१८०० इ में देश में ब्रिटिश अधिकारियों और सैनिकों की संख्या 20,000 के आसपास थी 1856 ई में यह संख्या 45,000 के आसपास ho गयी थीऔर1858 के अंत तक (विद्रोह) स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के बादयह संख्या एक लाख से अधिक हुई,. ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय नागरिकों और सेना कर्मियों सहित लोगों को, की कुल संख्या 1800-1900 के बीच करीब 3 से 5 लाख थी. इस का प्रमुख भाग के रूप में उत्तरी भारत और उनके परिवारों में तैनात था.सेना कर्मियों,में वृद्धि से गाय की हत्या और मांस की खपत बढ़ गयी उत्तरी भारत के कई हिस्सों में यह चार गुना हो गयी थी

दशमेश गुरु गोविंद सिंहजी ने घोषणा की थी कि उसके खालसा पंथ की स्थापना आर्य धर्म, गाय और ब्राह्मण की रक्षा और संतों और गरीबों की सेवा के लिए है उन्होंने"1812 में 'चंद दी वार' कविता में माता दुर्गा भवानी से इस प्रकार प्रार्थना की:

'मुझे दुनिया से तुर्क और गाय की हत्या की बुराई को खत्म करने,गाय - हत्यारो के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध की शुरुआत की शक्ति दे;

सिपाही मंगल पांडे, ने , मुंह से गोमांस लेपित कारतूस खोलने के लिए मजबूर .करने वाले एक संकेत के बाद अपने ब्रिटिश कमांडर को गोली मार दी जिसे बाद में आजादी के पहले युद्ध का नाम दिया गया था.
1870 में नामधारी सिखों ने एक गाय संरक्षण क्रांति, जिसमें वे अपने जीवन को, गाय की सुरक्षा के लिए त्याग करना, अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया.इसे कूका क्रांति के रूप में जाना जाता है,
कुछ साल बाद में, स्वामी दयानंद सरस्वती ने अंग्रेजों के गोहत्या प्रोत्साहन के विरोध में आह्वान किया और गोसंवर्धन सभा जो गाय की हत्या के मुद्दे पर देश,के जन संगठन का सुझाव दिया. 1880-1894 वर्षों के दौरान उत्तर भारत भर में एक बहुत ही गहन और व्यापक गौरक्षण आंदोलन प्रारंभ किया जिसमे सब पंजाब राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक उत्तरी और मध्य भारत के गैर हिंदुओं सहित करोड़ो ने इस आंदोलन में सहभाग किया. इस से साधू संन्यासी जुड़े और 1893-1880 अवधि में गाय कसाई के चंगुल से बचाया रखने के लिए सैकड़ों गौशाला खोली गयी थी
1891 में, महात्मा गांधी ने इस गौरक्षा आंदोलन की सराहना की और लिखा कीविरोधी अंग्रेजों द्वारा भारत में महानगौहत्या विरोधी आंदोलन की हत्या की. प्रस्तुत है;- The Great Anti kine-killing Movement against the killing of the cow by the British in India (1880 – 1894)
And certainly the milking of the cow, which, by the way, has been the subject of painting and poetry, cannot shock the most delicate feeling as would the slaughtering of her. It may be worth mentioning en passant that the cow is an object of worship among the Hindus, and a movement set on foot to prevent the cow from being shipped off for the purpose of slaughter is progressing rapidly.
M.K. GANDHI ON THE COW: 189(also in Collected Works of MahatmaGandhi (CWMG) Vol. 1, p.19 fromTHE VEGETARIAN, LONDON, 7.2.1891


बिर्टेन का इस आन्दोलन के प्रति विरोध जग जाहिर हुआ जब महारानी विक्टोरिया ने व्यासराय लेंसडाउन को. इस आन्दोलन की चरम सीमा पर ८.१२.१८९३ के पत्र द्वारा कहा की

" The Queen greatly admired the Viceroy's speech on the Cow-killing agitation. While she quite agrees in the necessity of perfect fairness, she thinks the Muhammadans do require more protection than Hindus, and they are decidedly by far the more loyal. Though the Muhammadan's cow-killing is made the pretext for the agitation, it is, in fact, directed against us, who kill far more cows for our army, &c., than the Muhammadans.”

