गुरुवार, 7 मार्च 2024

चिकित्सक (डॉक्टर) कैसे गौसेवा कर सकते है।

चिकित्सक
(ऍलोपॅथी, होम्योपॅथी व अन्य)

स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। राष्ट्रोनति का कार्य स्वस्थ मानसिकता में ही निहित है। चिकित्सक जनजन को स्वस्थ मन- मस्तिष्क उपलब्ध करा कर सच्ची राष्ट्र सेवा करते है। गो रक्षा एवं गौ संवर्धन हेतु चिकित्सक समाज में अपनी विशेष स्थिति का उपयोग कर कई गुना अधिक कार्य कर सकते है। अधोलिखित बिन्दुओं पर विचार करें व क्रियान्वित करे यही आग्रह है :

१. अपने दवाखाने में गौमाता का चित्र लगावें और आने वाले मरीजों को गो दुग्ध पान की सलाह दें।

२. घर में गाय पालें व गौ सेवा करें, अन्य को भी इस हेतु प्रेरित करें ।

३. पंचगव्य औषधियों का विभिन्न बीमारियों पर असर लगातार देखें एवम् सफल व कारगर नुस्खों का चार्ट बनाकर अपने दवाखाने में लगावें ।

४. गोपर्व, गो उत्सव जैसे, गोवत्स व्दादशी, बलराम जयंती (हलधर षष्ठी), श्री कृष्ण जन्माष्टमी, गोपाष्टमी, मकर संक्रांति इत्यादि उत्साहपूर्वक मनावें व अन्य को भी प्रेरित करें ।

५. अन्य चिकित्सकों के बीच गोरक्षा, गोसंवर्धन सम्बंधी चर्चा करें, उन्हें भी इस हेतु प्रेरित करें ।

६. मरीजों को गोसेवा कर आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने की सलाह देवें ।

७. गो दुग्ध, गोघृत के उपयोग पर अभियान चलाएं ।

८. स्वयं गोग्रास निकालें, अन्य को भी प्रेरित करें ।

९. गोसेवा, गोरक्षण व गो संवर्धन हेतू धन संग्रह में सहयोग देवें ।

१०. गाय के रक्त से बनी डेक्सोरेंज सीरप, गोवंश के पॅनक्रिआज से प्राप्त इंसूलिन, जिलेटीन वाले कॅपसुल, गोवंश की हड्डियों से बनी Heamaccel औषधि व अन्य कॅलशियम पूरक औषधियों का रोगोपचार में उपयोग नहीं करना चाहिये व वैद्यकीय क्षेत्र में इस विषय पर जनजागरण करना चाहिये।

११. पंचगव्य औषधियों की चिकित्सा संबधित सफलताओं, अनुसंधानात्मक खबरों को विशेष रूची के साथ पढ़ें।

१२. उपरोक्त जानकारियों की अपनी पध्दति से जाँच-परख कर, संतोषजनक पाये जाने पर, पंचगव्य औषधि का रूग्णों के इलाज में उपयोग करें।

१३. पंचगव्य व संबधित विषयों को अर्वाचिन क्षेत्र के अनुसंधान में प्राथमिकता दें।

१४. पंचगव्य आयुर्वेद में चल रहे अनुसंधान कार्यों में आवश्यकता पड़ने पर सलाह, मार्गदर्शन प्रदान करें।

वैद्य कैसे गौसेवा कर सकते है

आयुर्वेद पध्दति से इलाज करने वाले "वैद्य" हजारों वर्षों से भारतीय जन को स्वास्थ प्रदान करते आये है। ऐलोपॅथी के इस युग में भी "वैद्य" गाँव - गाँव में विराजमान है व सेवा कर रहे है। आज भी भारत के लाखों गाँवो के निवासियों के जीवनदाता वैद्य ही है। गोमाता व वैद्य का रिश्ता हजारों वर्षों से अटूट बना हुआ है। गोरक्षण गो संवर्धन गोर्सेवा का कार्य इनकी रग रग में है। निम्न बिन्दु स्मरणार्थ समर्पित है :-

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१. पंचगव्यें (गोदुग्ध, गोबर, गोमूत्र, गोघृत, गोदहि) से निर्मित औषधियों का प्रयोग बीमारियों के इलाज में अधिक से अधिक करें तथा इसका प्रचार करें ।

२. स्वस्थ बने रहने में पंचगव्य के महत्वपूर्ण योगदान का प्रचार आम जन में करें ।

३. व्रणरोपन (ड्रेसिंग) में डेटॉल इत्यादि के बजाय "गो अर्क", त्वचा संबंधी विकारों में सोफ्रामायसिन के बजाय जात्यादि घृत जैसे विकल्प अपनायें ।