यह तथ्य था की उपरोक्त आन्दोलन १,००,००० से अधिक अंगरेज सेनिको और अन्य गौरों की आबादी को दैनिक गौमांस की आपूर्त्ति के लिए कत्ल किये जाने वाले गोवंश की रक्षा के लिए था लेकिन मुस्लिमो को लाड प्यार और हिन्दुओं को सबक सिखाने की निति का निर्देश का पालन किया गया और हिन्दू-मुस्लिम दंगों की आड़ में इसे कुचल दिया गया.

. इसका उल्लेख देश के महत्वपूर्ण समाचारपत्रों में प्रमुखता से हुआ. सर्वोदय नेता माननीय धर्मपाल जी ने इसका लेखाजोखा कई बार दिया विभिन्न पत्रों की सुर्खिया जैसे
1. 11 जुलाई सुलभ दैनिक2. सुलभ दैनिक - जुलाई 263. 5 अगस्त के Sullabh दैनिक
4. 7 सितम्बर सुलभ दैनिक.5. 12 सितम्बर के सुलभ दैनिक6. 17 अगस्त के चंद्रिका दैनिक - ओ - समाचार7. Dalinik - ओ - समाचार चंद्रिका अगस्त 218. दैनिक - ओ - समाचार चंद्रिका अगस्त 229. दैनिक - ओ - समाचार चंद्रिका 7 सितंबर10. दैनिक - ओ - समाचार चंद्रिका 13 सितंबर11. Sahachar 9thAug.12. Sahachar अगस्त 3013. ढाका गजट जुलाई १७
14. Banga nivasi अगस्त 1115. Shulb सूचक जुलाई 2116. 31 जुलाई कर्णाटक पत्र
17. राज्य, 8 अगस्त के भक्त18. 20 अगस्त की कल्पतरु19. Maharatta अगस्त 27
20. हिन्दुस्तानी (लखनऊ) 12 जुलाई21. सितारा - मैं - हिंद (मुरादाबाद) जुलाई 20
22. 12 अगस्त के शुभ Chintok (Jubhulpore)23. शुभ (Jubhulpore) Chintak का 19 अगस्त24. 26 अगस्त के शुभ चिन्तक (bbulpore जू)25. 30 अगस्त के सुबोध सिंघु (खंडवा)26. 1 सितंबर के मौजी नेर्बुद्दा (होशंगाबाद)

1944 में, जबकि ब्रिटिश अभी भी भारत में सत्ता में थे, सरकार द्वारा 3 वर्ष से कम आयु के सभी पशुओं के वध, पुरुष पशु के बीच 3 और 10 साल, मादा पशु उम्र के 3 और 10 साल के बीच जो दूध का उत्पादन करने में सक्षम हैं सभी गायों जो गर्भवती या दूध में हैं,पशुओं के वध पर प्रतिबंध किया गया था

जबकि कांग्रेस की एक समिति ने कहा कि मरे हुए के मुकाबले में कत्ल किये गये गोवंश से ज्यादा विदेशी मुद्रा की प्रप्ति होती है जो कि गौरक्षा के विपरीत मत था. ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण सिफारिशों के अनुसरण के रूप में के रूप में 1950 में भारत सरकार द्वारा एक आदेश जारी किया गया था कि मृत गाय की त्वचा बलि गायों की त्वचा की तुलना में कम मूल्य देती है और राज्य सरकारों, को गाय के वध पर पूर्ण रोक नहीं शुरू करने की सलाह दी.

स्वराज आन्दोलन के नेताओं का देश को आश्वासन

महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, पंडित मदन मोहन मालवीय, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पुरुषोत्तम दास टंडन आदि स्वराज आंदोलन के सभी प्रमुख नेताओं ने देश की जनता को बारम्बार आश्वस्त किया की देश को स्वतंत्रता का लक्ष्य प्राप्त होने पर स्वदेशी सरकार के क्रम में स्वराज आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए सार्वजनिक जुटाने के लिए, सार्वजनिक समय का आश्वासन दिया और फिर से कि, स्वराज के लक्ष्य को प्राप्त करने पर गोहत्या पर प्रतिबंध लगा दिया जायेगा और स्वदेशी सरकार की पहली कार्रवाई होगा महात्मा गाँधी ने १९२७ में स्वराज से बड़ा प्रश्न गोरक्षा कहा , “As for me, not even to win Swaraj, will I renounce my principle of cow protection.”

1940 में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष समिति ने कहा कि गोवंश हत्या पूरी तरह से वर्जित किया जाना चाहिए.
गायों की आजादी के पिछले वर्षों में बलि की संख्या में एक असामान्य वृद्धि हुई थी. पंडित ठाकुर दास द्वारा संविधान सभा में बहस के दौरान , 1948/11/24 1944 में, (बैलों) 60,91,828 बैल मार डाला और 1945 में, पैंसठ लाख कत्ल किया गये यानी 4 लाख से अधिक की वृद्धि से हुई है. उन्होंने आगे कहा कि देश में 5 साल में (1940 से १९४५) बैलों की आबादी में 37 लाख से की कमी हुई.
गाय संरक्षण पर संविधान सभा के वाद - विवाद


'48-A. राज्य कृषि और पशु पालन को आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों अपनाएगा और विशेषत: पशु संवर्धन और नस्ल सुधार के सभी जरुरी कदम तथा गाय और विभिन्न काम में आने वाले पशु विशेषत: दुधारू और कृषि उपयोगी पशु और उनके वंश को हत्या से बचाएगा

24 नवम्बर १९४८को संविधान सभा में प्रस्ताव पर बहस के दौरान, पंडित ठाकुर दास भार्गव (पूर्वी पंजाब), सेठ गोविंद दास (सीपी और बरार) श्री आर.वी. धुलेकर (संयुक्त प्रांत), प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना (संयुक्त प्रांत), श्री राम सहाय (संयुक्त राज्य ग्वालियर - इंदौर - मालवा - मध्य भारत) और डॉ. रघुवीरा (सीपी और बरार).आदि ने स्वीकृत करने के लिए पक्ष में महत्वपूर्ण और पुरजोर आवाज में विषय रखा

यह दिलचस्प है कि संयुक्त प्रांत के एक मुस्लिम सदस्यश्री JH लारी ने , सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के हित में कहा कि "इसलिए, अगर सदन की राय है कि गायों की हत्या प्रतिबंधित किया जाना चाहिए तो स्पष्ट, निश्चित और गैर दुआर्थी शब्दों में निषिद्ध किया जाना चाहिए. मैं नहीं चाहता की हम कुछ लिखे और हमारी मंशा कुछ और हो. मेरी प्रार्थना है की अच्छा हो अगर पूरा गृह आगे आये और बुनियादी अधिकारों धरा जोड़े की अबसे गोवंश हत्या पर पूर्र्ण प्रतिबंध होगा ना की निर्देशक सिधान्तो मे विभिन्न राज्य सरकारों को यह या वोह नियम बनाने को या मनाने को छोड़े. देश में सद्भाव और विभिन सम्प्रदायों में सदभावना के नाम में मैं अनुरोध करता हूँ की यह बहुसंख्यकों के लिए अपने को स्पष्ट और ठोस शब्दों में रखने का सही अवसर है. अगर वे खुले में बाहर आते हैं और सीधे कहते हैं: यह हमारे धर्म का हिस्सा है. गोहत्या से संरक्षित किया जाना चाहिए और इसलिए हम या तो मौलिक अधिकारों में या निर्देशक सिद्धांतों में प्रावधान करना चाहते हैं. '
इसी तरह, संविधान सभा के एक औरअसम से मुस्लिम सदस्य, श्री सैयद मुहम्मद सैअदुल्ला ने कहा, "महोदय, सदन के समक्ष बहस का विषय अब धार्मिक और आर्थिक दो विषयों पर है. मैं तुलनात्मक धर्मों के छात्र हूँ. हमारे संविधान में एक खंड है कि गौवंशवध हमेशा के लिए बंद कर दिया जाना चाहिए शायद यह धार्मिक आधार पर है . मैंने उनकी भावनाओं के लिए सहानुभूति और सराहना की है, मुझे पता है कि गाय हिंदू सम्प्रदाय की देवी के रूप में है और इसलिए वे यह बलि का विचार नहीं कर सकते.. धार्मिक पुस्तक, पवित्र कुरान मुसलमानों को एक आदेश कह रही है 'ला इकरा बा खूंदी दीन', यानि धर्म के नाम में कोई बाध्यता नहीं होना चाहिए - इसलिए मैं अपने वीटो का प्रयोग मैं एक मुसलमान के रूप में नही करना चाहता. जब मेरे हिंदू भाइ धार्मिक दृष्टि से इस बात को रखना चाहते हैं .मैं नहीं चाहता कि, मौलिक अधिकारों में शामिल किए जाने के कारण, गैर - हिंदुओं के बारे में शिकायत हो कि वे उनकी मर्जी के खिलाफ एक निश्चित बात को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया है.
सारांश में संविधान सभा की पूर्ण बहस से नतीजा निकलता है की एक प्रारम्भिक प्रयास मौलिक अधिकारों में गोवंस हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध शामिल किए जाने के लिए किया गया था. यह पंडित ठाकुर दास भार्गव, सेठ गोविंद दास और प्रो शिब्बनलाल सक्सेना द्वारा दिए गए भाषणों से स्पष्ट है.
विभाजन और दो - राष्ट्र सिद्धांत की स्वीकृति के इतिहास के बावजूद, सत्तारूढ़ पार्टी ने अविवादित गोवंश हत्या निषेध स्वीकार नहीं किया यद्यपि प्राचीन काल से पूरे देश के लोगों द्वारा"गोमाता " के रूप में. पूजा गया है संविधान सभा की ओर से उपर्युक्त चूक का अब भी सुधार किया जा सकता है