४. अर्वाचीन चिकित्सा (ऐलोपॅथी) से होने वाले दुष्प्रभावों (साईड इफेक्टस्) की जानकारी जन सामान्य को देवें । तुलनात्मक पंचगव्य औषधियों की सफलता की जानकारी भी देवें ।

५. पंचगव्य आयुर्वेद का विशेष रुचि के साथ अध्ययन करें। नये छात्रों को पंचगव्य आयुर्वेद अध्ययन की सलाह देवें ।

६. संगोष्टियों में पंचगव्य अनुसंधान पर शोधपत्र प्रस्तुत कर दुसरे वैद्यों को भी इस विषय से जुडने हेतु प्रोत्साहित करें ।

७. सब लोगों को भारतीय नस्ल की गाय के दुग्ध पान की प्रेरणा देवें ।
८. अपने कार्यस्थल पर गो माता का चित्र लगावें व घर में अनिवार्य रुप से गाय पालकर गो सेवा करें ।

९. गो पर्वो व गो उत्सवों जैसे गोपाष्टमी गोवत्सव्दादशी, बलराम जयंती (हलधर षष्ठी), श्री कृष्ण जन्माष्टमी इत्यादी मनाने की प्रेरणा लोगों को देने और स्वयं भी मनावें ।

१०. गो सेवा, गो शाला हेतु धन संग्रह करने में सहयोग देवें ।

११. स्वयं पंचगव्य औषधि निर्माण करें।

१२. गाय के रक्त से बनी डेक्सोरेंज सीरप, गोवंश के पॅनक्रिआज से प्राप्त इंसुलिन, जिलेटीन वाले कॅपसुल, गोवंश की हड्डीयों से बनी Heamaccel औषधि व अन्य कॅल्शियमयुक्त औषधियों का रोगोपचार में उपयोग नहीं करना चाहिये व वैद्यकीय क्षेत्र में इस विषय पर जनजागरण करना चाहिये।

बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

शिक्षक कैसे गौ सेवा कर सकते है

शिक्षक व शिक्षालय


शिक्षालय (विद्यालय) वे कारखाने हैं जहाँ राष्ट्रीय चरित्र को दिग्दर्शित करने वाले उपकरण (विद्यार्थी) गढे जाते हैं। यहाँ का मुख्य अभियांत्रिक शिक्षक है। शिक्षक राष्ट्र निर्माता है। शिक्षालयों को गौ संवर्धन व गौरक्षण का प्रेरणा केन्द्र निम्नांकित निश्चयों से बनाया जा सकता है :-


१. विद्यार्थियों को बाल्यकाल से ही गोवंश की महिमा व अनिवार्यता का बोध कराया जाना चाहिए। शास्त्रों, पुराणों इत्यादि भारतीय वांङ्गमय में उद्‌धृत गौ माता सम्बंधी उध्दरणों को कक्षाओं में पढ़ाया जाना चाहिए।


२. प्रत्येक विद्यालय में गाय रखी जावें और शिक्षक विद्यार्थी मिलकर गो सेवा करें जिससे अल्पायु से ही गो भक्त नागरिक तैयार हों।


३. शिक्षक कक्षाओं में पंचगव्य का महत्व बतावें।


४. पाठ्यक्रमों में गो सेवा व गो महिमा के अध्याय सम्मिलित किये जावें।


५. शिक्षक पंचगव्य से निर्मित मंजन, साबुन, शैम्पू, औषधियों का उपयोग करें व विद्यार्थियों से इनका प्रयोग करने का आग्रह करे।


६. जैविक खाद के उपयोग से पैदा अन्न, फल, सब्जी का उपयोग करने का आग्रह विद्यालयों में किया जावें।


७. विद्यार्थियों को भारतीय नस्त की गाय के गौदुग्ध पान के महत्व का व्यापक प्रचार किया जावे। विद्यालयों में गौ दुग्ध उपलब्ध हो।


८. स्वास्थ्य व पर्यावरण के हित में गौ वंश के महत्त्व को प्रचारित कर विद्यार्थियों को सुशिक्षित किया जाए।


९. विद्यालयों में पंचगव्य औषधि व जैविक कृषि, गो रक्षा का महत्व, जैसे विषयों पर निबंध, वाद-विवाद, भाषण, पोस्टर प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाएँ।


१०. विद्यालयों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, गोपाष्टमी, बलराम जयंती इत्यादि गोपौँ व गो उत्सवों को मनाया जाए।


११. रासायनिक कृषि के भुमी, स्वास्थ्य व पर्यावरण पर पडनेवाले दुष्प्रभावों की विद्यार्थियों को जानकारी देनी चाहिये।


१२. गौशाला, पंचगव्य औषधि व कृषि उत्पाद तथा पंचगव्य से निर्मित उर्जा केन्द्रों में विद्यार्थियों की शैक्षणिक का आयोजन करें।