गोहत्या पर विभिन्न समितियों / आयोगों के अनुशंसाएँ

आजादी के बाद, नवंबर 1947 में,भारत सरकार द्वारा कृषि मंत्रालय के लिए अपने सभी पहलुओं में पशुओं के वध पर प्रतिबंध लगाने के सवाल पर विचार करने के लिए और देश के पशु धन के संरक्षण के लिए कार्रवाई की एक व्यापक योजना की सिफारिश और इसके विकास को बढ़ावा देने के लिए. सरदार दातार सिंह की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की गयी थी , जिसे मवेशी संरक्षण और विकास समिति के रूप में जाना गया अपनी नवंबर 1947 में प्रस्तुत रिपोर्ट में, दो चरणों में दो वर्षों के अंदर गो हत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने की सिफारिश की

(a) Animals over 14 years of age and unfit for work and breeding.

(b) Animals of any age permanently unable to work or breed owing to age, injury or deformity.

(ii) Unlicensed and unauthorised slaughter of cattle should be prohibited immediately and it should be made a cognizable offence under law.

(iii) The law for prohibiting slaughter of cattle totally should be enforced as early as possible but in any case within two years of enactment of the Act, (emphasis provided) during which period following necessary arrangements should be made for the maintenance and care of unserviceable and unproductive animals.
(a) A survery of the country should be conducted to find out the areas where Go-sadans may be established and all details with regard to expenditure, etc, should be worked out and arrangements therewith made.
(b) Necessary legislation for the raising of funds required should be enacted as follows:
(i) Gaushala cess, such as laga, Bitti, Katauti, Dharmada should be legalised and their collection regulated for the utilisation in the improvement of Gaushalas and Go-sadans.
(ii) ...........
(iii) ........... “

पशुओं के वध पर पूर्ण प्रतिबंध की दिशा में पहले चरण के बारे में सिफारिश भारत के लगभग सभी राज्य सरकारों द्वारा लिया गया था और कुछ वर्षों के भीतर, सभी राज्यों में 14 वर्ष की आयु से नीचे के सभी गोवंश के वध पर प्रतिबंध लगाने कानून बनाया गया.
उत्तर प्रदेश में 1948 मेंएक विशेषग्य समिति का गठन किया गया था जिसमे सभी समुदायों के गणमान्य प्रतिनिधिओं जिसमेछत्तारी के नवाब न्यायमूर्ति महाराज सिंह (उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश और भी ईसाई )आदि , जो सहित सभी समुदायों, और से प्रमुख व्यक्ति शामिल है. इस समिति ने सरदार दातार सिंह समिति की सिफारिशों का समर्थन किया. इस के अनुसार 1955 में, उत्तर प्रदेश गाय वध निषेध अधिनियम अधिनियमित किया गया था, लेकिन एक अपवाद के लिए हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर बंद कंटेनर में मांस, आदि की बिक्री की अनुमति दी गयी
1954 में दुधारू प्राणी स्थायी रूप से शुष्क होने पर रक्षा के उपाय सुझाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति तत्कालीन पशुपालन आयुक्त श्री पी.एन. नंदा की अध्यक्षता में स्थापित की गयी. जनवरी 1955 में अपनी रिपोर्ट में, समिति ने कहा क्योंकि भारत में थोड़ा पशु चारा था,सूखे और हरे चारे की कमी को ध्यान में रख पशुओं के वध पर पूर्ण प्रतिबंध अवांछनीय होगा, समिति का तर्क था कि, देश अपने पशुओं के 40% को पालन कर सकता है और, इसलिए, शेष 60% पशु धन को समाप्त करना चाहिए
माउन्ट आबू में केन्द्रीय गोसवर्धन परिसद ने गोसवर्धन गोष्टी का आयोजन किया जिसमे शुष्क होने वाले दुधारू प्राणी और उनके प्रजनन, सवर्धन के तरीके आदि पर विचार किया गया और क्रूरता निवारण अधिनियम की धाराओं का पूर्ण पालन, सूखे प्रानिओं के यातायात भाड़े में छुट और सरकार द्वारा पशु आश्रयगृह निर्माण आदि की अनुशंषा की गयी.
  1. इस संगोष्टी में योजना आयोग सदस्य (कृषि) श्री श्रीमन नारायण की अध्यक्षता में गहराई से परिक्षण कर उच्च नस्लों
    के संरक्षण, शहरों में दुधारू पशु आयात रोक और संगोष्टी द्वारा अनुशंषा की गयी सिफारिशों पर अमल आदि के विषय में सुझाने के लिए समिति का गठन किया. इस समिति ने १९६२ में सुझाव दिए की राज्य सरकारे दुधारू प्रानिओं के पंजीकरण और अन्य राज्यों में इनके विस्थापन को रोकने के लिए अधिनियाँ बनाएँ. केन्द्रीय खाद्य और कृषिमंत्रालय पशु संवर्धन और डेरी योजनाओं के लिए उच्च प्राथमिकता के साथ योजना, धन आवंटन और अधिनियम बनाए. पश्चिम बंगाल पशु हत्या निरोध अधिनियम का बल पूर्वक पालन और और नगरों में प्रतिबाधित मॉस की आपूर्ती और बिक्री रोकने को जरुरी परिवर्तन किये जाएँ तथा यह अधिनियम सभी नगरपालिकाओं में जहा भी सम्भव हो, लागु करे जाएँ और गैर सरकारी संस्थाओं को भी इस के विभिन्न प्रावधानों के अनुपालन में साथ लिया जाए
  1. 1976 में प्रस्तुत
    अपनी रिपोर्ट में कृषि पर राष्ट्रीय कृषि आयोग ने पशुपालन पर कई सिफारिशों को अपने भाग VII का हीस्सा बनाया. भाग VI (मवेशी और भैंस पर) में सिफारिशों के कुछ अध्याय 28इस प्रकार हैं:


• पशु और भैंसों के प्रजनन और उत्पादक क्षमता में सुधार करने के लिए बड़े पैमाने पर कार्यक्रम किया जाना चाहिए. नीची उत्पादन स्टॉक (पशुधन) को उत्तरोत्तर समाप्त किया जाना चाहिए ताकि सीमित फ़ीड और चारा संसाधनों उच्च उत्पादन जानवरों के उचित खिलाने के लिए उपलब्ध रहे (अध्याय 28, भाग VII - सिफारिश नंबर 1)

भविष्य में दूध उत्पादन में वृद्धि और बैलों की कार्य कुशलता अनुसार पशु और भैंस के विकास पर सुधार लाने पर योजना बनाई जानी चाहिए (अध्याय 28, भाग VII - सिफारिश नहीं 5)

डेयरी पशुओं के आयात के लिए अप्रवासी भारतीय को प्रोत्साहित कर आयात के व्यय के लिए विदेशी मुद्रा प्रदान करे जो उनसे रूपये की मुद्रा में लिया ज सकता है (अध्याय 28, भाग VII - सिफारिश नहीं 5)

• भैंस केवल दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए ही नही लेकिन मांस का उत्पादन का एक स्रोत बनाने के लिए विकसित किया जाना चाहिए. (अध्याय 28, भाग VII - सिफारिश नहीं 56)
• भैंस के मांस में निर्यात व्यापार का विकास किया जाना चाहिए. (अध्याय 28, भाग VII - सिफारिश सं. 68)
• निर्यात व्यापार भैंस के मांस के लिए भैंस के मांस और अवांछित पुरुष भैंस के बछड़े मेद विशेषताओं में सुधार के द्वारा विकसित किया जाना चाहिए. (अध्याय 36, भाग VII - सिफारिश नंबर 2)
यांत्रिक बूचड़खानों का आधुनिकीकरण तुरंत किया जाना चाहिए. (अध्याय 36, भाग VII - सिफारिश नंबर 3)


आधुनिक भारत में गाय की दुर्दशा

.कांग्रेस सत्तारूढ़ पार्टी के एक प्रतीक के रूप में, बैल की जोड़ी को सामान्य स्वीकृति मिली थी क्योंकी भारतीय जनसंख्या का 85% कृषि क्षेत्र में कार्यरत था आज उसी गोवंश को छद्म धर्म निरपेक्षिता और हरित कान्ति के नाम में ट्रेक्टर और रासायनिक उर्वरक के आक्रमण ने गोवंस को आत्मसमर्पण कर दिया, मिटा दिया और गोवंश को लाभकर से अलाभ्कर और उपयोगी से अनुपयोगी बना दिया है


स्वतंत्रता के ६५ वर्षों के पश्चात ४००० वैधानिक और ५०,००० ऐवैधानिक कत्लखानों में कटता हुआ प्रिय गोवंश लालची कसाई और चमडा माफिया से नहीं बचाया ज सक रहा है. इस दुःख भरी गौ खून की बहती गंगा की कहानी बड़ी दर्दनाक, समाज के लिए शर्म, देश को झटका, विधि विधानों की दुर्दशा बयां करती है . इस पवित्र धरा पर जो गोमाता माँ के रूप में पूजी जाती, साधू संतों, देवी देवताओं, राम, कृष्ण, शिव, महावीर, गुरु नानक, तेगबहादुर, गोविन्दसिंह, बुद्ध. अशोक, विनोबा भावे, संकराचार्य, हरदेव सहाय, अटल बिहारी वाजपयी और अनेक महापुरुषों द्वारा पूजित गोवंश आज अनुपयोगी, असहनीय और पाप बना दिया गया है

१९६६ के गौरक्षा आन्दोलन के दौरान ७ नवम्बर को गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग को लेकर संसद मार्ग,दिल्ली पर १०० से ज्यादा गौभ्क्तो. साधू संयासिओं, गौमाता की जय कहने वालो को गोली मार दी गयी. लेकिन आश्वासनों के पश्चात भी ना तो गौहत्या पर प्रतिबन्ध लगा ना ही करोड़ो गोवंश की रक्षा की ज सक रही है




भा. ज पा द्वारा समय समय पर गोरक्षा संकल्प, सहयोग और इच्छा प्रदर्शन
अंग्रेजो से स्वतंत्रता संग्राम में गोरक्षा को एक बड़ा मुददा माना गया था. दो बैलों की जोड़ी स्वतन्त्रता संग्राम में जन भावना का मान और प्रदर्शन था. देश का हर नेता देश की जनता को विश्वास दिलाता था की आजादी से बड़ा प्रश्न गोरक्षा का है और स्वतंत्र भारत में पुथम कार्य कलाम की नोक से गोहत्या को रोकने का होगा. लेकिन सम्विधान सभा में अथक प्रयास के बाद भी, मुस्लिम सदस्यों के सहकार के बाद भी. पूर्ण गोहत्या निषेध मुलभुत सिधान्तो में स्थान नही पा सका.
देश का गोभक्त समाज गत ६० वर्षों में चुप नही बैठा. इस प्रयास में संघ परिवार हर कार्यवाही और हर मंच में शामिल रहा.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के युग में गोवंश संरक्षण
स्वतंत्र भारत में समय - समय पर देश के कई भागों में गोहत्या के खिलाफ आंदोलन मुख्य रूप से उत्तर भारतीय शहरों जैसे मुंबई, इलाहाबाद, अहमदाबाद, दिल्ली में अदि में होता रहा 1966 में, एक बड़े पैमाने पर विरोध मार्च आयोजित किया गया, जिसमें सभी धर्मों, जातियों और आयु समूहों के लोगों ने भाग लिया. शांतिपूर्ण प्रदर्शन में संसद मार्ग, दिल्ली में जो एक सौ के आसपास लोगों की जान चली गयी थी .
वर्ष 1979 में आचार्य विनोबा भावे ने गोहत्या की रोकथाम के प्रश्न पर एक 1979/04/22 से अनिश्चितकालीन उपवास पर जाने का फैसला किया. उनकी मांग थी कि पश्चिम बंगाल और केरल की सरकारों को गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने कानून अधिनियमित करने के लिए सहमत होना चाहिए.
१२ /४/१९७९ को लोक सभा में एक निजी सदस्यों के संकल्प पारित किया गया था. संकल्प 42 मतों से ८ मत विरोध में और १२ अनुपस्तिथ से अनुमोदित किया गया था. संकल्प " यह संसद सरकार को संत विनोबा भावे के २१ अप्रैल से अनशन और पशु संवर्धन और विकास समित्ति की राय , सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशक सिधांत ४८की व्याख्या अनुसार गोवंश हत्या पर पुर्ण प्रतिबंध लगाया जाए इसके पश्चात उस समय के प्रधानमंत्री द्वारा संसद में घोषणा की गयी की सरकार गो सुरक्षा के विषय पर संविधानिक क्षमता के लिए संविधान परिवर्तन करेगी और संविधान संशोधन विधेयक १८.५.१९७९ को संसद में रखा गया था जो छाती लोकसभा भंग होने के कारण निरस्त हो गया
जुलाई 1980 में आचार्य विनोबा भावे ने अखिल भारतीय गोसेवा सम्मेलन को संबोधित. करते हुए गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग को दोहराया और उन्होंने अनुरोध किया कि गायों को एक राज्य से दूसरे राज्य में नहीं जाना चाहिए.
१९८१ में सरकार ने पुनह: विधेयक लाने का विचार किया लेकिन विषय के गंभीर परिणाम और राजनितिक मजबूरिओं को सोचते हुए उको और देखो निति अपनाई गयी हालाँकि विभिन्न शिकयातोंका संज्ञान लेते हुए प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने २४.२.१९८१ को आंध्रप्रदेश , असम , बिहार , गुजरात , हरयाणा , हिमाचलप्रदेश , कर्नाटक , मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र , उड़ीसा , पुंजाब, राजस्थान , उत्तरप्रदेश और जम्मूकश्मीर ,सभी १४ राज्यों को पत्र भेजा और कहा १. गोहत्या पर प्रतिबंध का पालन करें. २. कत्लखानो को जाने वाले पाशों के समिति जाँच करे कुछ सरकारों की गोरक्षा अधिनियमों की अवहेलना और संज्ञान ना लेने के कारण सलाह डी गयी की यह सरकारिया आयोग के संज्ञान में लाया जाये

भारत की विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में गोसंवर्धन और रक्षण

प्रथम पंचवर्षीय योजना में, (गौपालन पर अध्याय 19 में), योजना आयोग ने कहा कि 1951 पशुओं की जनगणना के अनुसार देश में पन्द्रह करोड़ मवेशी और ४ करोड़३० लाख भैंस थे और कि कृषि कार्यो में बैल मुख्य साधन के रूप में कार्य रत्त थे.आयोग ने स्वीकार किया कि पशुधन का वार्षिक सकल राष्ट्रीय आय में १००० करोड़ रुपये था जो कृषि परिवहन और अन्य कार्यों के अलावा था . और लगभग १०% पशुधन अनुपयोगी था जिन्हें गो सदनों में बेजा जाना चाहिए क्योंकी यह चारे और भूमि पर भार बन गये थे योजना आयोग ने पशुधन की सुधार और अनुप्योगिओं को हटाने की अनुशंषा की .
दूसरी पंचवर्षीय योजना में फिर से यह घिसा - पिटा तर्क अध्याय 14 में दोहराया गया था और यह देखा गया है कि 1/3 पशुसंख्या अनुपयोगी और चारा उपलब्धता पर भार है था और इसलिए पैरा 4 और 5 में संविधान के निर्र्देशक सिधांत ४८-अको मान्यता देते हुए पुनह: अनुपयोगी पशुओ को हटाने की अनुशंषा की


तीसरी पंचवर्षीय योजना में अभी तक फिर से योजना आयोग, अध्याय 21 में, पैरा 12 के में अनुपयोगी पशु की समस्या पर चर्चा की और कहा कि "इस संख्या की निराई पशु सुधार और व्यवस्थित प्रजनन कार्यक्रम के लिए एक आवश्यकता है". गोसदनो की स्थापना कार्यक्रम को विफलता माना गया ,

चौथी पंचवर्षीय योजना में पशुपालन की स्थिति पर चर्चा करते हुए योजना आयोग के ने पशु प्रजनन नीति और विकास कार्यक्रम योजना बनायीं (8.17 पैरा). चारा और खाद्दय की कमी पशुओं की उत्पादकता वृद्धि में बाधा बताया गया

इस ही प्रकार बाद की योजनाओं में, अनुपयोगी या तथाकथित अलाभकर पशु की समस्या और फलस्वरूप उन्हें वध करने के लिए अनुमति की अनुशंषा की गयी निर्देशक तत्व है, जो पहले किया गया था की व्याख्या के द्वारा नजरअंदाज कर दिया, और वध निषेध करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए .
सातवीं पंचवर्षीय योजना में, मवेशी विकास कार्यक्रम और नस्ल प्रजनन मुख्य विषयों के रूप में ले जाया गया. भ्रूण स्थानांतरण तकनीक और प्रजनन के लक्ष्य रखे गये थे .और आज भी इस विशाल रास्ट्रीय सम्पति के प्रति येही रूख देखा जाता है.
जबकि
  • उप - समूह सं. मांस और मांस उत्पादों पर इलेवन, कार्य योजना आयोग द्वारा गठित समूह मांस उप - समूह,की दसवीं पंचवर्षीय योजना के लिए प्रस्ताव और कुछ सिफारिशें:
    • मांस उत्पादन और निर्यात में वृद्धि के लिए खर्च Rs.1384 करोड़ से Rs.1804 करोड़ की वृद्धि की जानी चाहिए.
    • प्रति वर्ष 2 करोड़ रुपए की एक बजट के साथ राष्ट्रीय मांस बोर्ड गठित किया जाना चाहिए.
    • बैल और बैल की हत्या के लिए आयु सीमा 15 से 16 साल के लिए कम किया जाना चाहिए.
    • मांस के निर्यात पर प्रतिबंध हटा दिया जाना चाहिए.
    • दस महानगरों में 20 करोड़ रुपए की एक बड़ी क्षमता के बूचड़खानों स्थापित किया जाना चाहिए.
    • 50 महत्वपूर्ण शहरों में, आधुनिक बूचड़खानों 5 रुपये प्रत्येक करोड़ रुपए की लागत पर खोला जाना चाहिए.
    • एक हज़ार गांवों में 5 लाख रुपए लागत के वध घरों प्रत्येक गाँव में खोला जाना चाहिए.
    • पाँच सौ गांवों और १० शहरों में 2 करोड़ और 20 लाख रुपये, क्रमशः से माँस गौदाम और कत्लघर खोला जाने चाहिए.
    • 50 स्थानों में 20 लाख की लागत की अस्थि मिल्स की विशेष यांत्रिक परियोजनाओं को खोला जाना चाहिए.
    • प्रत्येक विश्वविद्यालय में एक प्रशिक्षण केंद्र और५० लाख रुपए की लागत से खोले जाये जो माँस निर्यात और पशु हत्या पर शिक्षा दें




कृषि और पशुपालन में पश्चिमी देशो का अंधा अनुकरण
पशु पालन को आधुनिक और वज्ञानिक आधार पर सम्वर्धन और नस्ल सुधार बढ़ावा देने में, बिना अपनी मृदा, खेतों का आकार, जनसंख्या, अपने बैलों की शक्ति, विशेषत: देश के पारंपरिक तरीकों, अदि को जाने पाश्च्यात देशों का अँधा अनुकरण किया गया. कृषि में मशीनीकरण और रासायनिक उर्वरकों ने ना केवल खेती की लागत असीम बढ़ोतरी कर डाली बल्कि जल, मिटटी और फसल को जहरीला बना दिया जो उपभोक्ता और पशुओं के लिए घातक हो गया. गायों की उत्पादकता को सुधारने में कृत्रिम गर्भाधान द्वारा विदेसी नस्ल के वीर्य का उपयोग कर क्रोस नस्ल और जर्सी और होलेस्तिन- फ्रीजियन आदि को बढ़ावा दिया गया. जबकि यह नसले हमारे देश की गर्मी सहन नही कर पाती हैं और तुलना में दुगना चारा खाती हैं. इन के कारण अनसुनी बिमारिओ का प्रोकोप होता ज रहा है. क्योंकी इनका दुग्ध हमारी देसी नस्लों से बहुत घटिया माना गया है. विदेशी नस्लों के बैल हम्प ना होने के कारण खेती में हल चलाने और यातायात में अयोग्य पाए गये हैं

माँस या पशु हत्या संविधान के VII भाग की किसी भी VII सुचिओं में नही रखा गया है. कार्य आवंटन नियम १९६१ संख्या ९ . सप्तम खंड की II सूची संख्या १५ के साथ में पशु सम्वर्धन, सुरक्षा और उन्नत्ति को रखा गया है . हालाँकि १९९४-९५ की पशु पालन और डेरी विभाग की वार्षिक रपट में बिना बताये की VII खंड की कोनसी सूची में है - पशु उपयोग और पशु कत्ल रख दिया गया.